बाबा बगावत नहीं कर सकते, सियासी अदावत से बघेल का कुछ नहीं बिगड़ेगा…

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(अर्जुन झा)
रायपुर। छत्तीसगढ़ में राजनीति के गलियारों में अब यह चर्चा चहलकदमी कर रही है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच जारी सत्ता संघर्ष में भूपेश बघेल पूरी तरह विजेता की भूमिका में हैं। राज्य में सत्ता की सियासत में आंतरिक संघर्ष की कथित लौ भले ही जलती सी दिखने का अहसास कराती रहे लेकिन राज्य के विकास और जनता की खुशहाली के लिए यह जरूरी जान पड़ रहा है कि यथास्थिति बनाए रखना अनिवार्य होगा। और, कांग्रेस का शिखर नेतृत्व इस तथ्य से भली प्रकार अवगत है, इसलिए यह माना जा रहा है कि हल्की फुल्की उथल पुथल के बावजूद गहराई में कोई हलचल पैदा नहीं होगी। राजनीति में स्थिरता बहुत जरूरी है। यह विकास और जनहित की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में पंद्रह साल तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार में डॉ. रमन सिंह ने मुख्यमंत्री का दायित्व सम्हाला। उनकी पार्टी ने उन्हें तब तक अवसर दिया, जब तक जनता ने चाहा। राज्य गठन के बाद कांग्रेस ने भी अपनी पहली सरकार के मुख्यमंत्री अजीत जोगी को खुले दिल दिमाग से छत्तीसगढ़ के विकास की बुनियाद रखने का अवसर दिया। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ अपने साथ अस्तित्व में आए झारखंड और उत्तराखंड के मुकाबले ऊंचाइयों पर खड़ा है। यह अवधारणा बदलना छत्तीसगढ़ के हित में नहीं होगा। जनभावनाओं के विपरीत भी होगा। छत्तीसगढ़ की जनता ने नई और कई उम्मीदों के साथ भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस को चुना। तीन चौथाई सा विशाल बहुमत दिया तो वह इस कारण कि राज्य की जनता स्थायित्व चाहती है। सरकार का और उसके सरदार का भी। इसीलिए तो यह राज्य लगातार जन भावनाओं के अनुरूप काम करते हुए आगे बढ़ रहा है। इसमें कोई दो मत नहीं कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और तब के नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव ने मिलकर बेहद मेहनत की और कांग्रेस को अभूतपूर्व सफलता दिलाई। तब भूपेश बघेल सीएम पद के स्वाभाविक दावेदार थे लेकिन टीएस सिंहदेव की भी खूब चर्चा हुई। पार्टी नेतृत्व ने भूपेश बघेल में अधिक संभावनाएं देखीं और उन्हें दायित्व सौंपा गया। शुरुआती दौर में कभी किसी बंटवारे की बात नहीं उठी लेकिन फिर रह रहकर यह बात उठने लगी। जब सीएम पद पर भूपेश बघेल ने आधा कार्यकाल पूरा कर लिया तो उसके बाद ढाई ढाई साल का फार्मूला जोरशोर से उठा। दिल्ली दौड़ शुरु हो गई और यह दौर जारी है। टीएस सिंहदेव लगातार दिल्ली जा रहे हैं तो सीएम बघेल यूपी चुनाव में कांग्रेस के वरिष्ठ पर्यवेक्षक की हैसियत से दिल्ली और उत्तर प्रदेश में सक्रिय हैं। इधर राज्य की जनता उनकी शैली और नीति पर मोहित है। दूसरी ओर मंत्री सिंहदेव यह बता चुके हैं कि उनके संस्कार कैसे हैं। जाहिर है कि वे किसी हाल में कांग्रेस से बगावत नहीं कर सकते और भूपेश बघेल की फितरत ऐसी नहीं है कि छोटी मोटी सियासी अदावत से उनका कुछ भी बिगड़ सके।