आदिवासी बनने की अजब दांस्ता – जिस स्कूल में बाप राउत बनकर पढ़ा वंही उसका बेटा गोंड हो गया

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केशकाल। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व 24दिसंबर 2018को बगैर आवश्यक प्रमाणिंत दस्तावेजों के एक ऐसे ब्यक्ति को गोंड जाति का स्थायी जाति प्रमांण पत्र जारी कर दिया जिसके भाईयों के भी राउत मद्रासी और उसके बाद गोंड बन जाने का अजीबोगरीब दास्तान सामने आया है। प्राथमिक स्कूलों के अभिलेख से यह उजागर हुआ है की जिस बमलेश्वर बोमडे को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व ने गोंड जाति का स्थाई जाति प्रमांण पत्र प्रदान कर दिया उसके दो जुडवा भाई एक ही स्कूल में जब प्राथमिक शाला में पढ़ने गये तब उनका नाम दाखिल करते वक्त उनकी जाति राऊत दर्ज है पर उन्ही दो भाई में से एक भाई जब अपने बच्चे को उसी प्राथमिक शाला में पढ़ाने के लिए नाम दाखिल कराया तो अपने बच्चे की जाति गोंड लिखवा दिया था वंही उसी के एक भाई का उसी गांव के दूसरे प्राथमिक शाला में नाम दाखिल कराया गया था तब उसकी जाति ही नहीं लिखवाया गया था और शाला के प्रधानाचार्य द्वारा जाति वाला कालम कोरा छोड़ दिया गया था। परन्तु उसी शाला के दूसरे अभिलेख में उसकी जाति मद्रासी लिखा हुआ मिला। मद्रासी भी “जाति” होता है यह शाला का अभिलेख प्रमाणित करता है।एक पिता के सभी संतानों की जाति जिस तरह से शालाओं के अभिलेख में दर्ज करवाया गया और बाद में सभी खुद को गोंड लिखकर आदिवासी बन गये और आदिवासी का लाभ अर्जित करने लग गये।

यह देखने में आते रहता है कि आदिवासी होने का अपना फर्जी जाति प्रमाण-पत्र बनवाकर आरक्षित वर्ग को प्रदत्त संवैधानिक अधिकार – संरक्षण एवं रियायत का लाभ अर्जित करने के लिए लोग एक से एक हथकंडा अपनाते हैं वंही अधिकारियों को जाति प्रमाण-पत्र बनाने हेतु सावधानी बरतने हेतु समय समय पर दिशा निर्देश भी जारी किया जाता है फिर भी फर्जी जाति प्रमाण-पत्र धारियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है।

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समय समय पर अनुसूचित जाति जन जाति वर्ग के हित एवं हक के लिए सजग रहकर सक्रिय रहने वाले नेताओं एवं संघ संगठन द्वारा भी फर्जी जाति प्रमांण पत्रधारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाया जाता रहा है फिर भी आज तक भी फर्जी जाति प्रमांणपत्र धारियों पर कोई ठोस कानूनी कार्रवाई नहीं हो पाया और फर्जी लोग आज भी असली आदिवासियों एवं दलितों का हक मारकर बड़े मजे से मौज उडा रहे हैं।

