(अर्जुन झा)
रायपुर। छत्तीसगढ़ भाजपा संगठन में बदलाव की सुगबुगाहट के बीच एक नजारा सामने आया है कि जिन्हें तेज तर्रार प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी रास नहीं आतीं, उन्हें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से आस बंधी। वे पुरंदेश्वरी से कथित उपेक्षित स्थानीय नेताओं की खास बनकर उभरीं।गांधी परिवार की परंपरागत सीट रहीअमेठी में कांग्रेस के कर्णधार रहते हुए राहुल गांधी को परास्त कर देने वाली भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने छत्तीसगढ़ आकर जिस तरह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को राजनीतिक चुनौती देते हुए यहां भाजपा के मुरझाए चेहरे पर नया नूर ला दिया, वह काफी अहमियत रखता है। वैसे स्मृति का यहां से पुराना नाता है। वे छत्तीसगढ़ आती रहती हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त भी यहां सक्रिय थीं मगर तब तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा माहौल था। नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे दिग्गज भी कमल मुरझाने से बचा नहीं पाये थे। डेढ़ दशक की सत्ता के बाद भाजपा के प्रति असंतोष तथा कांग्रेस के ठोस वादों और बुलंद इरादों की वजह से वही हुआ, जिसका डर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को था। भाजपा ने उस हार से सीख ली और लोकसभा चुनाव में अपना सम्मान सलामत रखा। याद किया जा सकता है कि अमेठी में पहली बार में राहुल के सामने न टिक पाने वाली स्मृति ईरानी ने हार नहीं मानी और भाजपा ने लक्ष्य प्राप्त करने के इरादे से स्मृति को प्रथम मोदी सरकार में मंत्री बनाया तो स्मृति ने 2019 के चुनाव में राहुल को अध्यक्ष व प्रधानमंत्री पद के लिए कांग्रेस का चेहरा रहते हुए पराजित किया। वैसे 2014 के चुनाव में भाजपा ने स्मृति को अमेठी में राहुल को घेरने का काम सौंपा था, जो उन्होंने निभाया। आखिरकार राहुल गांधी को उनकी खानदानी सीट से हाथ धोना पड़ा। स्मृति ने अमेठी में जो कर दिखाया, उसका जो असर कांग्रेस पर पड़ा है, वह लंबे समय तक रह सकता है। इसकी एक बानगी 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में कांग्रेस को सारी ताकत झोंकने के बावजूद सिर्फ दो सीट मिलना है।अब स्मृति ने छत्तीसगढ़ आकर कुछ घंटों में भाजपा में वह उत्साह भर दिया, जो उसकी प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी निरंतर सक्रियता के बाद भी अब तक नहीं भर सकीं। स्मृति के आने से पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह भी गदगदायमान हो गए। स्मृति के साथ छत्तीसगढ़ भाजपा की कई स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यहां के भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं में स्मृति के प्रति अपनापन झलकता है। वे यहां सहज भी हैं। अब प्रश्न यह है कि क्या अगले विधानसभा चुनाव में करिश्मा दिखाने भाजपा संगठन की प्रदेश प्रभारी के साथ स्मृति के रूप में चुनाव प्रभारी तैनात कर सकती है? पूरी संभावना है कि भाजपा चुनाव प्रभारी तो तैनात करेगी किंतु क्या वह स्मृति ईरानी ही होंगी? यदि ऐसा होता है तो भाजपा को यहां ऐसा चमकदार चेहरा मिल सकता है जो राहुल, अमेठी, यूपी चुनाव में छत्तीसगढ़ कांग्रेस की भूमिका और परिणाम जैसे मुद्दों पर कांग्रेस को परेशान कर सकता है। स्मृति ने जिस तरह कांग्रेस पर हमला बोला है, भाजपा को ऐसे ही तेवरों की जरूरत है। स्मृति अपने इरादे बता गईं कि जब राहुल गांधी उनके सामने नहीं टिक पाये तो फिर कुछ भी नामुमकिन नहीं है। वैसे भाजपाई नारा दे सकते हैं कि स्मृति है तो मुमकिन है। स्मृति के इस दौरे के कई राजनीतिक मायने हैं। वे यहां की नब्ज टटोल गई हैं। राजनीतिक पंडित यह जरूरत महसूस कर रहे हैं कि यदि भाजपा को सरकार बनाने संघर्ष तेज करना है तो पुरंदेश्वरी को संगठन मजबूत करने की जिम्मेदारी के साथ स्मृति को सियासी माहौल बनाने तैनात कर देना चाहिए। चुनाव में डेढ़ साल का वक्त है तो अभी से कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ ही महिला वोटरों को आकर्षित करने की मुहिम शुरू कर देना फायदेमंद साबित हो सकता है। स्मृति देश की महिला बाल विकास मंत्री हैं, उनके विभागीय कामकाज से भी भाजपा के लिए काफी कुछ गुंजाइश निकल सकती है।