जगदलपुर।आदिवासी क्षेत्रों की संस्कृतियों में बस्तर जिले की संस्कृति की अलग ही पहचान है , जिसमें विशेष रूप से लोकनृत्य , लोकगीत , स्थानीय भाषा , साहित्य एवं बस्तर शिल्पकला प्रमुख हैं , इनको एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी तक शुद्ध रूप में हस्तान्तरण करना तथा बाकी देश दुनिया को इसका परिचय कराना और बस्तर में शासकीय कार्यों के सुचारू सम्पादन हेतु मैदानी क्षेत्र के अधिकारी, कर्मचारियों को यहाँ की स्थानीय भाषा को जानना आवश्यक है. उक्त बातें स्थानीय आसना मोटल में पहुंचे जिला कलेक्टर रजत बंसल ने मीडिया से चर्चा के दौरान कही है.
बंसल ने कहा कि मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ शासन भूपेश बघेल के द्वारा बस्तर जिला के धुरागांव लोहण्डीगुड़ा प्रवास के दौरान , इस विषय में कार्य करने हेतु निर्देशित किया गया था । इस निर्देश के परिपालन में जिला प्रशासन बस्तर द्वारा आसना , जगदलपुर में बस्तर अकादमी ऑफ डान्स , आर्ट , लिटरेचर एण्ड लेंग्वेज की स्थापना की जा रही है । इस अकादमी में प्रमुख रूप से चार प्रभाग होगें , जिसमें लोकनृत्य एवं लोकगीत संकाय, लोक साहित्य संकाय, भाषा संकाय, बस्तर शिल्पकला संकाय । लोकगीत एवं लोकनृत्य संकाय के तहत् लोक कलाकारों का पंजीयन कार्य प्रगति पर है , अभी तक लगभग 130 नृत्यदलों एवं व्यक्तिगत कलाकारों का पंजीयन हो चुका है । लोकगीतों के संकलन का कार्य भी किया जा रहा है । इसी तरह बस्तर के गंवर सिंग नाचा , डण्डारी नाचा , धुरवा नाचा , परब नाचा , आदि का विस्तृत संकलन भी जारी है ।
भविष्य में भी इन विधाओं में रूचि रखने वाले युवक – युवतियों को बादल में प्रशिक्षण भी दिया जायेगा । लोक साहित्य संकाय के तहत् बादल स्टॉफ द्वारा हल्बी , भतरी गोंडी में बस्तर की संस्कृति पर आधारित 51 कविताओं का संग्रह किया गया है , जो प्रकाशन के लिए तैयार है । इसके अतिरिक्त बस्तर के आदिवासी समाज में प्रचलित कहानी , गीत , ठसा , मुहावरा आदि का संकलन भी किया जा रहा है । जिन्हें संकलन कर पुस्तक का रूप दिया जायेगा । जिससे यह संरक्षित होने के साथ – साथ उच्च शिक्षा हेतु शोधकर्ता विद्यार्थियों के लिए भी सहायक होगा ।
भाषा संकाय के तहत बादल के दो स्टॉफ द्वारा हल्बी स्पीकिंग कोर्स और गोंडी स्पीकिंग कोर्स तैयार किया जा चुका है । जिसका शीघ्र प्रकाशन किया जायेगा । इसी तरह भतरी एवं धुरवी में स्पीकिंग कोर्स शीघ्र तैयार करने के लिए संबंधित समाज के विशेषज्ञों को नोडल नियुक्त किया गया है । उनके द्वारा कोर्स तैयार किया जा रहा है । भविष्य में बस्तर की इन भाषाओं पर भी बादल में प्रशिक्षण दिया जायेगा , ताकि बस्तर की लोक भाषा जन – जन तक पहुंच सके , और इन रचनाओं के प्रकाशन से उच्च शिक्षा के लिए शोधार्थी विद्यार्थियों को भी सहयोग प्राप्त होगा ।
बस्तर की शिल्पकला समृद्धशाली है जिसमें बेलमैटल , टेराकोटा , काष्ठकला , शीशलकला , तुम्बाकला , बांसकला आदि प्रमुख है , इन कलाओं को संरक्षण संवर्धन करने के साथ – साथ इसके कलाकारों को भी बादल में उचित मंच ,रोजगार देकर स्वालम्बन का अवसर प्रदान किया जायेगा । बादल संस्था में बस्तर की इन सभी कलाओं का संरक्षण एवं संवर्धन के साथ – साथ इनका प्रदर्शन भी किया जायेगा, जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा । पर्यटकों की सुविधा के लिए बादल संस्था में पर्यटक हट का निर्माण भी किया गया है । इस संस्था में अनेक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होगें , बस्तर के लोक कलाकारों को मंच मिलेगा । इस संस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए और क्षेत्रीय लोगों को इसका अधिक लाभ दिलाने के लिए बादल को संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ से जोड़ने का प्रयास भी जारी है । इन प्रमुख उददेश्यों के साथ आसना जगदलपुर में मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार बस्तर अकादमी ऑफ डान्स आर्ट लिटरेचर एण्ड लेंग्वेज की स्थापना की जा रही है ।