बाबुओं के आगे बौने हो गए हैं सुकमा जिले के बड़े अधिकारी, छवि हो रही खराब

0
145
  •  अफसरों को शिकायती आवेदनों की भनक नहीं लगने देते ये शातिर बाबू
  • शिकायतों का निराकरण न होने से नागरिक परेशान
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर बस्तर संभाग के सुकमा जिले के तमाम महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तरों में बाबुओं का राज चल रहा है। सालों से एक ही जगह जमे बाबू और अधिकारियों के रीडर अपने अधिकारियों को चकमा देने लगे हैं। ये लोग महत्वपूर्ण शिकायती आवेदनों और दस्तावेजों को अपने अधिकारी तक पहुंचने नहीं देते और जिस कर्मचारी के खिलाफ शिकायत मिली होती है, उससे लेनदेन कर शिकायती आवेदनों और दस्तावेजों को ठिकाने लगा देते हैं। इसके कारण शिकायतकर्ता व्यक्ति को कभी इंसाफ नहीं मिल पाता। इससे अधिकारियों पर से आमजन का भरोसा उठता जा रहा है और अधिकारियों के साथ ही शासन प्रशासन की छवि भी धूमिल हो रही है।
    सुकमा जिले में बाबू एवं रीडर अपने अधिकारियों की आंख से काजल चुरा लेते हैं और अफसरों को भनक तक नहीं लग पाती। दरअसल सालों से एक ही कार्यालय में दर्जनों अधिकारियों के अधीन काम कर चुके ये बाबू और रीडर अधिकारियों के रग रग से वाकिफ हो चुके हैं। वे खुशामद और चिकनी चुपड़ी बातों में इस कदर पारंगत हो चले हैं कि कितना भी कड़क मिजाज अफसर हो, इन बाबुओं और रीडरों की चाल में फंसकर उन्हें ही अपना सच्चा हमदर्द समझ बैठते हैं। जबकि सच्चाई तो यह है कि ये लोग अफसरों की पीठ में छूरा भोंकने का काम करते हैं। अधिकारियों की नाक के नीचे ये बाबू और रीडर जमकर अवैध कमाई कर रहे हैं। वर्षों से एक ही दफ्तर में एक ही टेबल पर काम करते आ रहे ये कर्मचारी और रीडर अपने अधिकारी को आंख में धूल झोंकने का काम करते आ रहे हैं। इसका खामियाजा दूर दराज के गांवों से फरियाद लेकर दफ्तरों में पहुंचने वाले ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। वर्षों से तहसीलदार, एसडीएम, अपर कलेक्टर, एडीएम, जिला पंचायत सीईओ, कलेक्टर दफ्तर में सालों से पदस्थ बाबू, रीडर और अन्य कर्मचारी ग्रामीणों द्वारा दिए गए शिकायत पत्रों को अपने अफसरों तक पहुंचने से पहले ही गायब कर देते हैं। फिर उन शिकाय पत्रों के आधार पर उन कर्मचारियों से मोटी रकम की उगाही कर लेते हैं, जिनके खिलाफ शिकायत की गई होती है।ऐसा खेल सुकमा जिले में लंबे समय से चल रहा है। उल्लेखनीय है कि सुकमा जिला नक्सल घटनाओं को लेकर बेहद संवेदनशील है और विकास कार्यों को कागजों में ही अंजाम दिए जाने को लेकर सुर्खियों में रहा है। चाहे वह स्वच्छ भारत मिशन के तहत घर घर शौचालय निर्माण का कार्य हो हो या फिर गांवों में तालाब निर्माण का, 15वें वित्त की राशि के कार्य हों या सड़क निर्माण का, हर कार्य में सरकारी धन की खुलेआम लूट मची हुई है। पूर्ववर्ती सरकार के मंत्री के संरक्षण में भ्रष्टाचार का खुला खेल चलता आया है।

    शिकायती पत्र बाबुओं के बैग में
    दूरस्थ अंचल के ग्रामीण अपनी समस्या को लेकर विभागीय अधिकारियों को शिकायत पत्र भेजते हैं, लेकिन अधिकांश शिकायत पत्र अधिकारियों के कार्यालय में बैठे बाबुओं के निजी बैग में समा जाते हैं। इन दफ्तरों के कर्मचारियों के खिलाफ भी शिकायत पत्र संबंधित अधिकारी के कार्यालय में पहुंचते हैं, मगर कर्मचारी ऐसे शिकायती पत्रों को फाड़कर डस्टबिन में डाल देते हैं।कर्मचारी अपने कारनामों पर पर्दा डालने शिकायतकर्ता के शिकायती पत्रों को अधिकारियों तक पहुंचने ही नहीं देते हैं। शिकायतकर्ता यह उम्मीद लगाए बैठे रहते हैं कि शिकायत पर अधिकारी संज्ञान लेकर मामले का निराकरण करेंगे, लेकिन ग्रामीणों की उम्मीद धरी की धरी रह जाती है।

    साहब भी रहते हैं मेहरबान
    जिले के जिम्मेदार अधिकारी अनजाने में ही सही ऐसे कर्मचारियों पर मेहरबान बने रहते हैं। क्योंकि अधिकारी ऐसे चापलूस कर्मचारियों पर आंख मूंदकर भरोसा किए बैठे रहते हैं। ये कर्मचारी मेम साब, बाबा और बेबी के बारे में दिखावटी चिंता जो करते हैं और समय समय पर अफसरों की घरेलू जरूरतें भी पूरी करने में दो कदम आगे जो रहते हैं। फिर भला साहब उन पर क्यों न मेहरबान हों? ऐसा ही मामला कोंटा एसडीएम कार्यालय के फाईलों में बंद है, जिसकी जानकारी कर्मचारियों की मनमानी के कारण अफसर तक नहीं पहुंच पा रही है। ऐसे ही कई मामले कलेक्टर, जिला पंचायत सुकमा के दफ्तर में लटके पड़े हैं।

    जिला पंचायत में दबी रही शिकायत
    हाल ही में एक मामला प्रकाश में आया था। ग्राम पंचायत कामाराम में निराश्रितों, विधवाओं, दिव्यांगों को कई माह से पेंशन वितरण न होने की शिकायत जिला पंचायत में की गई थी। शिकायत पर कई दिनों तक कार्रवाई नहीं हुई। इस बात की खबर जिला पंचायत के बाबुओं के जरिए सरपंच और पंचायत सचिव तक पहुंच गई। उसके बाद आनन फानन में पेंशन भुगतान की प्रक्रिया शुरू कर दी गई। लेकिन आज तक महिनों से पेंशन की रकम दबाए बैठे पंचायत सचिव से इस गंभीर मामले में स्पष्टीकरण तक नहीं लिया जा सका है। ऐसे कई शिकायते हैं जो बाबू की टेबल से आगे नहीं बढ़ पाती। इससे अधिकारी की भी जिले में बदनामी होती है। जिले के अफसरों को चाहिए कि खुशामदखोरी से बचते हुए अपने बाबुओं और रीडर पर नकेल कसें। सालों से एक ही कार्यालय में डेरा डाले बैठे बाबुओं और रीडर के तबादले पर कलेक्टर को भी ध्यान देना होगा। अन्यथा जिला प्रशासन की बदनामी यूं ही होती रहेगी।