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मूलतः दक्षिण प्रदेश से पिछले दो तीन दशक पूर्व केशकाल के डिहीपारा में एक दो परिवार आया जो पत्थर तोड़ने का काम करके जीवन निर्वाह करते यंही बस गया। जिन्हे यंहा के लोग मद्रासी मद्रासी बोलने लग गये। उसमें से एक परिवार प्रमुख …..ने जामगांव में एक गैर आदिवासी से कृषि भूमि लेकर लंबे समय तक कृषि करता रहा पर बहुत लंबा समय तक रहने के बाद उसे अपनी कृषि भूमि बिक्री करके जाना पड़ा और वह अपना कृषि भूमि एक गैर आदिवासी परिवार को बिक्री करके यंहा से चला गया । वंही उसके सांथ ही दक्षिण से आया कलीप्पा और उसका परिवार यंही का होकर रह गया तथा सदा सदा के लिए यंही बस गया। कलीप्पा ने बहुत गरीबी में जीवन गुजर बसर करके पत्थर तोड तोड़कर अपने परिवार का पालन पोषंण किया। कलीप्पा ने अपने बच्चों को जब प्राथमिक शाला डिहीपारा 19-8-1998को पढ़ाने के लिए भर्ती करवाया तो श्रीराम एवं लक्ष्मंण नाम के जुडवा दोनों बच्चों की जाति राऊत लिखवा दिया था। पर उसी स्कूल में जब श्रीराम 11-8-2020 को अपने पुत्र भावेश को पढ़ाने के लिए उसका नाम दाखिल करवाया तो उसकी जाति गोंड लिखवा दिया।जो खुद उसी स्कूल में राउत जाति का होकर पढ़ा था वहीं अपने बेटे को गोंड बताकर भर्ती कराया जो समझ से परे है।इसका मतलब यह की इस बीच जाति परिवर्तन कर श्रीराम गोंड बन गया।जबकि उसका एक भाई जो भी कलीप्पा का ही पुत्र हैं जिसका नाम कृष्णा है उसका नाम प्राथमिक शाला बोरगांव में10-8-1985 को दाखिल करवाया गया है तो वंहा जाति लिखवाया ही नहीं गया था। परन्तु शाला के एक अभिलेख में उसकी जाति-मद्रासी लिखा हुआ आज भी देखा पढ़ा जा सकता है। आश्चर्य की बात तो यह भी है कि नाम दाखिल खारीज पंजी में जाति वाला एक कालम होता है जिसमें बच्चों की जाति लिखना ज़रूरी होता है क्योंकि यही भविष्य में जाति निर्धारंण एवं जाति प्रमांण पत्र बनाने का मुख्य आधार बनता है ।उस शाला में दाखिल खारीज पंजी में सभी बच्चों की जाति लिखा गया है बस कलीप्पा के पुत्र कृष्णा की जाति न लिखकर कोरा छोड़ दिया गया ।

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श्रीराम लक्षमंण कृष्णा के अलावा कलीप्पा का एक और पुत्र बमलेश्वर बोमडे है जिसे लोग आज भी बोमडे उपनाम से ही जानते पहचानते हैं ,परन्तु वह ग्रामपंचायत बोरगांव के रहुनाओं और राजस्व विभाग के कर्मचारी-अधिकारी के कृपा से अब सरकारी अभिलेखों एवं मतदाता सूची आधार कार्ड में मरकाम बन गया है।बताया जाता है की वह विधिसम्मत जाति प्रमांण पत्र के बगैर ही खुद को गोंड जाति का होना लिखकर केशकाल से सटे बोरगांव के थनवारीन बेवा रजनाथ एवं दिगर से उसके खसरा नं.77/912में से 21डिसमिल कृषि भूमि क्रय कर लिया था और उसी का बी वन और ग्रामपंचायत बोरगांव के ग्रामसभा 25-7-2008के प्रस्ताव की छायाप्रति लगाकर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व के पास आवेदन लगा दिया था और उस वक्त पदस्थ अनुविभागीय अधिकारी राजस्व ने भी बडी उदारतापूर्वक जाति प्रमांण पत्र 24-12-2008को पुस्तक क्र.16से बनाकर जारी कर दिया था। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व से गोंड जाति का प्रमांण पत्र मिलने के बाद गोंड जाति के आदिवासी की जमीन खरीदने बेचने का काम भी करने लगा फलस्वरूप आज उसके पास राष्ट्रीय राजमार्ग के तीगड्डे पर और कयी स्थानों पर जमीन है । अन्य प्रदेश से आदिवासी बाहुल्य बस्तर में आकर नफा नुकसान के दृष्टिकोण से गोंड बनकर आदिवासी होने का लाभ अर्जित करने वाले कलीप्पा के पुत्रों के जाति की सही ढंग से जांच पड़ताल करने से यह साफ हो जायेगा की किस तरह से कूटरचित फर्जी दस्तावेज से आदिवासी होने का जाति प्रमाण-पत्र प्राप्त कर लिया जाता है और फिर जाति प्रमांण पत्र प्राप्त कर नकली आदिवासी असली आदिवासी की अपेक्षा कितनी जल्दी कितना ज्यादा फायदा उठा लेता हैं और संबंधित सक्षम अधिकारी अपने आंखों के सामने तथा अपनी जानकारी में होने वाले गैरकानूनी कृत्य को जानते हुए भी कैसे अनजान होने का स्वांग करते आंख मूंद लेते हैं।

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