बस्तर जिले में चल रहा है जमीन फर्जीवाड़े का बड़ा खेल, पटवारी से लेकर ऊपर तक बहुत से लोग हैं मिले हुए

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  • निजी जमीन भी दूसरों के नाम करवा ले रहे हैं लोग
  • मृत निसंतान आदिवासी की जमीन फर्जी वारिस ने करवा ली नाम
  • भूमाफिया और पटवारी की सांठगांठ से जलसाजी

अर्जुन झा-

जगदलपुर बस्तर जिले में जमीन फर्जीवाड़े का बड़ा खेल चल रहा है। पटवारी से लेकर ऊपर तक कई लोग इस खेल में लिप्त हैं और करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। हद तो तब हो जाती है जब किसी मृत आदिवासी की जमीन फर्जी वारिस खड़े कर उसके नाम कर दी जाती है और फिर वह जमीन किसी और के पास बेच दी जाती है। ऐसा ही एक बड़ा ही गंभीर मामला जगदलपुर से लगे ग्राम तुसेल का सामने आया है। इस मामले में पटवारी, राजस्व कर्मियों, अधिकारियों और भू माफियाओं की सांठगांठ स्पष्ट नजर आ रही है। बस्तर जिले में जमीन की फर्जी रजिस्ट्री, नामांतरण व सरकारी भूमि को बेचने, उस पर कब्जा करवाने के दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। अब तो यह गठजोड़ गिरोह मरे हुए लोगों की भूमि को भी नहीं बख्श रही है।

शहर से सटे ग्राम तुसेल में ऐसा ही मामला सामने आया है। तुसेल एक बुजुर्ग आदिवासी के निधन के बाद उसकी चार एकड़ मरहान जमीन पर न केवल कब्जा कर लिया गया, बल्कि जमीन खाते में भी मृतक का फर्जी वारिसान दर्शाकर फौती उठवा ली गई और नामांतरण भी करवा लिया गया है। वहीं मृतक के वास्तविक नाती ग्राम जाटम निवासी युवक को इसकी भनक तक नहीं लगी। आरोप है कि कुछ

भू-माफियाओं ने स्थानीय पटवारी की मिलीभगत से इस धोखाधड़ी को अंजाम दिया है। इन लोगों मृतक के नाम से दर्ज जमीन अपने एक ऐसे परिचित के नाम करवा ली, जो दीगर जिले का निवासी है। मृतक मासे पिता डोरा जाति माड़िया निवासी ग्राम तुसेल को 1961

के आसपास शासन द्वारा खसरा नंबर 104 की चार एकड़ भूमि खेती के लिए

आवंटित की गई थी। यह भूमि उनके परिवार के जीवनयापन का प्रमुख साधन थी। डोरा की मृत्यु के बाद यह ज़मीन उनके बेटे मासे के नाम राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर दी गई। जिससे उसकी ज़मीन पर पूरी तरह कानूनी हकदारी सुनिश्चित हो गई। वर्ष 2009 में मासे की भी मृत्यु हो गई। इसके बाद भू-माफियाओं ने इसका फायदा उठाते हुए फर्जी दस्तावेज तैयार करवाए। उन्होंने तात्कालीन पटवारी की मिलीभगत से जमीन का फौती नामांतरण अपने संपर्क में रहने वाले कोंडागांव निवासी भदरू पिता चैतू के नाम करवा लिया, जो कि भू-माफियाओं का डमी बताया जा रहा है।

जाति में भी फर्जीवाड़ा

राजस्व अभिलेखों का अवलोकन करने पर ज्ञात हुआ कि डोरा ‘माड़िया’ जनजाति से संबंधित थे, जबकि फर्जी कागज़ों में ज़मीन का नामांतरण जिस भदरू के नाम हुआ, उसकी जाति मुरिया बताई जा रही है। यह भी एक प्रमुख बिंदु है कि किस प्रकार आदिवासी जातियों के नाम का हेरफेर कर धोखाधड़ी की गई, वह इस मामले को और भी गंभीर बनाता है।

तत्कालीन पटवारी का बड़ा रोल

इस फर्जीवाड़े में तत्कालीन पटवारी ने फौती नामांतरण के लिए प्रस्तुत दस्तावेजों का बिना परीक्षण किए ग्राम तुसेल के दो गवाहों सुबराय व अमलसाय के साथ

सांठगांठ कर नियमों का उल्लंघन करते हुए फर्जी दस्तावेज़ के आधार पर

ज़मीन के फौती नामांतरण की प्रक्रिया को भी गुपचुप तरीके से अंजाम दे दिया।इसके बाद कुछ भू-माफियाओं ने इसे दूसरे लोगों के पास बेचने का प्रयास शुरू कर दिया। तब कहीं इसकी भनक ग्राम पंचायत को लगी।

पंचायत ने दिया है आवेदन

वहीं इस मामले में तुसेल ग्राम पंचायत के उप सरपंच सुरेंद्र त्रिपाठी का कहना है कि मासे की मौत के 15 साल बाद शहर के कुछ भू-माफिया गांव में आकर लोगों को जमीन दिखवा रहे थे। तब पंचायत को यह जानकारी मिली कि फर्जी गवाहों की मदद से मासे की जमीन का फौती नामांतरण कोंडागांव निवासी भदरू पिता चयतू के नाम पर हो चुका है, जबकि इस व्यक्ति का मृतक के परिवार से कोई संबंध ही नहीं है। इसके बाद पंचायत ने तीन माह पूर्व एसडीएम जगदलपुर के समक्ष शिकायत दर्ज कराई थी, पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

वर्सन

*होगी जांच, करेंगे कार्रवाई

संभव है शिकायत मिली हो, लेकिन मामला फिलहाल मेरे नॉलेज में नहीं है। पंचायत वालों को चाहिए कि फिर से आवेदन दें। जांच होगी और प्रक्रिया के मुताबिक करवाई भी की जाएगी।

भरत कौशिक,

 एसडीएम जगदलपुर