बजावंड में गोधन न्याय योजना के साथ हुआ ऐसा अन्याय

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  • शासन से मिले 9 लाख रु., शेड के नाम पर बनाई घासफूस की झोपड़ी
  • आज तक नहीं बनाई जा सकी रत्ती भर भी खाद, मर गए सारे केंचुए


बकावंड विकासखंड के ग्राम बजावंड में गोधन न्याय योजना के साथ सरासर अन्याय हो रहा है। इस गांव में गोठान विकास, शेड निर्माण और वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए 9 लाख रु. मंजूर किए गए हैं, लेकिन काम कुछ भी नहीं हुआ है। शेड के नाम पर घासफूस की झोपड़ी ही बन पाई है। वहीं वर्मी कंपोस्ट के नाम पर किलो भर भी खाद नहीं बनाई जा सकी है। गोठान आज भी बदहाल है।त करीब आठ गांवों के गोठानों के विकास तथा गोधन न्याय योजना से जुड़े तमाम कार्यों की जिम्मेदारी वन विभाग को दी गई है और हर गोठान के लिए नौ लाख रु. मंजूर किए गए हैं, लेकिन सभी जगह ऐसा ही हाल है। गोठनों का संचालन वन विभाग द्वारा गठित आवर्ती चराई वन समितियों के माध्यम से कराया जाना सुनिश्चित किया गया, लेकिन ये समितियां धन का आवंटन न मिलने से किसी भी कार्य को अंजाम नहीं दे पा रही हैं। शासन द्वारा गोधन न्याय योजना में गोबर खरीदने और वर्मी कंपोस्ट बनाने में महिला स्व सहायता समूहों का सहयोग लेने का प्रावधान किया गया है। महिला समूहों को भी धन उपलब्ध नहीं कराया गया है। नतीजतन वे न तो गोबर खरीद पा रहे हैं, और न ही वर्मी कंपोस्ट खाद बना पा रहे हैं।
गोबर का टोंटा, मर गए सारे केंचुए भी
किसान और पशु पालक भी गोबर बेचने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। गांव के बच्चे जरूर कभी कभार किलो, दो किलो गोबर बेचने पहुंच जाते हैं। बच्चों द्वारा लाए जाने वाले गोबर को समिति के सदस्य अपने पैसों से खरीदते हैं। वहीं गोठानों से निकलने वाले गोबर तथा बच्चों द्वारा लाए जाने वाले गोबर को घास फूस से बनी झोपड़ी के पास इकट्ठा किया जाता है। यह गोबर इतना कम रहता है, कि उससे वर्मी कंपोस्ट बनाना मुमकिन नहीं होता। गोबर वहीं पड़े पड़े सूख जाता है, जिसे चूरा करके सामान्य खाद बनाने की कवायद बजावंड में चल रही है। वर्मी कंपोस्ट खाद बनाने के लिए आवर्ती वन चराई समिति व महिला समूह की सदस्यों ने गांव के नम भागों की खोदाई कर केंचुए इकट्ठा किए थे। शासन की ओर से भी केंचुए उपलब्ध कराए गए थे। सुरक्षित रखने की सुविधा और पानी का इंतजाम न होने के कारण ये सारे केंचुए मर चुके हैं। गोठान में पानी उपलब्ध कराने के लिए बोर जरूर कराया गया है, लेकिन बोर में पंप लगाने तथा सौर ऊर्जा पैनल लगाने के लिए भी फंड उपलब्ध नहीं कराया गया है। बोर का उपयोग नहीं हो पा रहा है।

महिलाओं ने बनाई है झोपड़ी
गोठान का विकास, शेड व बाउंड्रीवॉल निर्माण, मवेशियों को पानी पिलाने के लिए टंकी का निर्माण भी नहीं हुआ है। समिति अध्यक्ष दशमती बघेल के मुताबिक गोठान के लिए मात्र 40 हजार रु. जमा हुए थे, जिसमें से 30 हजार रु. से बोरी, नाडेप पॉलीथिन, पैरा, कुदाली, फावड़ा, तगाड़ी आदि खरीदे गए हैं। इनकी मदद से झोपड़ी का निर्माण किया गया है। आज तक किलो भर भी खाद नहीं बनाई जा सकी है। सूखे गोबर से जो खाद बनाई गई है, उसका भी लेवाल कोई नहीं है। करीब सात माह बीत चुके हैं, मगर एक किलो खाद का भी विक्रय नहीं हो पाया है। वन विभाग के क्षेत्रीय अधिकारी के अनुसार उच्च अधिकारियों से मिले निर्देश के मुताबिक गोठान में अस्थायी निर्माण कराया गया है। फंड नहीं मिल रहा है, इसलिए कोई काम नहीं हो पा रहा है।