सूचना आयोग की गंभीर अनियमितता – अपीलार्थी की उपस्थिति बगैर सुनवाई कर आदेश किया पारित

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सूचना आयोग में अपीलार्थी को बिना सूचना और अपीलार्थी की उपस्थिति के बगैर छत्तीसगढ़ राज्य सूचना आयोग द्वारा सुनवाई कर आदेश पारित करने का मामला प्रकाश में आया है। शासकीय जे. योगानन्दम, छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के भौतिक शास्त्र विभाग के पूर्व प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष डॉ. एम.एम तिवारी द्वारा एक मामले में दितीय अपील दायर की गयी थी लेकिन न तो उन्हें अपील की सुनवाई की तिथि के बारे में कोई सूचना प्राप्त हुई न ही वे आयोग में द्वितीय अपील की सुनवाई में उपस्थित हुए । उन्हें आयोग द्वारा उनकी अपील पर पारित आदेश भी प्राप्त नहीं हुआ था । अपनी अपील के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के उद्देश्य से उनके द्वारा सूचना आयोग से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी। सूचना आयोग से प्राप्त जानकारी से ही यह तथ्य उजागर हुआ कि उनकी जानकारी के बिना ही 4 अक्टूबर 2021 को सुनवाई हो गयी थी तथा आयोग द्वारा पारित आदेश में उन्हें उपस्थित दर्शाया गया है । उनके द्वारा अपनी अपील में उठाये गए बिंदुओं का भी आदेश में उल्लेख नहीं है। डॉ. तिवारी का कहना है कि विभागाध्यक्ष रहते उन्होंने एम.एससी. भौतिक शास्त्र की प्रथम सेमेस्टर 2017-18 की परीक्षा में हुई अनियमितताओं के संबंध में महाविद्यालय के प्राचार्य को सितंबर 2018 में पत्र प्रेषित कर जांच व कार्यवाही करने निवेदन किया गया था। लेकिन उनकी शिकायतों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई । उनके द्वारा प्राचार्य को की गई शिकायतों के संबंध में छत्तीसगढ़ के राज्यपाल,पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति व यूजीसी को भी जानकारी प्रेषित की थीं लेकिन कोई कार्यवाही न हुई ।तदुपरांत उन्होंनेअपनी शिकायतों के संबंध में विभिन्न स्तरों पर सूचना के अधिकार के तहत जानकारियां मांगना प्रारंभ की। इसी संबंध में एक प्रकरण में प्रथम अपीलीय अधिकारी(अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा) द्वारा उनके द्वारा मांगी गई जानकारी दिए जाने के आदेश के बावजूद जानकारी न दिए जाने के कारण मामला द्वितीय अपील में पहुंचा । सूचना आयोग से प्राप्त जानकारी में
भी नोट शीट व उपस्थिति पत्रक में उनकी उपस्थिति के कहीं कोई हस्ताक्षर नहीं है। सूचना आयोग द्वारा उनकी द्वितीय अपील के संबंध में जनसूचना अधिकारी को प्रेषित पत्र में स्पष्ट उल्लेख है कि आयोग को भेजे जाने वाले जवाब की प्रति रजिस्टर्ड डाक से अपीलार्थी को भी प्रेषित की जाए,लेकिन जन सूचना अधिकारी से भी उन्हें कोई पत्र या जानकारी प्रेषित नहीं की गयी। इस प्रकार सूचना आयोग द्वारा एक तरफा निर्णय लेकर द्वितीय अपील में आदेश पारित करते हुए प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को इस आधार पर अपास्त कर दिया कि प्रथम अपीलीय अधिकारी ने जनसूचना अधिकारी का पक्ष जाने बिना ही आदेश पारित किया था। विडंबना यह है कि सूचना आयुक्त द्वारा प्रथम अपीलीय अधिकारी के आदेश को जिस आधार पर अपास्त किया है सूचना आयुक्त ने स्वयं उस आधार का पालन नहीं किया तथा अपीलार्थी की अनुपस्थिति में उसका पक्ष सुने-जाने बिना ही आदेश पारित कर दिया गया ।