रिश्तेदारी निभाकर मानवीय रिश्तों को कर सकते है मजबूत, बीजापुर के वासम परिवार ने पेश की ऐसी ही मिसाल, वर्षों बाद एक छत के नीचे जुट रिश्तों की महत्ता से भावी पीढ़ी को कराया अवगत

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बीजापुर। रिश्तेदारी सबसे सर्वभौमिक और सभी मानवीय रिश्तों की बुनियाद है। व्यस्ततम जीवन शैली और एकांकी परिवार की अवधारणा के चलते वर्तमान में ना सिर्फ संयुक्त परिवार बल्कि रिश्तेदारी की डोर भी कमजोर हो चली है, इसके बाद भी हमें ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाते हैं जो संयुक्त परिवार और रिश्तों की पक्की डोर की मिसाल पेश करते समाज को संदेश भी दे रहे हैं। इसे चरितार्थ कर दिखाया है बीजापुर के वासम परिवार ने। जिनकी रिश्तेदारियां बीजापुर, भोपालपट्नम, संकनपल्ली, यापला, चिन्नामाटूर से लेकर चंदूर गांव तक हैं। रविवार का दिन वासम परिवार के लिए यादगार रहा।

परिवार की छठवी पीढ़ी भोपालपट्नम के एक पुस्तैनी मकान की एक ही छत के मौजूद थे। इस पीढ़ी के 65 सदस्य जिसमें दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-चाची, मामा-मामी से लेकर पुत्र, पौत्र, नाती-पोते सभी मौजूद थे। अलग-अलग गांव-कस्बों में बसे रिष्तेदारों का यह मिलन समारोह शिक्षा विभाग में कार्यरत् अभियंता शैलेश वासम के पिता गोपाल वासम की पहल और रिश्तेदारियों की महत्ता को सार्थक करती सोच की बदौलत संभव हो पाया। मिलन समारोह के पीछे श्री वासम की सोच थी कि भावी पीढ़ी अपनी रिश्तेदारियां और रिश्तेदारों को जाने-पहचाने और उनसे परस्पर संपर्क में रहें। ताकि आवश्यकता पड़ने पर सुख और दुख दोनों ही क्षणों में वे अपनों के पास खड़े रहे। बीजापुर का वासम परिवार की पुरखे वारंगल से बस्तर पहुंचे काकतीय राजवंष के साथ यहां पहुंचे थे और काकतीय राजपाठ की स्थापना के साथ वे भी यही बस गए और पीढ़ी आगे बढ़ते चली गई।

पुस्तैनी मकान में जुटे परिवार के सदस्यों का अनुभव रहा कि वे अपने अधिकांश रिश्तेदारों से भलीभांति अवगत नहीं थे। भावी पीढ़ी के लिए यह क्षण तो और भी सुखद था। खासकर बच्चों के लिए जिन्हें ज्ञात हुआ कि इनमें से कोई उनका चाचा या चाची, मामा-मामी, बुआ है। उनका उनसे क्या रिश्ता है यह जान वे बेहद खुश हुए। इस यादगार क्षण में सभी सदस्य आपस में मिले और एक-दूजे का हाल-चाल जाना। इतना ही नहीं बराबर संपर्क बनाए रखने मोबाइल नंबर भी एक-दूसरे को दिए। एक छत के नीचे भोजन और फिर लम्बी बातें रिश्तेदारों में हुई। यह मिलन समारोह पूरे दिन चलता रहा। अंत में रिश्तेदारों ने विदा लेते एक दूसरे से यह वादा भी किया कि हर बरस एक नबंवर को वे पुनः एक छत के नीचे जुटेंगे ।