- कीचड़ भरी कच्ची सड़क पर चलने की मजबूरी
- ग्राम पंचायत ने उपेक्षित छोड़ दिया है बस्ती को
अर्जुन झा-
बकावंड एक बस्ती, 80 परिवार और 50 साल की त्रासदी। इस बीच बस्ती में कई लोग पैदा हुए और मर खप गए। आज से 50 साल पहले जो यहां पैदा हुए थे, आज उनके बाल पक चुके हैं, वे दादा नाना बन चुके हैं, मगर बस्ती की सड़क पक्की नहीं हो पाई। अब लगता है उनके नाती पोते भी ऎसी ही बदहाली के बीच जवान होंगे।
यह व्यथा कथा है विकासखंड बकावंड की ग्राम पंचायत छिदीगांव- 2 के डुरकाटोगा पारा बस्ती की।डुरकाटोगा बस्ती में बीते 50 साल से 80 परिवार रहते आ रहे हैं। पचास साल गुजर जाने के बाद भी एक अच्छी सड़क इस बस्ती को नसीब नहीं हो पाई है। जहां आज पूरे छत्तीसगढ़ के हर गांव की हर गली में सीसी रोड बन चुकी है, वहीं डुरकाटोगा पारा बस्ती के लोग मिट्टी वाली सड़क पर आना जाना करने मजबूर हैं। यहां सीसी रोड बनाना तो दूर सालों पुरानी कच्ची सड़क पर ग्राम पंचायत ने मुरुम तक डलवाना जरूरी नहीं समझा है। बरसात के दिनों में यहां के ग्रामीणों का दूसरे गांवों तक जाना दूभर हो जाता है। यहां तक कि ग्राम पंचायत मुख्यालय छिंदीगांव-2 जाने के लिए भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। ग्रामीणों के मुताबिक ग्राम पंचायत में सड़क पर मुरूम डालने का निवेदन करने पर जवाब मिलता है कि फंड उपलब्ध नहीं है। शासन ग्राम पंचायतों को हर साल करोड़ों रुपयों का आवंटन अलग अलग मदों से करती है। जिला खनिज न्यास मद से बड़ी रकम मिलती है, 14वें एवं 15वें वित्त की भी भरपूर रकम मिलती है। केंद्र सरकार ने भी जन मन योजना के तहत आदिवासी गांवों के समग्र विकास के लिए खजाना खोल दिया है। ऐसे में यह बड़े ही ताज्जुब की बात है कि छिंदीगांव -2 ग्राम पंचायत के पास मुरुम डलवाने के लिए 4-5 हजार रुपए भी नहीं हैं? रुपए तो बहुत होंगे, मगर इस बस्ती के साथ उपेक्षा भाव के कारण उन रुपयों का उपयोग इस बस्ती के लोगों को राहत पहुंचाने के लिए नहीं किया जा रहा है। ढुरकाटोगा पारा के मुरहा, लुकू, मंगल, सुरीले, लघु, सुमन, सुरेंद्र, फाल्गुनी, भारत, बोटी, चेलिया, सुकरू आदि ग्रामीणों का कहना है कि कई सरपंच आकर चले गए लेकिन हमारे पारा में कुछ भी सुधार नहीं हो पा रहा है। आने वाला समय में जो काम करेगा उसी को हम सरपंच बनाएंगे।
वर्सन
पंचायत में फंड नहीं है
ग्राम पंचायत फंड में राशि नहीं है, कहां से मुरूम डालेंगे।
–बालेशर बघेल,
सरपंच, छिंदीगांव -2