- 25 साल में फूंके करोड़ों रुपए, मगर नतीजा सिफर
- अपनी दुर्दशा पर जार जार रो रही है शहर की विरासत
–अर्जुन झा–
जगदलपुर मैं दलपत सागर हूं, मुझे बस्तर रियासत की विरासत भी कहा जाता है, मेरा दर्शन करने दूर दूर से लोग आते हैं। मैंने अपने जल से जगदलपुर और आसपास के गांवों की धरती के गर्भ को सींचा है। धरती सजल होकर आप सभी के कुओं और नलकूपों को जल से भरपूर बनाए रखती है। मेरे जल से सैकड़ों लोग स्नान कर खुद को पवित्र बनाते हैं, मगर मेरा दुर्भाग्य है कि मेरी पवित्रता का ध्यान मेरे शहर और जिले के नुमाइदों को नहीं है। हर कोई मेरी छाती पर मूंग दल रहे कीचड़ और जलकुंभी को खत्म करने के नाम पर भ्रष्टाचार की आग में अपना हाथ सेंक रहा है। 25 साल से मैं यह काला खेल देखते आ रहा हूं और अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहा रहा हूं। भगवान श्रीराम चंद्र जी ने तो अहिल्या और शबरी का उद्धार कर दिया था, मगर मेरा उद्धार कौन करेगा, मैं अपने उस राम का इंतजार कर रहा हूं।
यह कथा है बस्तर संभाग मुख्यालय जगदलपुर के बड़े तालाबों में एक ऐतिहासिक दलपत सागर की, अपनी दुर्दशा पर जार जार रो रहा है। यह जलाशय अपने गर्भ में बस्तर का समृद्ध इतिहास समेटे हुए है। नगर निगम ने इस जलाशय के बाहरी आवरण का कलेवर उसी तरह बदल दिया है, जैसे ब्यूटी पार्लर में युवतियों और महिलाओं की रंगत बदल दी जाती है। मगर दलपत सागर की अंतरात्मा की आवाज सुनने की कोशिश आज तक किसी ने नहीं की। सो हमने दलपत सागर के दर्द को उसी की मंशा के अनुरूप अपने जगदलपुर और बस्तर जिले के पाठकों के बीच रखने की कोशिश की है। उम्मीद है दलपत सागर की इस व्यथा कथा को सुनने के बाद हमारे कलेक्टर विजय दयाराम के. दलपत सागर के उद्धार के लिए राम की भूमिका में जरूर आएंगे। दलपत सागर की कथा कुछ यूं है कि इस ऐतिहासिक जलाशय की समग्र सफाई पर आज तक ठोस काम नहीं हुआ है। सफाई के नाम पर सिर्फ और सिर्फ खानापूर्ति एवं भ्रष्टाचार का ही खेल खेला गया है। सन 2000 से अब तक करीब 25 वर्षो में करोड़ों रुपए फूंकने के बाद भी दलपत सागर की दशा नहीं सुधर पाई है। जलकुंभियों को नष्ट करने के लिए कभी मछलियां छोड़ी जाती हैं, तो कभी भारी भरकम मशीन चलाई जाती है, तो कभी सीड बॉल डालकर प्रयोगवादी तकनीक अपनाई जाती है। इस प्रयोगवादी कार्यों में हर बार लाखों रुपए खर्च कर दिए जाते हैं, लेकिन परिणाम रत्तीभर भी सामने नहीं आता।
काम न आई मकड़ी और मछली
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से ही सन 2000 से दलपत सागर के जीर्णोद्धार या कहें जलकुंभी हटाने का अभियान चलाया जा रहा है।उस दौरान जगदलपुर की सत्ता नगर पालिका सम्हाला करती थी, जिसके अध्यक्ष संतोष बाफना हुआ करते थे। तबसे दलपत सागर के तथाकथित उद्धार की शुरुआत हुई थी। 2003 में भाजपा की डॉ. रमन सिंह सरकार में संतोष बाफना के पर्यटन मंडल अध्यक्ष रहते दलपत सागर में म्युजिकल फाउंटेन लगाए गए थे और जलकुंभी हटाने का अभियान छेड़ा गया था। नगर निगम में गितेश मल्ल महापौर बनी तब भी दलपत सागर को दुरुस्त करने का अभियान छेड़ा गया, मगर किंतु जलकुंभियां नहीं हटी। वर्तमान विधायक किरण देव के महापौर काल में जलकुंभी हटाने एक विशेष प्रकार की मछली डाली गई। दलपत सागर से पानी सुखाने की भी तैयारी थी जिसके बाद जलकुंभी हट जाने का दावा किया गया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। महापौर जतीन जयसवाल के कार्यकाल में कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा विशेष प्रकार की मकड़ी डाली गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। 2018 में कांग्रेस पार्टी की सरकार आई और जलकुंभी हटाने तत्कालीन कांग्रेस महापौर जो अब भाजपाई महापौर हैं, ने हार्वेस्टर मशीन की खरीदी की, लेकिन वह भी जलकुंभी का बाल भी बांका तक नहीं कर सकी वर्तमान नगर निगम आयुक्त हरेश मंडावी ने अपनी अंबिकापुर की पदस्थापना के अनुभवों के आधार पर दलपत सागर में सीड बॉल्स डालवाए, लेकिन उल्टे जलकुंभियों ने पूरी तालाब को निगल लिया है। दलपत सागर के बाहरी आवरण की सुंदरता बनाए रखने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए गए और जलकुंभी को हटाने के लिए 25 वर्षों में कई करोड़ फूंक डाले गए, लेकिन जलकुंभियां कम होने की जगह दिन -प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही हैं। इसको लेकर कई बार जनांदोलन भी हुए। लेकिन फिर वही ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।
मकड़ी से मछली तक, मशीन से सीड बॉल्स तक और सैकड़ों लोगों के श्रमदान का दौर देख चुके दलपत सागर की आस अभी टूटी नहीं है। दलपत सागर के उद्धार के लिए मौजूदा कलेकर विजय दयाराम के. भी श्रमदान में हाथ बंटा चुके हैं। कलेक्टर विजय संगीत प्रेमी और पर्यावरण संरक्षण में विशेष रूचि रखने वाले अधिकारी माने जाते हैं। इसलिए दलपत सागर की आस अभी टूटी नहीं है। जल से भी संगीत की तरंगें उठती हैं और पर्यावरण को समृद्ध बनाए रखने में जल का अहम योगदान होता है। इसलिए दलपत सागर से उठने वाली जल तरंगें कलेक्टर विजय दयाराम के. को पुकार रही हैं – ‘कलेक्टर साहब मुझे बचा लीजिए, मैं पूरे जगदलपुर को बचाए रखने में योगदान दूंगा।’ उम्मीद है दलपत सागर की यह करुण पुकार सहृदय कलेक्टर विजय तक जरूर पहुंचेगी और बस्तर की इस समृद्ध विरासत का संरक्षण हो पाएगा।