आबकारी सिपाही के कारनामों का घड़ा भरा, कभी भी गिर सकती है गाज

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समूचे कार्यकाल की जांच की उठ रही मांग, लेकिन अब तक आबकारी विभाग की चुप्पी अश्चर्यजनक…
डीओ अपने कार्य में मस्त, इधर निचले कर्मी रोजाना मार रहे चौका-छक्का
राजस्व के इतने बड़े नुकसान की भरपाई क्या सिपाही से होगी?
डीओ के अंतिम फैसले, कितने सच्चे-कितने झूठे या माया ही माया
नहीं थम रहा नया बस स्टैंड की मदिरा दुकान में ग्राहकों को लूटने का सिलसिला

जगदलपुर

जिला आबकारी विभाग में पदस्थ अदने से सिपाही की भ्रष्ट कार्यशैली और इसके तेवर के सार्वजानिक होने के बाद राज्य स्तर से इस पर कार्यवाई होने की खबरें आ रही हैं. यही नहीं इसकी पदस्थापना से लेकर अब तक के कार्यकाल की भी जांच हो सकती है. इधर समूचे जिले के लाईज़निंग का भार अपने काँधे पर लिए इस सिपाही के तेवर अब भी कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं और समय के साथ इसकी कारगुजारियां सामने आने लगी है. ताज्जुब की बात तो यह है कि आबकारी मंत्रालय से लेकर राज्य और जिले स्तर के आला-अधिकारियों तक इनकी खूब चर्चा होने के बावजूद भी अब तक कोई कार्यवाई नहीं की गयी है. इनकी चुप्पी को लेकर अब बाज़ार में चर्चाएं गर्म होने लगी है.

सिपाही ने समस्त नियमों को ताक में रख, अपने ही संपत्ति को चढ़ाया किराये पर

माया के बंदरबांट के आदि हो चुके इस सिपाही के चेले-चपाटों की माने तो इसके विरुद्ध निरंतर हो रहे खबर प्रकाशन के बाद से ही यह अपनी शाख बचाने की जद्दोजहत में लगा हुआ है. जिला स्तर से लेकर राज्य स्तर तक अपनी पैठ का उपयोग करते हुए अपने विरुद्ध होने वाले जांच और निर्देशों पर रोक लगाने की कोशिश इसके द्वारा की जा रही है. सूत्र बताते हैं कि इस सिपाही के विरुद्ध बहुत ही जल्द राज्य स्तर से इसके कार्यकाल के जांच के आदेश आ सकते हैं, जिसके बाद इस पर गाज गिरना तय माना जा रहा है. अपने ही रिश्तेदारों के नाम से नया बस स्टैंड की शराब दूकान को किराये पर देकर इसके द्वारा सालाना तगड़ी रकम तो ली ही जा रही है साथ ही साथ शहर के सभी दुकानों में इसका हिस्सा भी बंधा हुआ है जोकि बाकि जनों से सबसे ज्यादा बताया जा रहा है. नियमों की माने तो इस दुकान के महज कुछ ही मीटर पर गुरुद्वारा, मंदिर और स्कूल भी है, बावजूद समस्त नियमों को ताक में रख आला-अधिकारियों से साठगाँठ कर इसने अपनी ही संपत्ति पर अपने ही विभाग से सम्बंधित मदिरा दुकान को किराये पर चढ़ा रखा है.

स्थानीय डीओ को दादा के ख़िताब से सिपाही द्वारा नवाजे जाने की जानकारी के सार्वजानिक हो जाने के बाद जिले के कई विभागों में दादा नाम की संज्ञा से लोग एक-दुसरे को पुकार रहे हैं, ऐसा लग रहा है मानो दादा शब्द अलंकृत हो गया हो. खैर, अपने अधीनस्थ कर्मियों और दुकान में कार्यरत कर्मचारियों को पुकारना और इन्हें दुत्कारना इसके लिए आम बात है. किसी भी मसले पर बगैर माया के कार्य नहीं करने वाले इस सिपाही के किस्से इतने हैं की इनका बखान करते दिन निकल जाए. ताज्जुब की बात तो यह है कि आबकारी मंत्रालय, राज्य स्तर के आला-अधिकारी और डीओ से लेकर दरोगा तक को इन सब की जानकारी होने के बावजूद भी इस पर आज पर्यंत न तो कोई कार्यवाई की गयी है और न ही अब तक इसका स्थानांतरण हो सका है. जिला प्रशासन द्वारा विभागीय व्यवस्था को सुधारने अफसरों और कर्मियों को हरसंभव दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं लेकिन इस अदने से सिपाही पर किसी भी कार्यवाई का किया जाना मतलब ओखली में सर डाले जैसी स्थिति को निर्मित कर रहा है, ऐसी चर्चा अब तो विभागीय स्तर पर भी होने लगी है. सूत्र बताते हैं कि इसके विरुद्ध जो कोई भी जाता है फिर चाहे वो अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पत्रकार हो या फिर बाहरी कोई व्यक्ति, उसकी झूठी शिकायत करने से यह सिपाही बिलकुल भी गुरेज नहीं करता.

