कमल खिलाना है तो सरोवर से जलकुंभी उखाड़े भाजपा

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव के लिए अब सीमित समय बचा है। राज्य की दोनों प्रमुख पार्टियों के साथ साथ बसपा, जनता कांग्रेस, आप सहित अन्य दल अपनी तैयारी में तेजी से लगे हुए हैं। कांग्रेस के संभागीय सम्मेलन चल रहे हैं। बस्तर संभाग की 12, बिलासपुर संभाग की 24 और दुर्ग संभाग की 20 सीटें जीतने के लिए कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ताओं के जोश को बढ़ाते हुए 2018 से बेहतर प्रदर्शन करने कहा है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कह रहे हैं कि इस बार 71 सीट से आगे जाएंगे। उनका यह अनुमान कांग्रेस के प्रत्याशियों पर निर्भर करेगा। आम तौर पर मौजूदा विधायक ही मैदान में होंगे। कुछ विधायकों की टिकट कटेगी। मुख्यमंत्री ऐसे विधायकों को तीन चार माह में प्रदर्शन सुधारने की सलाह देते हुए कह रहे हैं कि फिर टिकट नहीं कटेगा। वे यह भी बता रहे हैं कि फैसला आलाकमान करेगा। यानी दिल्ली के पैमाने पर जो विधायक खरे उतरेंगे। उनकी ही टिकट सलामत रहेगी। कांग्रेस पूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरेगी। इस जंग में कमजोर सिपाही नहीं उतारे जाएंगे। फैसला तो जनता को करना है लेकिन कांग्रेस हर सीट पर जीत की सर्वाधिक संभावना वाले दावेदार के सिर पर हाथ रखेगी।कूड़ा करकट नहीं चलेगा। ऊपरी तौर पर कांग्रेस खुद की मजबूती और भाजपा की कमजोरी के कितने भी दावे करे, लेकिन वह भाजपा को कहीं भी हल्के में नहीं लेगी। कांग्रेस फुल कॉन्फिडेंट है किंतु ओवर कॉन्फिडेंस घातक साबित होता है, इसका उसे अहसास है। तभी तो वह अपने विधायकों के नट बोल्ट टाइट कर रही है। जिनमें जंग लग गई है, जो काम करने की स्थिति में नहीं हैं, वे पुर्जे बदल दिए जाएंगे। पिछले चुनाव के पहले कांग्रेस ने अपनी खरपतवार उखाड़ फेंकना जरूरी समझा और ऐसे हालात पैदा किए कि जो नुकसान पहुंचा रहे हैं, वे निकल जाएं। कांग्रेस का शुद्धिकरण हुआ तो जनता ने उसे हाथोंहाथ लिया। यदि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का विभाजन नहीं हुआ होता तो भाजपा को हटाना आसान नहीं था। कांग्रेस कलह में डूबी रहती और भाजपा का कमल खिलता रहता। भूपेश बघेल ने प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए सुनियोजित तरीके से सफाई अभियान चलाया। सियासी गाजरघास छंट गई तो कांग्रेस एकजुट हो गई। नतीजा यह रहा कि बस्तर की 12 में से 11 सहित राज्य की 90 में से 68 सीटें जीतीं। उपचुनावों में यह संख्या 71 हो गई। इसके विपरीत 2018 के चुनाव के डेढ़ साल पहले से तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह अपने विधायक साथियों को टास्क देते रहे। कोई फर्क नहीं पड़ा। 15 साल की सरकार में कमल सरोवर में जलकुंभी पट गई। उसे उखाड़ने की दरकार थी लेकिन भाजपा अति आत्मविश्वास की गिरफ्त में थी। तब ये तो होना ही था। अब भी वही स्थिति है। बस्तर में भाजपा के दिग्गज खूब ताल ठोंक रहे हैं लेकिन भाजपा के कार्यकर्ताओं को तक यह नहीं समझ आ रहा कि ये बड़े नेता मतदाता के मन को कैसे जीत सकते हैं जब भाजपा का स्थानीय तन जनता से दूर है। यदि भाजपा को कांग्रेस से मुकाबला करना है तो पहले अपने तालाब की जलकुंभी को उखाड़कर कमल खिलने की जगह बनाये। वरना सत्ता में आने का सपना भूल जाये।