- चार साल से अधूरा पड़ा है पढ़े लिखे गांव का सांस्कृतिक भवन
- जिला पंचायत व जनपद उपाध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य के गृहग्राम गुमडेल का है ये हाल !
अर्जुन झा
बकावंड जिस गांव ने बस्तर जिले और बकावंड बिकासखंड को तीन बड़े पंचायत प्रतिनिधि और दर्जनों उच्च शिक्षित युवा दिए हैं, उस गांव में पंचायती राज व्यवस्था जार – जार रो रही है। दरअसल पंचायत सचिव ने इन जनप्रतिनिधियों और पढ़े लिखे ग्रामीणों को अपने सामने बौना साबित कर रखा है। इस पंचायत सचिव की मनमानी ने इन पंचायत प्रतिनिधियों और पढ़े लिखे युवाओं को बेबस बना दिया है। महिला पंचायत सचिव की कारगुजारी के चलते एक अदद संस्कृतिक भवन तक इस गांव को नसीब नहीं हो पा रहा है। जो सांस्कृतिक भवन बन भी रहा है, वह चार साल से अधूरा पड़ा है। मामला बकावंड विकासखंड की ग्राम पंचायत गुमडेल का है। गुमडेल को बकावंड जनपद पंचायत क्षेत्र का सबसे ज्यादा शिक्षित और जागरूक गांव माना जाता है। यहां के अनेक ग्रामीण सियासत में अच्छी खासी दखल भी रखते हैं। कांग्रेस -भाजपा दोनों दलों से जुड़े लोग यहां निवासरत हैं। यही वजह है कि पंचायती राज व्यवस्था में इस गांव से अनेक लोग विभिन्न निकायों में जनप्रतिनिधि चुने जाते रहे हैं। गांव की माहेश्वरी पाण्डेय जिला पंचायत उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। गुमडेल की कविता पाढ़ी जिला पंचायत सदस्य चुनी जा चुकी हैं और जनपद पंचायत बकावंड के पद पर इसी गांव के रामानुजम आचार्य विराजमान हैं। यही नहीं गांव के दर्जनों युवा उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद विभिन्न बड़े ओहदों पर सेवाएं दे रहे हैं तथा कई युवा पढ़ लिखकर भी खेती किसानी में परिवार का हाथ बंटा रहे हैं। इतने जागरूक और पढ़े लिखे गांव को भी एक अकेली महिला पंचायत सचिव ने अपनी उंगलियों पर नचा रखा है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि पंचायत सचिव की मनमानी के खिलाफ गांव के लोग आवाज उठाने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे हैं। गुमडेल में सांस्कृतिक भवन निर्माण के लिए मौजूदा विधायक ने अपनी निधि से 3 लाख 50 हजार रुपए की मंजूरी दी थी और राशि ग्राम पंचायत गुमडेल को आवंटित भी की जा चुकी है। राशि जारी होते ही सांस्कृतिक भवन का निर्माण शुरू कर दिया गया था, मगर अब तक सिर्फ दीवारें ही खड़ी की जा सकी हैं। पीछे की दीवार तो ऊंची बनाई गई है, मगर सामने की दीवार बहुत ही कम ऊंची है। सीमेंट की इंटों को जोड़कर बेहद कमजोर दीवारें बनाई गई हैं। उस पर न तो छत ढलाई की गई है और न ही दरवाजा लगाया गया है। आयताकार चबूतरे पर तथाकथित सांस्कृतिक भवन का ढांचा खड़ा किया गया। चबूतरे को सांस्कृतिक मंच के रूप बनाया जा रहा है। चबूतरे को मिट्टी से पाटकर तैयार किया गया है और उसकी ऊंचाई बहुत ही कम है। एक हिस्से में चबूतरे की मिट्टी धसक चुकी है और बरसात के इस मौसम में यह पूरी तरह धसक जाए गा। अर्ध निर्मित सांस्कृतिक भवन के भी ढह जाने का अंदेशा है।
शौचालय जितना छोटा है भवन
साढ़े तीन लाख रु. की लागत से बन रहे सांस्कृतिक भवन का आकार इतना छोटा है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत निर्मित शौचालय भी उसकी खिल्ली उड़ाता नजर आता है। इतने छोटे भवन में कैसे सांस्कृतिक आयोजन होंगे, यह समझ से परे है। गांवों में ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए कोई साधन नहीं रहता, सांस्कृतिक भवन में ही धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, जहां गांव के युवा नाटक, लीला, नृत्य गीत की प्रस्तुति देकर ग्रामीणों का मनोरंजन करते हैं, मगर गुमडेल के ग्रामीणों को सांस्कृतिक भवन के लाभ से पंचायत सचिव प्रेमलता मौर्य ने वंचित कर दिया है। फिर भी न जाने क्यों इस गांव के जनप्रतिनिधि और शिक्षित ग्रामीण इस करतूत के खिलाफ मुखर नहीं हो पा रहे हैं।
स्वच्छ भारत मिशन में भी किया खेल
पंचायत सचिव प्रेमलता मौर्य ने स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय निर्माण के लिए केंद्रीय मद से स्वीकृत राशि में भी बड़ा खेल किया है। घरों में निजी शौचालय बनवाने में तो गड़बड़ी की ही गई है, सामुदायिक शौचालय निर्माण में भी धांधली की गई है। घरों में जो शौचालय बनवाए गए हैं उनकी शीट और शेड तो घटिया स्तर के हैं ही, अन्य निर्माण भी निहायत ही घटिया हैं। निजी शौचालयों के से स्वीकृत राशि में से आधी रकम खर्च कर बाकी रकम हजम कर ली गई है। ज्यादातर घरों के शौचालय अब उपयोग के लायक नहीं रह गए हैं। लोग खुले में शौच करने मजबूर हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत गुमडेल गांव में दो सामुदायिक शौचालय बनाने के लिए लाखों की राशि स्वीकृत की गई थी, मगर ये शौचालय गांव में नजर ही नहीं आ रहे हैं। इनके लिए स्वीकृत राशि कहां गई, किसी को पता नहीं। इस तरह पंचायत सचिव ने केंद्रीय मद की राशि की भी हेराफेरी कर डाली है।
विधायक का कार्यकाल पूरा हो रहा, भवन नहीं बन पाया
बस्तर के विधायक एवं बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने अपने कार्यकाल के शुरूआती वर्ष में गुमडेल में सांस्कृतिक भवन निर्माण के लिए अपनी विधायक निधि से साढ़े तीन लाख रुपए की मंजूरी दी थी। विधायक का कार्यकाल समाप्ति की ओर है, लेकिन उनके द्वारा स्वीकृत सांस्कृतिक भवन आज तक आकार नहीं ले सका है। विधायक इन साढ़े चार वर्षों के दौरान कई बार गुमडेल जा चुके हैं, लेकिन आश्चर्य की बात है कि पंचायत सचिव की मनमानी और अधूरे पड़े सासंस्कृतिक भवन की ओर कैसे नहीं गया ।