मामले में संचालनालय स्वास्थ्य सेवाएं ने भी अधिकारियों व कर्मचारियों को ठहराया है जिम्मेदार
जगदलपुर
शासकीय सेवा में रहते हुए कर्मचारी के निधन के पश्चात इनके आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति देने के लिए शासन द्वारा कड़े दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं लेकिन, कर्मचारी के मौत के पश्चात उनके आश्रितों को अनुकंपा नियुक्ति प्राप्त करने हेतु सरकारी अधिकारियों के प्रताडऩा सहते हुए किस प्रकार इन्हें विभाग के उच्च अधिकारी के द्वारा उनकी अनुकंपा नियुक्ति पाने के दायरे से ख़त्म करने का प्रयास किया जाता है, यहाँ, इस मामले से स्पष्ट तौर पर परिदर्षित हो रहा है कि एक विधवा माँ अपने दो बेटियों के साथ विगत आठ वर्षों से अपनी बड़ी बेटी को अनुकम्पा नियुक्ति दिलाने शासकीय कार्यालयों के चक्कर लगा रही है. लेकिन, अधिकारियों के कान में जूं तक नहीं रेंग रही, बल्कि इसके विपरीत विभाग के अधिकारी अपना राजनैतिक पकड़ का धौंस दिखाते उलजूल आदेश पारित करने से बाज नहीं आ रहे हैं. उक्त परिवार इन सात वर्षों में अब इस कदर परेशान हो गया है कि उन्हें सामूहिक आत्मदाह करना ही एक मात्र उपाय दिख रहा है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार, सोनल मिश्रा के पिता स्व. दिनेश मिश्रा जो जिला मलेरिया कार्यालय में कार्यरत थे। उनकी मृत्यु 18 मार्च 2013 को हो गई। इसके एवज में इनके द्वारा अनुकंपा नियुक्ति हेतु इसी वर्ष अगस्त माह में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी जगदलपुर के समक्ष एक आवेदन प्रस्तुत किया गया। सोनल द्वारा अनुकंपा नियुक्ति हेतु प्रस्तुत आवेदन में अपनी नियुक्ति प्रकरण पर तत्काल सुनवाई हेतु मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी से निवेदन किया था, तत्कालीन प्रभारी मुख्य चिकित्सा अधिकारी (संयुक्त संचालक) ने सोनल को 4 स्थानों पर पद रिक्त होने की बात मौखिक तौर पर कही थी और उन्हें आश्वासन भी दिया की अनुकम्पा नियुक्ति हो जाएगी. लेकिन एक सप्ताह बाद पुनः जानकारी लेने पर स्थिति पूरी उलट हो चुकी थी और अधिकारियों सहित कर्मचारियों ने फाइल को कलेक्टर कार्यालय भेजने की बात कही और मामले को ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया. जब सोनल ने कलेक्टर कार्यालय से जानकारी लेनी चाही तो इस कार्यालय ने भी धता दिखाते हुए उसे पुनः मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य कार्यालय भेज दिया गया. यहाँ यह कहना लाजमी होगा कि यहाँ से महिला और उसके दो बेटियों के ऊपर प्रशासनिक आतंकवाद का साया मंडराने लगा और तब से लेकर आज पर्यंत तक उक्त परिवार दर-दर की ठोकरें खा रहा है और इनकी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है.
मामले में अधिकारियों की लापरवाही और मानसिक तौर पर परेशान सोनल द्वारा क्षेत्रीय जनप्रतिनिधि के साथ-साथ अपने स्व. पिता के विभाग के उच्चअधिकारियों से संपर्क साधकर अपने मदद की गुहार लगाई गई किंतु, वहां से भी विभिन्न प्रकार के नियम-कानून की बात कहकर उसे अनुकंपा नियुक्ति में पात्र नहीं होने की बात कही गई। स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी द्वारा यह कहा गया कि चूंकि तुम्हारी माता अन्य सरकारी विभाग में कार्यरत है. अत: तुम अनुकंपा हेतु पात्रता नहीं रखती हो। इसी प्रकार 60 हजार वार्षिक आय की पारिवारिक पात्रता रखने के कारण भी अनुकंपा नियुक्ति की पात्रता नहीं हो सकती। इन्हीं सब कायदे-कानून में उलझाकर विभाग के उच्च अधिकारियों ने अब तक सोनल मिश्रा को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान नहीं की है बल्कि मौखिक रूप से यह भी अफवाह फैलाने की कोशिश की जा रही है कि कई बार उन्हें नियुक्ति दिए जाने की बावजूद उनके द्वारा उपस्थित नहीं होने के कारण ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है। जबकि, महिला वर्तमान में भी स्थानीय जनपद कार्यालय में अर्द्ध-शासकीय तौर पर दैनिक वेतन भोगी है. महिला का आरोप है कि अधिकारियों ने मिलीभगत और बंदरबांट करते हुए ऐसे ही मामले में अन्य को अनुकंपा नियुक्ति प्रदान की है, लेकिन उन्हें विगत तक़रीबन आठ वर्षों से घुमाया जा रहा है.
सोनल ने जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी जगदलपुर के समक्ष बार-बार अपनी अनुकंपा नियुक्ति संबंधित बातों का खंडन किया है और कहा है कि केवल मौखिक रूप से मुझे यहां-वहां नियुक्ति देने की बात कही जा रही है जबकि, मुझे अब तक किसी भी नियुक्ति संबंधित आदेश के कागज अब तक नहीं मिले हैं। हालांकि, इस मामले में कई वर्ष गुजर जाने के बावजूद सोनल मिश्रा अनुकंपा नियुक्ति प्रकरण में जिला कलेक्टर द्वारा जांच कमेटी का गठन भी किया गया था। लेकिन उस जांच कमेटी के सदस्य डॉ. जीसी शर्मा एवं डॉ. डी राजन जो वर्तमान में जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी जिला बस्तर हैं, उनके द्वारा भी निष्पक्ष जांच के बहाने सोनल के अनुकंपा प्रकरण में प्रतिकूल निर्णय देकर नियुक्ति देने में कई प्रकार के अड़चन पैदा कर इस मामले को और पेंचीदा बना दिया है।
यही नहीं, वर्ष 2016 में राज्य के संचालनालय (स्वास्थ्य सेवाएं) से प्राप्त पत्र के मुताबिक, प्रकरण का शासन के नियमानुसार निराकरण नहीं किया गया जिसके लिए अधिकारी/कर्मचारी जिम्मेदार हैं और तत्कालीन समय तक किसी भी प्रकार का कार्यवाही नहीं की गयी.
वर्तमान में प्रदेश सरकार द्वारा किसी भी सरकारी कर्मचारी की मृत्यु के पश्चात उनके परिजनों को तत्काल अनुकंपा नियुक्ति देने हेतु नियम कानून को सरल किया गया है किंतु, अनुकंपा नियुक्ति पाने वाले परिवार को अब भी सरकारी अधिकारियों के उत्तपीडऩ का शिकार होना पड़ रहा है। सोनल प्रकरण में लगभग आठ साल का समय गुजर चुका है लेकिन अधिकारियों की लापरवाही के कारण अब तक इस प्रकरण का निर्णय नहीं हो पाया है।
मामले में मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. डी. राजन को मामले में अधिक जानकारी लेने के लिए कॉल किया गया था लेकिन ख़बर लिखे जाने तक उनसे चर्चा नहीं हो पायी.