बोलती सी प्रतीत होती हैं मूर्तिकार विजय मौर्य की बनाई प्रतिमाएं

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  • बोलती सी प्रतीत होती हैं मूर्तिकार विजय मौर्य की बनाई प्रतिमाएं
    -अर्जुन झा-
    बकावंड विकासखंड मुख्यालय बकावंड के मावलीगुड़ा पारा में एक ऐसा मूर्तिकार है, जो देवी देवताओं की मूर्तियां सिर्फ सीधे हाथ से गढ़ता है। इसके पीछे मूर्तिकार की धार्मिक आस्था निहित है। इस कलाकार के हाथ में ऐसा जादू है कि उसकी बनाई मूर्तियां बोलती सी प्रतीत होती हैं। सनातन धर्म का महा पर्व गणेश चतुर्थी करीब है और उसके कुछ दिनों बाद ही क्वार नवरात्रि शुरू हो जाएगी। इन दोनों धार्मिक आस्थाओं वाले त्यौहारों के लिए भगवान गणेश और जगत जननी मां दुर्गा की प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हो गया है।

मूर्तिकार तरह तरह की मूर्तियां गढ़ रहे हैं। बकावंड के मावलीगुड़ा पारा में भी एक अनोखा मूर्तिकार अपनी कला का जादू बिखेर रहा है। इस अनूठे और बेमिसाल मूर्तिकार का नाम है विजय मौर्य। बचपन से ही कला साधना में रत विजय मौर्य अब 40 साल का हो चुका है और अब तक वह सैकड़ों प्रतिमाएं गढ़ चुका है।कलाकार विजय मौर्य गणेश जी, दुर्गा माता, देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा, भगवान विष्णु, भोलेनाथ, कार्तिकेय, शेर, बाघ, भालू, बंदर, बकरी, बैल, भैस, नर नारी आदि की प्रतिमाएं गढ़ने में सिद्धहस्त हैं। उनकी बनाई प्रतिमाएं बिल्कुल सजीव लगती हैं और प्रतीत होता है कि प्रतिमाएं बोल उठेंगी। जो जैसी प्रतिमा बोल दे, विजय मौर्य वैसी ही प्रतिमा तैयार कर देता है। विजय के पास दूर दराज से लोग मूर्तियां बनवाने और खरीदने आते हैं। विजय मौर्य हर वर्ष पर्व के दौरान आर्डर के मुताबिक देवी देवताओं की छोटी बड़ी मूर्तियां बनाता है। जबसे विजय ने आकर्षक मूर्तियां बनाना शुरू की है, तबसे उसके गली मोहल्ले में अलग ही धार्मिक वातावरण का अनुभव हो रहा है।

सीधे हाथ से ही मूर्ति निर्माण
विजय मौर्य देवी देवताओं की मूर्तियां गढ़ने में सिर्फ सीधे हाथ का ही इस्तेमाल करते हैं। उल्टे हाथ से मूर्तियों को छूना भी वह पाप समझता है। इस बारे में विजय का कहना है कि जब हम देवगुड़ी मातागुड़ी में जाते हैं, या फिर घर में ही पूजा पाठ करते हैं, तो अपने आराध्य देवी देवता के चरण स्पर्श सीधे हाथ से करते हैं। प्रसाद भी सीधे हाथ से ही ग्रहण करते हैं। यहां तक कि अपने माता पिता और बड़े बुजुर्गों के पैर भी सीधे हाथ से पड़ते हैं। हम जो प्रतिमाएं तैयार करते हैं, वे भी देवी देवता ही हैं। श्रद्धा और आस्था के कारण ही प्रतिमा निर्माण में सीधे हाथ का इस्तेमाल किया जाता है। विजय मिट्टी से प्रतिमाएं तो गढ़ता ही है, सीमेंट से भी मूर्तियां बनाने में वह दक्ष है।