उपस्थित समस्त साथियो ने अमर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा में फूल माला अर्पण किया इस अवसर पर शहीद भगत सिंह के जीवन पर यूनियन के सचिव कमलजीत सिंह मान ,तोरण लाल साहू, समसुद्दीन अंसारी, प्रीतम पटेल आदि ने अपने विचार रखे |
इस अवसर पर यूनियन के समस्त नियमित कर्मचारी; ठेका कर्मचारी ; पदाधिकारीगण एवं सदस्यगण ने अपनी उपस्थिति देकर इस परिचर्चा एवं गोष्ठी को सफल बनाया |
इस अवसर पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जीवन के बारे में बताया कि वह साहसी, स्वाभिमानी, आत्मविश्वास, त्याग, कुशल नेतृत्व ,और बहादुरी की मिसाल शहीद भगत सिंह |
शहीद भगत सिंह एक महान क्रांतिकारी 23 साल की छोटी सी उम्र में देश की आजादी के लिए हंसते हंसते फांसी पर झूल गए आइए सर मैं आपको संक्षिप्त मे इनके बारे में आपको बताता चलूं अप्रैल 1919 में देश में रोलेट एक्ट के विरोध में आम जनता जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुई और आंदोलन करने लगी उस वक्त अंग्रेजों के जनरल डायर ने जलियांवाला बाग को चारों तरफ से घेर कर गोलियों की बौछार कर दी जब भगत सिंह को ही पता चला जलियांवाला बाग पहुंचे और वहां से मिट्टी एक थैला में भरकर ले आए यह थी उनकी देशभक्ति का परिचय 1 अगस्त 1920 गांधीजी ने अंग्रेजो के सामान का बहिष्कार शुरू कर दिया और उन्होंने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया इस आंदोलन में अंग्रेजों के तमाम सामान ना करने का आव्हान किया |
शहीद भगत सिंह गांधी जी के इस असहयोग आंदोलन से बहुत खुश हुए फरवरी 1922 चौरा चौरी घटना के बाद हमारे बहुत से भारतीय को अंग्रेजों ने मार दिया इस घटना के बाद गांधी जी ने असहयोग आंदोलन को खत्म कर दिया 9 अगस्त 1925 को शहीद भगत सिंह उन्हें मालूम था हम भारतीयों के पास हथियार की कमी है उन्होंने अंग्रेजों के रेल में ले जा रहे हथियार को लूटा इस कांड को काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है 30 अक्टूबर 1928 में अंग्रेजों ने एक एक्ट बनाया जो गरीब ,किसान, दबे कुचले ,मजदुर के खिलाफ एक एक्ट बनाया उसके लिए एक आंदोलन हुई साइमन कमीशन के खिलाफ आंदोलन हुई अंग्रेजों ने भारतीयों को डंडे से पीटा मारपीट हमारे एटक यूनियन के प्रथम अध्यक्ष आदरणीय श्री लाला लाजपत राय 17 नवंबर 1928 में शहीद हो गए शहीद भगत सिंह ने अंग्रेजों को डराने के
लिए 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली जो कोलकाता में है उसमें बम विस्फोट किया और अंग्रेजों ने पकड़ कर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, को लाहौर जेल में डाल दिया गया उन्होंने देखा अंग्रेज कैदी के लिए अलग व्यवहार और भारतीय कैदियों के साथ अलग व्यवहार किया जाता था उन्होंने इस असमानता को देखते हुए वहां पर जून 1929 को जेल में भूख हड़ताल शुरू कर दी 116 दिन भूख हड़ताल के पश्चात 5 अक्टूबर 1929 को उसकी भूख हड़ताल के साथ जेल में कैदियों के साथ समान व्यवहार किया जाने लगा 26 अगस्त 1930 अंग्रेज की कोर्ट ने भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी की सजा सुनाई फांसी का डेट 24 मार्च उन्नीस सौ 31 का था परंतु जनता बेकाबू ना हो जाए उनकी फांसी 1 दिन पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे फांसी दे दी गई हमारे इस क्रांतिकारी योद्धा के लिए मैं दिल से नमन करता हूं और आशा करता हूं कि अगर देश की सुरक्षा के लिए हमें सीने में गोली खाली पड़ी तो हमें नहीं हटना है –
जय हिंद जय भारत जय हिंदुस्तान