गया साल के 365 दिन में हर दिन ज्ञानवर्धक एवं अध्यात्म का विस्मृत ना होने वाला सुखद एहसास कराता हुआ, ऑनलाइन सत्संग वर्तमान में भी राम बालक दास जी के सानिध्य में संचालित हो रहा है इस सत्संसग में बाबा कैलाशी जी द्वारा जिज्ञासुओ की जिज्ञासा का विद्वता पूर्ण उत्तर तत्काल दिया जाता है तो वही सुमधुर स्वर में संगीत मय भजन गायन से सारा ग्रुप गदगद रहता है,करोना काल का सदुपयोग करने में जन चेतना को धार्मिक एवं आध्यात्मिक आधार प्रदान करने का स्तुत्य श्रेय भी पूज्य रामबालक दास महत्यागी जी को ही जाता है इसके लिए पूरा भारत वर्ष आपका सदा आभारी रहेगा |
आज सत्संग परिचर्चा में नवरात्र पर्व की विशेष बधाइयों के साथ विभिन्न जिज्ञासाओं का भी समाधान बाबा जी के द्वारा किया गया, संतोष जी के द्वारा नवरात्र पर्व पर कई जगहों पर बलि प्रथा को मान्यता दी जाती है इस पर बाबाजी ने विचार दिया कि धर्म के नाम पर जीव हत्या गलत है यह निंदनीय प्रथा है हमारे भारतीय परंपरा में कभी भी यह नहीं कहा गया है वेद रामायण और महाभारत के सभी सुपात्रों ने इसका सदैव ही विरोध किया है अहिंसा परमो धर्म ही कहा गया है बल्कि वेद शास्त्र तो आत्म बलिदान को कहते हैं मां को आप को बलिदान देना है तो अपने अहंकार को अपने आत्म दम्भ को या मोह को बलि दे
तिलक राम जी राजिम ने सुंदरकांड को सुंदर क्यों कहा जाता है इस विषय में बताने की विनती बाबा से है कि बाबा जी ने सुंदरकांड की महिमा को बताते हुए कहा कि यह संपूर्ण राम चरित्र की रचना का सार है यह श्री हनुमान जी का कांड है जिन्होंने रामायण के पंच प्राणों की रक्षा की राम जी की सीता जी की लक्ष्मण जी की सुग्रीव और विभीषण जी की, राम जी को सीता जी का समाचार देकर सीता जी को मुद्रिका देकर लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी प्रदान कर उनकी प्राणों की रक्षा की सुग्रीव और विभीषण जी को राम जी की शरण प्रदान कर इसीलिए यह कांड सुंदरता से भरा हुआ है
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने नवरात्र में किए जाने वाले शक्ति पाठ और बीज मंत्र “ऐ “के उच्चारण के महत्व पर प्रकाश डालने की विनती की, इसके महत्व को बताते हुए बाबा जी ने कहा कि शक्ति व बीज मंत्र में” ऐ “शब्द का अभिप्राय भगवती माता के चंड मुंड संहार के लिए वह हुंकार जिसके प्रभाव से ही दुष्टों का नाश हो जाता है ऐसे मां भगवती मेरे अंदर आत्म ज्वाला भर दे |
सत्संग परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कौशल वर्मा जी ने ज्योति कलश के महत्व पर प्रकाश डालने की विनती बाबा जी ने इस पर अपने विचार रखते हुए बाबा जी ने बताया कि दीपज्योति स्वयं परमात्मा का स्वरुप है यह ज्ञानिक और वैज्ञानिक दोनों ही महत्व रखता है ज्ञानिक अर्थ से देखें तो दिव्य ज्योति की स्थापना 9 दिन परमात्मा के सानिध्य में साधना का भाव है और वैज्ञानिक रूप से देखें तो सब तरफ घी की ज्वाला जलने से वातावरण पवित्र और स्वच्छ हो जाता है
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग पूर्ण हुआ और एक वर्ष पूर्ण हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम