अनुसुइया के दौरे से काम को गति और भाजपा को मिलेगी प्रगति…शाह की पटकथा पर कांग्रेस भरेगी आह

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जगदलपुर – अर्जुन झा
छत्तीसगढ़ की राज्यपाल के रूप में आम जनता से मिलने के मामले में कीर्तिमान स्थापित करने वाली अनुसुइया उइके अगर निकट भविष्य में राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की सीमा में आ जाएं तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। वजह राज्यपाल अनुसुइया उइके का कोई भी राजनीति प्रेरित उपक्रम नहीं है। किंतु राजनीति में बाल की खाल निकालना कोई नई बात नहीं है। पिछले दिनों राज्यपाल अनुसुइया उइके ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। उन्होंने शाह को छत्तीसगढ़ आने का न्योता दिया था। उसी मौके पर गृहमंत्री शाह ने राज्यपाल अनुसुइया उइके से कहा था कि वह ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रवास करें। सरकार ने इन क्षेत्रों के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। राज्यपाल के उन क्षेत्रों में दौरे से क्रियान्वयन को और गति मिलेगी। यह तो सभी जानते हैं कि राज्यपाल केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों के अनुसार उचित कार्य करते हैं। किंतु विरोधी राजनीति की भाषा में राज्यपालों को केंद्र का एजेंट करार दे दिया जाता है। भले ही वे अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभा रहे हों, तब भी विपरीत विचारधारा की राजनीति में राज्यपालों पर अंगुली उठती ही रही है। अब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने राज्य के आदिवासी अंचल बस्तर में सक्रियता दिखाई है तो इसे अमित शाह के निर्देशों का अनुपालन बताने से राजनीति वालों को कौन रोक सकता है? यह कहा जाएगा की भाजपा के रणनीतिकार ने केंद्रीय गृहमंत्री के तौर पर ऐसा भले ही योजनाओं के संदर्भ में कहा हो, किंतु इसका मकसद छत्तीसगढ़ की आदिवासी भूमि में उजड़ चुकी भाजपा को फिर से स्थापित करने का इरादा ही है।

यद्यपि राज्यपाल अनुसुइया उइके भूमकाल आंदोलन के महानायक गुंडा धूर के सम्मान में इस आंदोलन की वर्षगांठ के अवसर पर बस्तर पधारी और उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासियों के हितों की रक्षा करेंगी। उनके पद पर रहते हुए चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। राज्यपाल का पद राजनीति से परे होने के बावजूद राजनीति का शिकार होता रहा है। कई नजीर हैं जिनके कारण राज्यपाल को राजनीतिक दल केंद्र का एजेंट बता देते हैं लेकिन यह दस्तूर हर राजनीतिक दल की सत्ता के दौरान कायम रहता है। अब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके ने बस्तर दौरे के दौरान जो कुछ भी कहा, उसे क्या अमित शाह के अघोषित राजनीतिक निर्देश का पालन नहीं माना जाएगा? शाह देश के गृहमंत्री हैं, उनके निर्देश के मुताबिक किसी भी राज्य के राज्यपाल को उस राज्य की बेहतरी के लिए प्रयास करने चाहिए, यह एकदम सही है। किंतु जिन राज्यों में केंद्र की विपरीत विचारधारा की राज्य सरकारें हैं, वहां राज्यपाल के जरिए राज्य में राजनीतिक उपक्रम नहीं माना जाएगा तो क्या माना जाएगा? हालांकि कोई भी राज्य सरकार राज्य के संवैधानिक प्रमुख को किसी भी क्षेत्र में सक्रिय होने से नहीं रोक सकती।

यहां अगर यह भी मान लिया जाए कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कहने पर छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके राज्य के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में योजनाओं से रूबरू हो रही हैं, तब भी इससे फायदा तो छत्तीसगढ़ के आदिवासी और ग्रामीणों को ही होगा। लेकिन राजनीतिक नुकसान किसका होगा, अगर केंद्रीय योजनाओं के सटीक क्रियान्वयन से राज्य का विकाश होगा, विकास की परियोजनाओं को गति मिलेगी तो इससे आखिरकार भाजपा को भी तो राजनीतिक प्रगति मिलेगी। तब छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ऐसा क्यों चाहेगी? वह यह तो चाहेगी की राज्य का विकास हो, किंतु राजनीति का तकाजा यही है की श्रेय कहीं इधर उधर न होने दिया जाय।