सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का कृत्रिम आभाव

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  •  मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में मशीनों के लाभ से वंचित कर दिए गए मरीज 
  • निजी संस्थानों में गरीब हो रहे हैं लूट के शिकार

अर्जुन झा

जगदलपुर यहां संचालित बस्तर संभाग के सबसे बड़े जिला चिकित्सालय महारानी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में चिकित्सकीय उपकरणों का कृत्रिम अभाव और तथाकथित तकनीकी खराबी पैदा कर मरीजों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इन दोनों अस्पतालों में उपलब्ध संसाधनों को कबाड़ बताकर मरीजों को लाभ से वंचित कर दिया गया है। सोनोग्राफी, सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी आदि के लिए मरीजों को निजी संस्थानों में भेजा जा रहा है। निजी संस्थानों पर लोगों की निर्भरता बढ़ गई है। इन निजी संस्थानों में लोगों की जेबें ढीली हो रही है। इस ओर शासन प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा है। स्वास्थ्य विभाग के बड़े अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग रहें हैं।

महारानी अस्पताल और मेडिकल कॉलेज में रोजाना सैकड़ों मरीज पहुंचते हैं। वहां कई गंभीर मरीजों को डॉक्टर सोनोग्राफी, सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी कराने की सलाह देते हैं। दोनों ही बड़े सरकारी अस्पतालों के सोनोग्राफी सेंटर्स में ताले जड़े हुए हैं। कहा जा रहा है कि दोनों अस्पतालों की सोनोग्राफी मशीनों में कथित तकनीकी खराबी आ गई है। यह तकनीकी खराबी स्वाभाविक रूप से आई है या जानबूझकर छेड़छाड़ करके पैदा की गई है, यह जांच का विषय है। एक बात तो तय है कि इन अस्पतालों में उपकरणों का रख रखाव सही ढंग से नहीं किया जाता है, अन्यथा इतनी जल्दी ऐसी बेशकीमती मशीनें खराब हो जाएं, यह बात गले नहीं उतरती।

महारानी अस्पताल का सूरत ए हाल

महारानी अस्पताल में सोनोग्राफी, एक्स-रे व सीटी स्कैन को ऑपरेट करने के लिए तकनीशियन तो नियुक्त हैं, लेकिन संबंधित मामलों के विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं होने के कारण रिपोर्ट जारी नहीं की जाती है। एक डॉक्टर सेवानिवृत्त हो गए हैं, तो दूसरे डॉक्टर अपने निजी संस्थान पर ज्यादा ध्यान देते हैं। ये महाशय अस्पताल से अक्सर भी नदारद रहते हैं और अपना ज्यादातर समय अपने स्वयं के संस्थान में गुजारते हैं।

टीएल बैठक से गायब रहते हैं अहम मुद्दे

बस्तर जिला प्रशासन के मुखिया कलेक्टर विभिन्न विभागों के अधिकारियों की हर माह समय सीमा (टीएल) बैठक लेते हैं। यह बैठक औपचारिकता मात्र बनकर रह गई है। शिक्षा, स्वास्थ्य व पेयजल जैसे ज्वलंत मुद्दों पर न बात होती है और न इन मामलों की प्रगति व कार्यों समीक्षा की जाती है। जिला प्रशासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले टीएल की बैठक संबंधी समाचार में स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के मामले प्रशासनिक उदासीनता की झलक दिखाई देती है।

जनप्रतिनिधि भी हैं उदासीन

विभिन्न समाचार माध्यमों से मेडिकल कॉलेज व महारानी अस्पताल के कारनामे आएदिन उजागर होते रहते हैं। जनप्रतिनिधि इन समाचारों पर स्वतः संज्ञान लेते ही नहीं। अगर संज्ञान लेते तो प्रशासन पर जरूर दवाब बनाते, मगर ऐसा होता कहीं नजर नहीं आ रहा है। जनप्रतिनिधियों की ऐसी उदासीनता के चलते सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था का आलम बना हुआ है और जनता की जेबें कट रही हैं।