डीओ अपने कार्य में मस्त, इधर निचले कर्मी रोजाना मार रहे चौका-छक्का

सूत्रों की माने तो जिला डीओ; विभागीय कार्य में इतने मशगूल रहते हैं कि इन्हें निचले स्तर पर हो रहे उतार-चढाव से कोई सरोकार ही नहीं होता और कर्मी रोजाना चौका-छक्का मार रहे हैं. निरंतर खबर प्रकाशन के बावजूद भी इनके द्वारा किसी भी प्रकार के जांच के आदेश अब तक नहीं दिए गए हैं, बल्कि मौखिक तौर पर सिपाही को चेतावनी दिए जाने की खबर आ रही है. यही नहीं, जिला आबकारी विभाग के इस अदने से सिपाही के द्वारा किये जा रहे दुकानों में बंदरबांट की जांच करने भी अब तक जिला डीओ इन दुकानों में जांच करने नहीं पहुँच पाए हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इन्हें सिपाही का दादा कहना इतना पसंद है की इसके चलते वे केवल दरोगा स्तर के अधिकारी को ही मौखिक तौर पर दुकानों में जांच के लिए भेज रहे हैं. अब डीओ साहब को कौन बताये कि विभाग के दरोगा कार्यालय का सबसे बड़ा खिलाडी तो यह अदना सा सिपाही ही है जिसके उँगलियों में दरोगा भी नाचते हैं और इसके इशारे के बगैर विभाग का एक पत्ता भी नहीं हिलता है.

राजस्व के इतने बड़े नुकसान की भरपाई क्या सिपाही से होगी?

विगत डेढ़ दशक से अधिक समय से एक ही स्थान में पदस्थ रहकर सिपाही ने निश्चित ही राज्य के राजस्व को बहुत बड़ा नुकसान पहुँचाया है जिसका खामियाजा कहीं न कहीं राज्य शासन से लेकर आम जनता को भी आने वाले भविष्य में भोगना पड़ सकता है. शहर के कई बुद्धिजीवियों ने अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विपक्षी दल केवल चंद मुद्दों को लेकर अपनी शेखी बघार रही है लेकिन आगामी भविष्य में विकराल रूप लेने वाली आबकारी विभाग की इस जनहित की समस्या को लेकर अब तक कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी गयी है, जो की अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है. इनका कहना है कि कार्यकाल की जांच के साथ, इस सिपाही से इतने वर्षों में की गयी राजस्व के नुकसान की भरपाई भी की जानी चाहिए.

डीओ के अंतिम फैसले, कितने सच्चे-कितने झूठे या माया ही माया

पूर्व-कर्मचारियों ने बताया था कि अकसर ऐसा देखने को मिलता है कि कुछ ब्रांड की शराब अन्य जिलों या राज्यों में आसानी से मिल जाती है लेकिन वही ब्रांड शहर में उपलब्ध नहीं होती है. इसके पीछे भी बहुत बड़ा भ्रष्टाचार छुपा हुआ है. ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि जिले में कौन सी ब्रांड की बिक्री होगी इसका अंतिम फैसला या यूँ कहें की अंतिम सूची, विभाग के डीओ बनाते हैं. कंपनी से आये लोग सीधे डीओ से संपर्क करते हैं जिसके बाद एक मोटी रकम का आदान-प्रदान होता है या फिर प्रति नग दर तय होती है, जिसके बाद ही उस ब्रांड को दुकानों में रखने की अनुमति मिलती है. यही नहीं, अधिकारी ही इसके बाद प्रति बोतल ऊपरी दर तय करते हैं. सुपरवाइजर द्वारा रिस्क होने या मना करने पर सिपाही अपनी विशेष भूमिका निभाते हुए इनसे मिलते हैं और उदहारण स्वरुप 20 रुपये की ऊपरी दर पर 15 रुपये उन्हें देने और 5 स्वयं रखने की बात कहते हैं. सबसे कम आरएसपी के ब्रांड से लेकर हाई ब्रांड तक में भी ऊपरी कमाई की राशि पहले से तय होती है. अब सवाल यह उठता है कि माया के मोह में फंसे विभाग के अधिकारी क्या कभी यह आंकलन करते हैं कि कौन सी ब्रांड की मदिरा किस दुकान में सबसे अधिक बिक रही है, जिससे यह तय किया जा सके की किस कंपनी के ब्रांड को दुकानों में बेचने की अनुमति देनी है. बहरहाल, यह तो जिला प्रशासन के कठोर जांच में ही यह निर्णय लिया जा सकेगा.

नहीं थम रहा नया बस स्टैंड की मदिरा दुकान में ग्राहकों को लूटने का सिलसिला

नया बस स्टैंड स्थित मदिरा दुकान के मैनेजर की शय पर यहाँ निरंतर चल रहे ग्राहकों को लूटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. यहाँ पहुंचे वाले मदिरा प्रेमियों से रोजाना सेल्समैन और मैनेजर की बहस हो रही है. अधिक दाम में बेचे जाने के कारण ग्राहकों में रोष तो है ही साथ ही साथ मैनेजर के तेवर भी जिला आबकारी अधिकारी से कम नहीं लग रहे हैं. ग्राहकों द्वारा बिल मांगे जाने पर बहस, अधिक दर पर बेचने की शिकायत करने की बात कहने पर ग्राहकों से गाली-गुफ्तार करना इस दुकान की कार्यप्रणाली में शामिल है. बताया जाता है कि यहाँ के मैनेजर के विरुद्ध कई दफा शिकायत की जा चुकी है बावजूद इस पर केवल औपचारिक कार्यवाई ही अब तक की जा सकी है.