अपनी ही जमीन पर गुमनाम है बस्तर का सपूत जकरकन भतरा

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  • बस्तर की नारी की अस्मिता की खातिर लड़ी थी अंग्रेजों से जंग
  • आदिवासियों और जल, जंगल, जमीन की सुरक्षा के लिए आजीवन लड़ता रहा छोटे देवड़ा का सपूत
  • जकरकन भतरा के नाम पर होगा शासकीय महाविद्यालय बकावंड


अर्जुन झा-
जगदलपुर वह लड़ता था बस्तर की नारी की अस्मिता के लिए, वह लड़ता था बस्तर के आदिवासियों, जल, जमीन और जंगल की सुरक्षा के लिए, देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर वह अमर तो हो गया, लेकिन अमर होकर भी आज़ादी का वह योद्धा गुमनाम हो गया. बकावंड या फिर बस्तर के बाहर उस क्रांतिकारी का नाम शायद और कहीं नहीं जाना जाता. वजह साफ है कि आज़ाद भारत के कर्णधारों ने और आज़ादी का इतिहास लिखने वालों ने बस्तर के इस सपूत जैसे पचासों क्रांतिवीरों के साथ नाइंसाफी जो की है, उन्हें हासिये पर डाल जो रखा है. और तो और छत्तीसगढ़ की पाठ्य पुस्तकों में भी छत्तीसगढ़ के ही अमर सेनानियों को अब तक जगह नहीं मिल पाई है. ऐसे ही गुमनाम क्रांतिवीरों की फेहरिश्त में बस्तर की माटी के लाल जकरकन का नाम भी शुमार है.
महात्मा गांधी, शहीद भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे अमर सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष छेड़ा और अनकी राह पर हजारों लोग चल पड़े. उन्हीं में से एक हैं बस्तर जिले की बकावंड तहसील के ग्राम छोटे देवड़ा में जन्मे आदिवासी योद्धा जकरकन भतरा. सन 1910 के भूमकाल आंदोलन के नायक शहीद गुंडाधुर और डेबरी धुर के सहयोगी बनकर जकरकन भतरा ने इस आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाई. उन्होंने जल, जंगल, जमीन पर आदिवासियों और वनवासियों के अधिकार के लिए अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद कर जोरदार मुहिम चलाई. श्री भतरा अंग्रेज अधिकारियों और सिपाहियों द्वारा क्षेत्र की मूल निवासी बहू बेटियों की अस्मिता से खिलवाड़ तथा उनका शोषण व उन पर अत्याचार किए जाने से भी बड़े नाराज थे. वे ऐसे कृत्यो का खुलकर विरोध करते हुए अत्याचारी अंग्रेजों को मार मार कर भागने लगे थे. इसके चलते वे अंग्रेजों की आंखों में खटकने लगे. श्री भतरा के मन में अंग्रेजों के प्रति नफरत कूट कूटकर भरी थी उन्होंने अंचल के लोगों के बीच ‘अंग्रेज बस्तर छाड़ा, अंग्रेज बस्तर माटी के छाड़ा ‘ का नारा बुलंद कर रखा था. अंचल के युवाओं के साथ मिलकर वे गांवों से अंग्रेजों को खदेड़ा करते थे. छोटे देवड़ा गांव के लोग जकरकन भतरा तथा भूमकाल आंदोलन की स्मृतियों को संजोए रखने के लिए हर साल 13 फ़रवरी को वृहद कार्यक्रम का आयोजन करते हैं.
भारी डीलडौल, तगड़ी खुराक
जकरकन भतरा उंचे पूरे और अच्छी कद काठी के थे. तीन – चार अंग्रेज सिपाही उन्हें काबू में नहीं कर पाते थे. अंग्रेज सिपाहियों के बड़े दस्ते ने जकरकन भतरा को आसना के जंगल में घेर कर पकड़ लिया. उन्हें रायपुर की जेल में डाल दिया गया. श्री भतरा को एक साल के सश्रम कारावास की सजा दी गई. भारी डीलडौल वाले जकरकन भतरा की खुराक भी तगड़ी थी. वे 5 -6लोगों के बराबर का भोजन अकेले खा लेते थे. कारावास के दौरान उन्हें जेल मैनुअल के हिसाब से खाना दिया जाता था, जो उनकी खुराक के चौथाई हिस्से से भी कम होता था. इस बात को लेकर उन्होंने जेल में भी विद्रोह कर दिया.
योगदान को अब मिलेगा सम्मान
बस्तर की माटी के सपूत आज़ादी के दीवाने जकरकन भतरा के देश की आज़ादी में योगदान को अब मिलेगा सम्मान. आज़ादी के 75 साल बाद ही सही किसी ने तो सुध ली अपने इस क्रांतिवीर की. बकावंड के शासकीय महाविद्यालय को स्व. जकरकन भतरा के नाम पर समर्पित किया जाएगा. बस्तर क्षेत्र आदिवासी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष लखेश्वर बघेल ने बताया कि भतरा समाज, आदिवासी युवा छात्र संगठन एवं सर्व आदिवासी समाज की वर्षों पुरानी मांग रही है कि 1910 के महाभूमकाल आंदोलन के हीरो जकरकन भतरा के नाम पर ब्लॉक के किसी शासकीय प्रतिष्ठान का नामकरण हो. आदिवासी युवा छात्र संगठन से जुड़े छात्र नेता पूरन सिंह कश्यप ने प्रतिनिधि मंडल के साथ कई बार लखेश्वर बघेल से मुलाकात कर नवीन महाविद्यालय का नामकरण जकरकन भतरा के नाम पर रखने की मांग रखी थी. छात्रों और आदिवासी समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए लखेश्वर बघेल ने शासकीय नवीन महाविद्यालय बकावंड का नामकरण जकरकन भतरा के नाम करने की घोषणा की है.