गुजरा हुआ जमाना, आता नहीं दोबारा…भाजपा भूल गई संघर्ष काल के पुराने तेवर

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जगदलपुर – अर्जुन झा

भारतीय जनता पार्टी पंद्रह साल तक सत्ता सुख भोगने के कारण छत्तीसगढ़ में अपने संघर्ष काल के पुराने तेवर भूल गई है। राज्यव्यापी किसान आंदोलन के नाम पर उसने विधानसभा क्षेत्रों में जो आंदोलन किया गया, उसमें भाजपाई राजनीति वह दमखम नहीं दिखा पाई, जो विपक्ष में बैठे दल से अपेक्षित होता है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में पंद्रह वर्षों तक सत्ता सुख भोगने वाली राष्ट्रीय पार्टी के नेताओं को कांग्रेस के विरोध के दौरान असहज महसूस किया गया। कुछ नेता अपने प्रभार क्षेत्र को छोड़कर अपनी राजनीति चमकाने में भी कसरत करते देखे गए।

ट्रेक्टर व बैलगाड़ी में सवार होकर फोटो बाजी करते नजर आने वाले नेताओं ने भविष्य की चुनावी तैयारियों की झलक पेश की। लेकिन उन्हें बस्तर में ऐसा भाव कहीं नहीं मिला, जैसी कि वे उम्मीद कर रहे थे। भारतीय जनता पार्टी ने किसानों के जो मुद्दे उठाए, उसमें केंद्रीय मुद्दे थे जिसके कारण धरना- प्रदर्शन स्थलों पर भाषणबाजी के दौरान नेता कई बार बगले भी झांकते नजर आए। किसानों के मुद्दे पर आंदोलन में किसानों की दूरी अपने आप में चर्चा का विषय है। जितने भी शहरी क्षेत्र के नेतागण थे, वह सिर्फ और सिर्फ फोटोबाजी में मशगूल थे और दूसरे क्षेत्र के प्रभारी अपनी सियासी फसल उगाने की फिराक में लगे रहे। बस्तर में भाजपा पूरी तरह उजड़ चुकी है। यहां अंचल की सभी बारह सीटों पर कांग्रेस काबिज है तो लोकसभा चुनाव में पूरे राज्य में शानदार प्रदर्शन के बावजूद बस्तर में कमल नहीं खिल सका। वैसे तो कांग्रेस ने भाजपा से कोरबा लोकसभा सीट भी छीनी है लेकिन बस्तर की बात अलग है।

दोनों जगह परिणाम के कारण अलग अलग हैं। कोरबा में कांग्रेस की जीत के कारण अलग हैं तो बस्तर में यहां जो माहौल विधानसभा चुनाव के दौरान बना, वह लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रहा। इसकी वजह है कि बस्तर का भाजपा से मोहभंग हो गया। इसके पीछे भाजपा नेताओं का ही हाथ रहा है। अन्यथा बस्तर तो भाजपा का लगातार साथ दे रहा था। भाजपा जब तक बस्तर में तरती रही, तब तक वह राज्य में सरकार बनाती रही। जब बस्तर में भाजपा विरोधी आंधी चली तो पूरे राज्य में भाजपा विरोधी लहर ने असर दिखा दिया। बस्तर में उजड़ने के बाद भाजपा का मनोबल टूट गया है। यदि लोकसभा चुनाव में उसने बाजी मार ली होती तो भविष्य में उसके लिए उम्मीद पैदा हो सकती थी। मगर विधानसभा चुनाव में सफाए के बाद भाजपा ने संघर्ष नहीं किया। जबकि पंद्रह साल तक हर पल भाजपा से लोहा लेती रही कांग्रेस ने अपने जुझारू तेवर राज्य की सत्ता में काबिज होने के बाद भी कायम रखे, जिसका फायदा उसे मिल रहा है। कहते हैं कि गुजरा हुआ जमाना, आता नहीं दोबारा! अगर भाजपा को इस स्थिति को बदलना है तो अपने पुराने तेवर वापस हासिल करने होंगे। अन्यथा जीतने साल कांग्रेस को इंतजार करना पड़ा, वैसे ही भाजपा को भी बस्तर के कांग्रेस से मोहभंग होने की प्रतीक्षा करनी होगी।