- आदिवासियों के अधिकार के लिए लड़ता है संगठन
जगदलपुर जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जीत गुहा नियोगी ने कहा है कि बस्तर आदिवासियों पर अत्याचार का विरोध करते आ रहे संगठन मूलनिवासी बचाओ मंच पर प्रतिबंध निंदनीय है। कठपुतली आदिवासी मुख्यमंत्री द्वारा अपने ही जात, सगा, समाज पर जन सुरक्षा कानून के तहत प्रतिबंध लगा देना जुल्म की पराकाष्ठा है।
जनमुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जीत गुहा नियोगी ने कहा है कि कांग्रेस व भाजपा द्वारा केंद्र व राज्य में बारी बारी से शासन करते हुए, बस्तर में आदिवासियों पर शोषण जुल्म के साथ-साथ बहुतायत में निर्दोष आदिवासियों की हत्या बदस्तूर जारी है। यह प्रतिबंध इस बात की पुष्टि करता है कि अब बस्तर के हित की बात करने वाले मूलनिवासियों को भी निशाना बनाना आसान हो जाएगा। आदिवासियों के कल्याण, उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात करने वाली सरकार बस्तर में ही आदिवासियों को जन मिलिशिया, बस्तर फाइटर, डीआरजी जैसे धड़ो में बांटकर निर्दोष आदिवासियों की निर्मम हत्या की योजना पर काम कर रही है। पूर्व से ही विदित है की बस्तर से आदिवासियों और मूलनिवासियों को विस्थापित कर आदिवासियों की नस्ल को खत्म कर यहां के जल जंगल जमीन खदान को बड़े उद्योगपतियों के हाथों को कौड़ियो के मोल देना चाहती है। इसीलिए बस्तर में कांग्रेस हो या भाजपा सत्ता में आने के बाद अंग्रेजों की तरह खोखले विकास को ढाल बनाकर बस्तर में शोषण अधारित राज करना चाहती है। सरकार के तलवे चांटते आदिवासी विधायक, सांसद भी आदिवासियों की हत्या को जायज बताते रहते हैं। सरकार को बड़े उद्योगपतियों की लूट के लिए रास्ता बनाने में नक्सलियों की चुनौती के बाद जागरूक आदिवासी जो अपने जल जंगल जमीन संस्कृती जिसमें खुद के वाद्य यंत्र साज सज्जा व अपने अस्तित्व व स्वाभिमान के लिए सरकार के समक्ष आवाज बुलंद करने वाले मुल निवासी, आदिवासियों के संगठन मूलनिवासी बचाओ मंच को चुनौती मानते हुए प्रतिबंध उस पर लगा दिया गया है। जीत गुहा नियोगी ने कहा है कि कॉर्पोरेट द्वारा पोषित सरकार बस्तर की आधी आबादी को जो, अपने जान-माल संस्कृतिक समागम, अस्तित्व व स्वाभिमान के लिए सच्चाई भरी लड़ाई को अवैध बताते हुए प्रतिबंधित किया गया है। जनमुक्ति मोर्चा सरकार से पूछना चाहती है कि क्या बस्तर की आधी अबादी जो सरकार की नजर में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुके आदिवासियों से वोट की खातिर आदिवासी एकता विकास और भाईचारे की बात करेगा या फिर इन प्रतिबंधित आदिवासियों से मतदान के अधिकार को छीन लिया जाएगा ? जीत गुहा नियोगी ने कहा कि बस्तर की सार्वजनिक संपत्ति और संसाधन को लूटने के लिए केंद्रीय गृहमंत्री द्वारा बिना गुरेज के सेना की स्थापना से लेकर हवाई हमले, ड्रोन हमले व अति आधुनिक हथियारों के बल पर बस्तर के निहत्थे आदिवासियों, मासूम बच्चों , महिलायों, युवाओं, बुजुर्ग सभी को भय और सरकारी आतंक के दम पर उनकी पुश्तैनी जगह से हमेशा के लिए बेदखल करना चाहती है। ये समझ से परे है कि बस्तर के मूलनिवासी बिना सरकारी मोहताज के तन में आधे कपड़े, जीविकोपार्जन के लिए शिकार, बिना स्कूल अस्पताल बिजली व पीने लायक पानी के जीवित रहने वाले लोग सरकार की नजर में कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक हो गए हैं। जीत गुहा नियोगी ने मानवाधिकार संगठनों बुद्धिजीवियों, छात्र संगठनों, जन कला सांस्कृतिक कलाकारों व आम नागरिकों से आह्वान किया है कि सरकार के इस फासीवादी नीति के खिलाफ एकजुट होकर आंदोलन की अपील की है। ताकि बस्तर के सोना चांदी, लौह अयस्क, नदी नालों, जल जंगल पहाड़ को बड़े उद्योगपतियो कॉर्पोरेट घरानों से बस्तर के आदिवासियों की संपत्ति को चारागाह बनने से बचाया जा सके।