मुख्यमंत्री ने तेलगांना व आंध्रप्रदेश से आये छग के आदिवासी मजदूरों को पुन: राज्य में बसाने के निर्देश दिए
रायपुर, 05 अप्रैल । मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की प्रदेश के मजदूरों के प्रति गहरी संवेदनशीलता और छत्तीसगढ़ राज्य अनसूचित जनजाति आयोग व उद्योग मंत्री कवासी लखमा के सराहनीय कदम से विगत कई वर्षों से दूसरे राज्यों में जाकर बसें छत्तीसगढ़ के आदिवासी मजदूर परिवारों को पुन: छत्तीसगढ़ में बसाने के लिए राज्य सरकार ने पहल शुरू कर दी है। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव सुब्रत साहू और पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा को कार्ययोजना बनाकर उनके पुनर्वास के लिए अनुकूल वातावरण बनाये जाने के निर्देश दिए।
अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि 18 मार्च 2022 को वलसा आदिवासुलु समाख्या (विस्थापित आदिवासियों का संगठन) नामक एनजीओ संस्था का आवेदन उनके पास आया। इस आवेदन में करीब 500 ऐसे मजदूरों ने हस्ताक्षर किये जो सन् 2005 में सरकार द्वारा समर्थित सलवा जुडूम आंदोलन के शुरू होने से छत्तीसगढ़ में बढ़ी हिंसा के कारण अपने घरों और गांव को छोड़कर पलायन कर तेलंगाना और आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों में जाकर बस गये थे। इस आवेदन पत्र में निवेदन किया है कि 98 विस्थापित आदिवासी लोगों ने 18 जून 2019 को वनाधिकार की धारा 3.1एम के तहत आवेदन पत्र अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) कोंटा, जिला सुकमा को दिया था, परंतु दो वर्ष बीत जाने के बाद भी आवेदन पर कोई कार्यवाहीं नहीं हुई। इस आवेदन के जरिए आवेदन द्वारा अनुरोध किया गया कि वनाधिकार की धारा 3.1एम के तहत विस्थापितों को अदला बदली में 2005 के पहले उनके कब्जे की वन भूमि के बदले शांत जगह में वन भूमि का पट्टा दिये जाए।
आयोग के अध्यक्ष भानुप्रताप सिंह ने बताया कि इस आवेदन के मिलने के बाद इस प्रकरण में उन्होंने आवेदनकर्ता व आदिवासी मजदूरो को मिलने के लिए बुलाया। आवेदनकर्ता के साथ 6 आदिवासी जिनके नाम क्रमश: कट्टम कोसा पिता दुला जाति मुरिया 45 वर्ष निवासी ग्राम नयानार छिंदगढ़ ब्लाक जिला सुकमा, गंगा दुदी हड़मा जाति मुरिया 35 वर्ष निवासी वर्तमान पता ग्राम कोंटातासीर मेड़वाय जिला सुकमा ग्राम गुलेटिवाड़ा, आंध्रप्रदेश, तारम अनिल पिता बदरिया जाति मुरिया 34 वर्ष वर्तमान निवासी अेराकोंटा,तेलंगाना जिला कुतकुड़म तेलंगाना, भीमा पिता वेट्टी वोटा कृष्णासागर दुर्गमपाट मंडलम जिला कुतकुड़ा तेलंगाना पुराना गांव कुर्रा तहसील कोंटा जिला सुकमा, माडि़ हरेश पिता माडि़वअंदा जाति मुरिया 34 वर्ष निवासी एर्राबोर फालवेंसा ब्लाक जिला बद्रतीकोत्तागुड़ा तेलंगाना पुराना गांव रामपुरम गोलापरि पंचायत कोंटा ब्लाक जिला सुकमा एवं जोगापुडिय़ाम पिता बंडी जाति मुरिया निवासी रामचन्द्रपुरम आंध्रप्रदेश वर्तमान जिला सुकमा ग्राम गरिपार ब्लाक छिंदगढ़ जिला सुकमा भी यहां पहुंचे। आयोग के अध्यक्ष ने बताया कि सभी लोग सुबह करीब 9 बजे आयोग पहुंचे और यहां पहुंचकर उन्होंने अपनी समस्या बतायी कि सलवा जुडूम आंदोलन के कारण हिंसा में हो रही आदिवासी मजदूरों की मौत से वे भयभीय होकर सभी चीज यहां छोड़कर दूसरे राज्यों में चले गये थे, लेकिन वहां की सरकार द्वारा उन्हें आदिवासी नहीं माना और व्यवस्थापन करनेे से इंकार कर दिया, जिसके बाद से वे सभी लोग मजबूरी में किराये के मकान में रहकर कम मजदूरी में काम करके अपना व अपने परिवार का जीवन यापन कर रहे थे। सभी मजदूरों ने अपनी समस्या को लेकर मुख्यमंत्री से मिलने की भी इच्छा आयोग से की, जिसके बाद आयोग के अध्यक्ष श्री सिंह ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से उनकी मुलाकात कराई। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि सलवा जुडूम के दौरान छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा से विस्थापित कर तेलंगाना और आंध्रप्रदेश गए छत्तीसगढ़ के लोग यदि वापस आना चाहते हैं, तो राज्य सरकार उनका दिल से स्वागत करने को तैयार है। मुख्यमंत्री ने तत्काल मुख्य सचिव सुब्रत साहू और पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा कार्ययोजना बनाकर उनके पुनर्वास के लिए अनुकूल वातावरण बनाये जाने के निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री बघेल से मुलाकात के दौरान प्रतिनिधि मंडल ने उनसे किसी उपयुक्त स्थान में बसने और कृषि के लिए जमीन उपलब्ध कराने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने उनकी मांग पर कहा कि छत्तीसगढ़ वापस आने के इच्छुक लोगों को जमीन देने के साथ उन्हें राशन दुकान, स्कूल, रोजगार सहित मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करायी जाएंगी।
अजजा आयोग अध्यक्ष सिंह ने बताया कि तेलंगाना व आंध्रप्रदेश में करीब 15 वर्षों से प्रताडि़त होकर भी वहां रह रहे छत्तीसगढ़ के आदिवासियों को महज कुछ घंटो में ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो राहत दी है उससे उनका प्रदेश के मजदूरों के प्रति गहरी संवेदनशीलता को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि पलायन कर चुके ये सभी मजदूर किराये के मकान में, कम मजदूरी पाकर भी वहां अपना जीवन यापन कर रहे थे, लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार की पहल के बाद अब इन मजदूरों को न केवल प्रदेश में फिर से आदिवासी होने का दर्जा मिलेगा, बल्कि खुद के घरों में सुख व शांति रूप से अपना जीवन यापन कर सकेंगे।