अपाहिज वृद्धा को अपनों ने ठुकराया, तो सरकारी भवन को बसेरा बनाया

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  •  पंचायत प्रतिनिधि नहीं ले रहे हैं लाचार बुजुर्ग की सुध
  • स्वीकृत प्रधानमंत्री आवास का अब तक पड़ा है अधूरा

अर्जुन झा

बकावंड एक मां कभी अपनी संतान को कष्ट में नहीं देख सकती। अपनी औलादों की सारी तकलीफ वह अपने सिर पर लेने के लिए हरदम तैयार रहती है। वहीं आज की संतान शरीर से लाचार माता पिता को एक दिन भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। 60 साल से भी ज्यादा उम्र वाली चेरो बघेल भी अपनी संतानों की ठुकराई एक बदनसीब मां है। गांव में घरबार रहते हुए भी वह बेघर रहने और सरकारी भवन के एक हिस्से में उम्र के अंतिम पड़ाव के दिन काटने मजबूर है।

बकावंड विकासखंड की ग्राम पंचायत डिमरापाल निवासी चेरो बघेल काफी बुजुर्ग तो हो ही चली है, पैरों से भी विकलांग है। ऊपर वाले की इस दोहरी मार को तो चेरोबाई बघेल किसी भी तरह सहती आ रही थी, मगर उसकी अपनी संतानों ने जो मार पहुंचाई है, वह चेरो बाई के लिए असहनीय हो गई है।परित्यक्ता और निशक्त चेरोबाई की परवरिश करने से उसकी ही संतानों और परिजनों ने हाथ खींच लिया। यही नहीं उसे घर से भी निकाल दिया गया। आज चेरो बाई गांव की सरकारी उचित मूल्य की दुकान के भवन के एक हिस्से में रहकर दिन काटने मजबूर है।महिला परेशान इस हिस्से में दीवार नहीं हैं। चेरोबाई ने धूप और तेज हवाओं, कुत्तों आदि से बचने के लिए चारों ओर पुरानी साड़ियों का पर्दा तान रखा है। बिछौने के नाम एक पुरानी चटाई और गिनती के बर्तन ही उसकी पूंजी हैं। गांव वाले जो कुछ दे देते हैं, उसे लकड़ी के चूल्हे में किसी तरह पकाकर चेरो बाई अपनी भूख शांत कर लेती है। बताते हैं कि जब तक चेरो बाई का शरीर ठीक था, घरवाले उसे साथ रखे रहे, शरीर से लाचार होने के बाद परिजनों ने ठुकरा दिया और डेढ़ साल से असहाय चेरो बाई राशन दुकान के बरामदे में जिंदगी गुजारती आ रही है।

पंच परमेश्वर को भी रहम नहीं

कहते हैं जिसका नहीं कोई सहारा, उसका होता है ऊपर वाला रखवाला, मगर यहां तो डिमरापाल के पंच परमेश्वरों को भी चेरो बाई की बेबसी पर रहम नहीं आ रहा है। पता चला है कि चेरो बाई के लिए प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत हुआ था। आवास निर्माण का काम थोड़ा बहुत ही हो पाया था कि परिजनों द्वारा आवास बनवाने से मना कर दिया गया और उस जमीन से वृद्ध चेरो बाई को भगा दिया गया। पंच, सरपंच और सचिव चाहते तो चेरोबाई के परिजनों को समझा बुझाकर उसके लिए आवास निर्माण करवा सकते थे। मगर किसी ने कोशिश तक नहीं की। वहीं चेरो बाई को न तो वृद्धावस्था पेंशन का न ही निराश्रित पेंशन का लाभ दिलाया जा रहा है। चेरोबाई पंचायत के सरपंच, सचिव से गुहार लगा लगाकर थक चुकी है। लेकिन पंचायत प्रतिनिधियों को इस गरीब विकलांग बेसहारा महिला पर दया नहीं आ रही है।