अर्जुन झा
जगदलपुर। भाजपा की छत्तीसगढ़ प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी के प्रवास के ठीक पहले प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को उस बस्तर की सुध आई है, जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव में पार्टी का सफाया हो चुका है। अब साय इस अंचल में भाजपा को फिर से कैसे खड़ा करेंगे, यह सबसे बड़ी चुनौती है। भाजपा के राज मे सत्ता की मलाई खाने वालों ने संघर्ष के दौर में किनारा कर लिया है। वैसे भी हारे थके नेताओं की भीड़ यहां भाजपा का कोई भला नहीं कर सकती। इसके लिए प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को वैसी ही काफी मेहनत करनी होगी, जैसे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भूपेश बघेल ने की थी। कांग्रेस ने बस्तर और सरगुजा जैसे आदिवासी बहुल इलाकों में बहुत योजनाबद्ध तरीके से मैदानी मेहनत की थी।
बस्तर ने कांग्रेस का सौ फीसदी साथ दिया। लोकसभा चुनाव में सरगुजा में भाजपा ने बाजी मारी लेकिन बस्तर में कांग्रेस ने भाजपा को गरीब बना दिया। अब यही गरीबी भाजपा को परेशान कर रही है। पार्टी के आयोजनों में होने वाले खर्च को लेकर पुराने नेताओं की अरुचि ने भाजपा की कमजोरी को उजागर करना शुरु कर दिया है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के स्वागत की बड़ी बड़ी घोषणाएं करने वाली भाजपा के पास मध्य बस्तर जिला संगठन में तैयारियों को लेकर राशि का टोटा चर्चा का विषय बन गया। है। कहा जा रहा है कि रमन सिंह के राज में मलाईदार पदों पर रहने वाले अब बदले हुए हालात में पार्टी के आयोजनों में आर्थिक सहायता देने से पीछे हट रहे हैं तो नए पदाधिकारी व निर्वाचित पार्षदों से रकम वसूलने की नौबत आ गई।
इस मामले में संगठन व राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म है कि बिना आर्थिक प्रबंध के भाजपा यहां कैसे सक्रिय हो सकती है? यह भी कहा जा रहा है कि पंद्रह साल तक सत्ता की मलाई खाने वालों की अलोकप्रियता की वजह से ही बस्तर में भाजपा बदतर स्थिति में पहुंच गई। इन्हें समय रहते ठिकाने लगा दिया गया होता तो बस्तर पूरी तरह भाजपा मुक्त नहीं हुआ होता। किसी बड़े अंचल में जब किसी सियासी पार्टी का ऐसा सफाया होता है तो आम कार्यकर्ता का मनोबल टूट जाता है। भाजपा को समय रहते अपने संगठन को कसना चाहिए था और सत्ता की राजनीति से जुड़े नेताओं के कार्य व्यवहार की बारीकी से समीक्षा करनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके लिए भाजपा का प्रदेश संगठन जिम्मेदार नहीं है। सत्ता काल में सरकार महत्वपूर्ण हो जाती है और संगठन गौण हो जाता है।
जैसे कि अभी कांग्रेस में विधायक बाद, मंत्री वाद, सत्ता से जुड़े लोगों का परिवारवाद चर्चित हो रहा है, वैसे ही डेढ़ दशक तक भाजपा में चलता रहा। अब संगठन में बदलाव की बयार बही है। राजनीति की फसल चौपट हो जाने, खेत उजड़ जाने के बाद नई प्रदेश प्रभारी के सख्त मार्गदर्शन में भाजपा नए सिरे से खड़े होने की कोशिश कर रही है। नए चेहरों में उत्साह तो है लेकिन संसाधन नहीं हैं। जो सत्ता काल में सब कुछ अर्जित कर लेने के बाद जनता द्वारा ठुकरा दिए गए, वे अब अपना अर्जित राजनीतिक पुण्य पार्टी के संघर्ष में जाया करने तैयार नहीं हैं। ऐसे ही संक्रमण काल से नई संभावनाओं का जन्म होता है। भाजपा को ऐसे लोगों को एक झटके में किनारे कर देना चाहिए, जो भाजपा के सड़क पर आ जाने के बाद उसका दर्द महसूस नहीं कर रहे। कांग्रेस ने पंद्रह साल तक संसाधनों की कमी के बावजूद संघर्ष में कोई कसर बाकी नहीं रखी। नतीजा सामने है कि पूरे बस्तर में कांग्रेस तर गई और भाजपा बिखर गई। बस्तर में अब भाजपा की नई टीम पर जिम्मेदारी है कि वह पार्टी की मुरझा चुकी उम्मीदों को हरा करें।
इस मामले में भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी और प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय कौन सा ज्ञान देते हैं, यह देखना होगा। मगर पहले तो व्यावहारिक जरूरतों पर ध्यान देने के साथ ही मैदानी हालात को देखना होगा। बस्तर में पूरा सफाया होने के बाद भाजपा को तभी से जुट जाना चाहिए था। किन्तु दो साल बाद वह जागी है। अब धान खरीदी के मुद्दे पर उसके संघर्ष की धार कमजोर रूप में सामने आई है। भाजपा के आंदोलनों को किसानों को कोई खास रुझान हासिल नहीं हो रहा। उल्टे कांग्रेस ही तीन केन्द्रीय कृषि सुधार कानूनों और बारदानों की कमी को लेकर भाजपा और उसकी केंद्र सरकार पर चौतरफा हल्ला बोल रही है। फिर बस्तर के नगरनार संयंत्र को लेकर कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार और कांग्रेस के नुमाइंदों की सक्रियता भी भाजपा के आड़े आ रही है, क्योंकि इस मामले में भाजपा के रवैए को बस्तर विरोधी मानसिकता के तौर पर प्रचारित करने में कांग्रेस ने बाजी मार ली है। बस्तर में कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए भाजपा के पास न तो प्रभावशाली मुद्दे हैं, न संसाधन और न ही मनोबल। ऐसे में सबसे पहले तो भाजपा को अपना नजरिया स्पष्ट करना होगा। फिर नई टीम को आर्थिक संसाधन उपलब्ध कराने होंगे। बिना कारतूस वाली सियासी बंदूकों को ठिकाने लगाना होगा। प्रदेश के सभी बड़े भाजपा नेताओं को बस्तर में एकजुट कसरत करनी होगी, तभी निचले स्तर तक कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा सकता है।