वन परिक्षेत्र करपावंड के अंतर्गत चिउरगांव के मारीगुड़ा दाबडीगुड़ा जंगल तक करीब 10 किमी क्षेत्र में जंगल में आग लगी है। महुआ बीनने के लिए ग्रामीणों के द्वारा पेड़ के नीचे फैले सुखे पत्तों को जलाने के लिए आग लगाया जाता है। होली के दिन से लगी आग निरंतर बढ़ते जा रही है। जिसके चलते आसपास के वन क्षेत्र में खतरा बना हुआ है। सुखे जलाऊ और ईमारती लकड़ियाँ भी जल कर खाक हो रहे हैं। लेकिन करपावंड परिक्षेत्र के वन विभाग को आग बुझाने और जंगल में आग न लगाने ग्रामीणों को रोकने तथा समझाईश देने की पहल नहीं की जा रही है।
वन्य प्राणियों का शिकार – करीब 15 दिन पहले पाथरी के जंगल में जगली सूअर का अवैध शिकार किया गया था। वही रोजाना खरगोश को मारकर शिकारी हत्या कर रहे है। जनवरी महीने में एक हिरण को मारा गया था। वन विभाग के द्वारा खानापूर्ति कर हिरण की मौत को कुतो के द्वारा हमला किया जाना बताकर फाईल बंद कर दी गई। लेकिन लोगों का कहना है हिरण का शिकार किया गया था। उसे किसी हथियार से मारा गया। इस तरह वन के साथ-साथ वन्य प्राणियों को भी नुकसान पहुंचाया जा रहा है। संभाग मुख्यालय के नजदीक जहां आलाधिकारी रहते हैं वहां इस तरह वन विनाश होने से राष्ट्रीय क्षति हो रही हैं।
करपावंड वन परिक्षेत्र में आगजनी की सूचना मिली है। महुआ बीनने के लिए ग्रामीण हर साल सूखे पत्तों में आग लगाते हैं। लेकिन आग भड़कने से वन और वन्यप्राणी को नुकसान होता है। वन विभाग को तत्काल आग बुझाने स्थल पर कारवाई करनी चाहिए। साथ ही ग्रामीणों को मी आग लगाने से बचना चाहिए क्योंकि वन है उनकी जीविका जुड़ी हुई है। वन सम्पदा वनवासियों का रोजी-रोटी का जरिया भी है।
लखेश्वर बघेल, विधायक बस्तर
विशाल वन क्षेत्र को 2-4 चौकीदारों के भरोसे छोड़ दिया गया है। बताया गया कि यह आग बड़कोट कादोमाली जंगल तक फैल गई है। इस संबंध में वन विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों से पुछे जाने पर उनका कहना है कि ग्रामीणों ने आग लगाया है हमने नहीं लगाया है। महुआ सीजन में हर साल ऐसा होता है। गांव वालों को जंगल की रक्षा के लिए खुद सोचना चाहिए। इस तरह के गैर जिम्मेदाराना बयान से ग्रामीणों के हौसले बढ़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि जहां आग लगी है उस क्षेत्री सागौन, सरगी समेत अनेक प्रजाति के पेड़ों के बहुतायत है। यदि आग पर जल्दी काबुनहीं पाया गर तो काफी नुकसान की आशंका है |