स्व. दादा बलीराम कश्यप थे भगवान राम जी के अनन्य उपासक, वनांचल क्षेत्रों में जगाये थे हिंदुत्व की अलख
बस्तर भाजपा के पितृ पुरूष स्वर्गिय बलीराम कश्यप जिन्होंने संघर्षों के पसीने व अड़िग सिद्धान्तों पर चलकर बस्तर में भाजपा का मैदानी जमीन तैयार किया उनकी स्मृति में गृह ग्राम फरसागुड़ा में दो दिवसीय मानस महोत्सव का आयोजन हुआ जिसमें रामायण प्रेमी मण्डलियों ने भाग लिया व नारायणपुर, बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा व कोंडागाँव सहित पूरे छत्तीसगढ़ से भगवान श्री राम जी मे भक्तों ने दादा की समृति में एकत्रित होकर समाधि स्थल में श्रद्धाजंलि अर्पित किया।
स्व. दादा बलीराम कश्यप अपने निश्छल, बेबाक व्यक्तित्व व समर्पित जनसेवक के प्रितिमूर्ति हैं जिन्हें क्षेत्र की जनमानस आज भी अपना आदर्श पुरुष मानती हैं और उनके पदचिन्हों का अनुशरण करते हैं।
स्वर्गिय बलीराम कश्यप आदिवासियों के प्रखर आवाज व राजनीतिक सफर
जिन्होंने बलिराम कश्यप को देखा था, उनकी आवाज की खनक सुनी है और उनकी बेबाकी से दो-चार हुए हैं-वे उन्हें भूल नहीं सकते। भारतीय जनता पार्टी की वह पीढ़ी जिसने जनसंघ से अपनी शुरूआत की और विचार जिनके जीवन में आज भी सबसे बड़ी जगह रखता है, बलिराम जी उन्हीं लोगों में थे। दादा आदिवासी के सबसे प्रखर आवाज थे जिनकी गूँज दिल्ली तक थी। अपने जीवन और कर्म से उन्होंने हमेशा बस्तर के लोगों के हित व विकास की चिंता की। भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में उनका एक खास स्थान था।
उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सच को कहने से चूकते नहीं थे। उनके लिए अपनी बात कहना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी, भले ही इसका उन्हें कोई भी परिणाम क्यों न झेलना पड़े। वे सही मायने में बस्तर की राजनीति के एक ऐसे नायक हैं, जिन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पांच बार विधायक और चार बार सांसद रहे स्व. दादा ने बस्तर इलाके में जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को आधार प्रदान किया। 1990 में वे अविभाजित मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार में मंत्री भी रहे। छत्तीसगढ़ राज्य में भाजपा की सरकार बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनकी ईमानदारी और पार्टी के प्रति निष्ठा का ही प्रतीक निष्ठावान थे। बस्तर इलाके में आज भाजपा का एक खास जनाधार है तो इसके पीछे श्री कश्यप की मेहनत और उनकी छवि भी एक बड़ा कारण है।
बेबाकी और साफगोई उनकी राजनीति का आधार है। वे सच कहने से नहीं चूकते थे चाहे इसकी जो भी कीमत चुकानी पड़े। यह उनका एक ऐसा पक्ष है जिसे लोग भूल नहीं पाएंगें। बस्तर में माओवादी आतंकवाद की काली छाया के बावजूद वे शायद ऐसे अकेले जनप्रतिनिधि थे, जो दूरदराज अंचलों में जाते और लोगों से संपर्क रखते थे। आदिवासी समाज में आज उन-सा प्रभाव रखने वाला दूसरा नायक बस्तर क्षेत्र में नहीं है। वे अकेले आदिवासी समाज ही नहीं, वरन पूरे प्रदेश में बहुत सम्मान की नजर से देखे जाते थे। उनकी राजनीति में आम आदमी के लिए एक खास जगह है और वे जो कहते हैं उसे करने वाले व्यक्ति थे। माओवादियों से निरंतर विरोध के चलते उनके पुत्र की हत्या हो गयी। ऐसे दुखों को सहते हुए भी वे निरंतर बस्तर में शांति और सदभाव की अलख जगाते रहे और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ हमेशा लड़ते रहे।