छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के संस्थापक और मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी की आज पुण्यतिथि है। महज 48 साल की उम्र में कत्ल कर दिए गए नियोगी पूंजीवादियों की नीतियो के खिलाफ मजदूरों की आवाज बन गए थे। इस हत्याकांड के बाद नियोगी के नाम के आगे शहीद जुड़ गया. जिस समय उनकी हत्या हुई शहीद शंकर गुहा नियोगी इस हत्याकांड के बाद से ही छत्तीसगढ़ के मजदूर संगठन नियोगी को याद करते हुए उनके स्मरण 28 सितंबर को शहादत दिवस के रूप में मनाते हैं.
दल्ली राजहरा माइंस को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले नियोगी ने लोहे की खदान में मजदूर के रूप में काम भी किया। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के रूप में उन्होंने एक बड़ा श्रमिक संगठन बनाया। वह छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत से वाकिफ थे, लिहाजा एक ओर तो वह औद्योगिक और खदान मजदूरों की लड़ाई लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर उद्योगों और खदानों के कारण अपनी जमीन से बेदखल हो रहे किसानों के संघर्ष में साथ थे।
28 सितंबर, 1991 को छत्तीसगढ़ के मशहूर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी को स्थित उनके अस्थायी भिलाई निवास पर तड़के चार बजे के करीब खिड़की से निशाना बनाकर गोली मारी गई थी। देर रात वह रायपुर से लौटे थे। महज 48 वर्ष के नियोगी सिर्फ एक ट्रेड यूनियन नेता भर नहीं थे, बल्कि एक चिंतक और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनकी लड़ाई चौतरफा थी। एक ओर शराब से लेकर लोहे के धंधे से जुड़े बड़े उद्योगपतियों से वह आर्थिक समानता और श्रम की वाजिब कीमत की लड़ाई लड़ रहे थे, तो दूसरी ओर विचारधारा के स्तर पर मुख्यधारा के राजनीतिक दलों से। एक अन्य स्तर पर वह सामाजिक बुराइयों, जातिवाद और नशाखोरी से भी लड़ रहे थे।
शंकर गुहा नियोगी ने मजदूरों के हित में एक बड़ा काम किया. यह काम था शराबबंदी का. “नियोगी ने अपने संगठन के सभी 10 हजार साथियों को नशा नहीं करने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने संकल्प दिलवाया कि शराब का नशा नहीं करेंगे. गुहा नियोगी से जुड़े सभी लोगों ने यही संकल्प लिया. वहीं नियोगी अपने साथियों के साथ भट्टी बंद करने की मांग को लेकर भी आंदोलन करते रहे.” इन सब सामाजिक सुधार और मजदूरों के हक़ में लड़ने वाले नियोगी अब देश में मजदूरों के सबसे बड़े नेताओं में से एक बन चुके थे.
कुसुमकसा निवासी शिक्षक नन्द किशोर पिस्दा ने 28 सितम्बर को शहीद शंकर गुहा नियोगी जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कविता लिखी है :-