सुरक्षा बलों के जज्बे और जीवटता के आगे पस्त पड़ते जा रहे हैं नक्सली

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  • भीषण गर्मी के बीच भी शाम तक डटे रहते हैं जंगलों में
  • जवानों की आहट सुनते ही हथियार छोड़कर भागने लगे हैं नक्सली
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर सुरक्षा बलों के आगे अब नक्सलियों की दाल नहीं गल रही है। जवानों के बूटों की धमक सुनते ही नक्सली दुम दबाकर भागने लगे हैं। ऐसा ही वाकिया बस्तर संभाग के सुकमा जिले में सामने आया है। सुकमा के जंगलों में डेरा जमाए बैठे नक्सली सुरक्षा बलों की आहट सुनते ही भाग खड़े हुए। जान बचाने की फिक्र में वे अपने हथियार, गोला बारूद, दवाएं, राशन पानी आदि तक को भी ले जाना भूल गए। सुरक्षा बलों ने यह सारा सामान अपने कब्जे में ले लिया है।
    बस्तर संभाग में पुलिस, बस्तर फाइटर, डीआरजी, सीआरपीएफ, एसएसबी आदि सुरक्षा बलों ने नक्सलियों के खिलाफ व्यापक अभियान और आरपार की लड़ाई छेड़ रखी है। तेज गर्मी के बावजूद जवान सुबह से देर शाम तक नक्सलियों की तलाश में जंगलों की खाक छानते रहते हैं। 10 से 15 किलो तक वजनी रायफल, एसएलआर, ग्रेनेड, पानी की बोतल, एक दो पैकेट बिस्किट आदि लिए जवान तपती दोपहरी में भी कर्तव्य पथ पर अग्रसर होते रहते हैं। किसी घने पेड़ की छांव कुछ देर सुस्ता लेने, दो चार बिस्किट खा लेने और पानी से गला तर कर लेने के बाद जवान पथरीले रास्तों से होते हुए जंगलों और पहाड़ियों पर अपने मिशन को अंजाम देने के लिए निकल पड़ते हैं। यह गतिविधि देर शाम तक चलती है। शाम ढले कैंप में लौटने के बाद भोजन पानी कर सोने चले जाते हैं। दूसरे दिन सुबह होते ही उनकी यह रूटीन फिर शुरू हो जाती है। भीषण गर्मी भी जवानों के जज्बे के आगे घुटने टेकने के लिए मजबूर हो जाती है, तो फिर भला हाड़ मांस से बने नक्सलियों की क्या बिसात? यही वजह है कि जवानों की पदचाप सुनते ही नक्सली भाग जाने में ही अपनी भलाई समझने लगे हैं।

    नक्सली मांद में फोर्स के कैंप
    एक जमाना था, जब सुरक्षा बलों को मैदानी भागों अथवा गांव कस्बों में कैंप बनाकर रहना पड़ता था। वहां से जवान वाहनों पर सवार होकर सर्चिंग पर जंगलों में जाते थे। तब अक्सर नक्सली उनके वाहन को लैंड माइन से ब्लास्ट कर उड़ा देते थे। इसमें कई जवान शहीद हो जाया करते थे। इससे जन धन की तो बड़ी हानि होती ही थी, नक्सलियों के हौसले बुलंद भी होते जा रहे थे। अब सुरक्षा बलों ने पैतरा बदल दिया है। जवान अब जंगलों में सर्चिंग के लिए पैदल ही जाने लगे हैं। यही नहीं बीजापुर, दंतेवाड़ा, बस्तर, कांकेर, नारायणपुर, सुकमा जिलों के धुर नक्सल प्रभावित इलाकों में स्थित नक्सलियों की मांद में भी
    सुरक्षा बलों ने अपने कैंप स्थापित कर लिए हैं। जांगला समेत कई ऐसे गांव हैं, जहां नक्सलियों की इजाजत के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था। आज ऐसे गांवों में भी सुरक्षा बलों के कैंप बन गए हैं। सुकमा, नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा जिलों ने स्थित हार्डकोर नक्सलियों के पैतृक गांवों में भी सुरक्षा बलों ने डेरा जमा लिया है। इन गांवों में स्वास्थ्य शिविर आयोजित कर ग्रामीणों का इलाज भी कराया जा रहा है।

    हथियार छोड़ भागे नक्सली
    सुकमा जिले के किस्टाराम थानाक्षेत्र में नक्सलियों के होने की सूचना पर डीआरजी व बस्तर फाइटर के जवान ऑपरेशन पर निकले। जवान टेटेमडगू व पटेलपारा पहुंचे, जिन्हें देख नक्सली भाग गए। मौके की सर्चिंग करने पर वहां एक नग भरमार, दो प्रेशर आईईडी, एक स्केनर सेट, तीन बैटरी, चार पिट्टू, दो नग वर्दी, बारूद पावडर 500 ग्राम, छोटी बैटरी 2 नग, बिजली वायर 20 मीटर, चेकर मशीन 01 नग, घूंघरू 1 जोड़ी, फटका 3 डिब्बा, सेलो टेप 2 नग, नक्सल साहित्य 12 नग, दवाईयां व अन्य नक्सली दैनिक उपयोगी सामाग्री बरामद की गई। उसके बाद जवान वापस सुरक्षित ककैंप लौट आए।