बस्तर के माटीपुत्र झेल रहे हैं बेरोजगारी का दंश, बाहरी कर रहे हैं मौज

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  • स्थानीय पोस्ट ग्रेजुएट युवा भी तरस रहे हैं सरकारी नौकरी के लिए
  • बाहरी लोग यहां नौकरी पाकर करा लेते हैं मैदानी जिलों में तबादला

जगदलपुर बस्तर संभाग के पढ़े लिखे युवाओं के लिए यह त्रासदी ही है कि वे एक अदद सरकारी नौकरी के लिए तरसते रह जाते हैं और बाहरी लोग यहां आसानी से नौकरी पाने में सफल हो जाते हैं। नौकरी लगने के चंद माह बाद ही बाहरी लोग राज्य के मैदानी जिलों में अपना तबादला करा लेते हैं और बस्तर की झोली खाली की खाली ही रह जाती है।

पद रिक्त होने के बाद भी स्थानीय योग्य बेरोजगारों को नौकरी नहीं मिल पाती।बस्तर के बेरोजगार युवाओं के इस दर्द को बस्तर संभाग के अंतिम छोर वाले सुकमा जिले के एक युवा ने कुछ इस अंदाज में बयां किया, कि सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए, दिल भर आया। यह सुकमा के इस अकेले युवा की कहानी नहीं, बल्कि संभाग के हजारों बेरोजगार युवाओं की जिंदगी से जुड़ी हकीकत है। बीते दिनों सुकमा में युवाओं और महिलाओं ने सरकारी नौकरियों में सिर्फ बस्तर संभाग के ही बेरोजगार युवाओं को प्राथमिकता देने की मांग को लेकर प्रदर्शन किया था। इसी दौरान लॉ के मास्टर डिग्रीधारी एक युवा ने चीख चीखकर व्यवस्था की पोल खोल दी और पूरे संभाग के शिक्षित उच्च शिक्षित युवाओं की व्यथा को सरेआम कर दिया।

एलएलएम की डिग्री हासिल करने के बाद भी नौकरी के लिए दर-दर भटक रहा यह युवा अपना दर्द सुनाते सुनाते आंसुओं से लबरेज हो उठा था। उसका कहना था कि ऐसी शिक्षा भी किस काम की, जो नौकरी भी न दिला पाए। इसलिए बस्तर संभाग के सारे स्कूल कॉलेज बंद कर दिए जाएं। सामने खड़ा पुलिस का एक अधिकारी भी उसकी बातें सुन अवाक रह गया। इस अधिकारी से कुछ कहते नहीं बन रहा था। अगर यही स्थिति रही, तो तेजी से शांति की ओर अग्रसर होता जा रहा बस्तर आगे चलकर और भी तीव्र रूप से जल उठेगा। इसमें कोई शक नहीं है। बताया जाता है कि सुकमा का यह बस्तर पुत्र एलएलएम कर चुका है। बस्तर संभाग में जो भी वैकेंसी निकलती है, उसके लिए वह हर बार आवेदन करता है, मगर हर दफे उसे मायूसी ही हाथ लगती है। बस्तर संभाग के रिक्त पदों पर बाहर के लोग नौकरी प्राप्त कर लेते हैं। कुछ माह यहां सेवा देने के बाद ये बाहरी लोग नेताओं और अधिकारियों को भेंट पूजा अर्पित करके अपना स्थानांतरण राज्य के मैदानी जिलों में करा लेते हैं। बस्तर में पद फिर खाली ही रह जाते हैं और उसमें पुनः बाहरी ही काबिज हो जाते हैं। बस्तर पुत्र आखिर तक मुंह ताकते ही रह जाते हैं। बस्तर संभाग का इतिहास इस तरह के उदाहरणों से भरा पड़ा है। समय रहते छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार को इस पर संज्ञान लेना होगा। सिर्फ नक्सली समस्या समाप्त करने के दावे वाला स्टेटमेंट मीडिया में जारी कर देने भर से नक्सली समस्या समाप्त नहीं हो जाएगी। कुछ सालों से बस्तर की आबोहवा में जो बदलाव दिख रहा है, उसे धूल धुसरित होने में समय नहीं लगेगा। बस्तर की युवा पीढ़ी जिस तरीके से आक्रोशित है, उसे देखते हुए तो यही लगता है कि यह चिंगारी शोला बनकर भड़क उठेगी, नक्सली यहां के युवाओं को बरगलाकर अपने रास्ते पर चलने के लिए मजबूर कर देंगे। और फिर करोड़ों अरबों रुपए नक्सल समस्या के उन्मूलन के नाम पर दोनों सरकारों को फूंकने पड़ जाएंगे। इसलिए केंद्र और राज्य की सरकारें बस्तर के युवाओं की भावना को समझें, उन्हें राह भटकने से बचाने के लिए नौकरी के अवसर उपलब्ध कराएं।*नेता बांट रहे हैं नियुक्ति पत्र*एक तरफ राजधानी में भाजपा के नेता बेरोजगार युवाओं को नौकरियों के लिए नियुक्ति पत्र बांटते नजर आते हैं, तो दूसरी ओर बस्तर के माटीपुत्र और वनपुत्र एक अदद सरकारी नौकरी के लिए बीच चौराहे पर बिलखने के लिए मजबूर हैं। बस्तर के नेताओं और राजधानी में एसी की शीतलता के बीच मजे कर रहे जनप्रतिनिधियों तथा हुक्मरानों को बस्तरिहा युवाओं के आंसुओं से कोई वास्ता हो ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता। अगर बस्तर के माटीपुत्रों के आंसुओं की उन्हें जरा भी परवाह होती, तो बस्तर संभाग के रिक्त पदों पर यहीं के योग्य युवाओं को नियुक्ति दिलाने वे जरूर पहल करते। अगर सरकार ने समय रहते अपनी भूल नहीं सुधारी तो आगामी चुनाव में उसे खामियाजा भोगना पड़ जाएगा।