संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है….संत श्री राम बालक दास जी

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संस्कृति में श्रीमद्भगवद्गीता न केवल पूज्य बल्कि अनुकरणीय भी है। इस ग्रंथ में उल्लेखित उपदेश इसके 18 अध्यायों में लगभग 720 श्लोकों में हैं। श्रीमद्भगवद्गीता दुनिया के वैसे श्रेष्ठ ग्रंथों में है, जो न केवल सबसे ज्यादा पढ़ी जाती है, बल्कि कही और सुनी भी जाती है। जीवन के हर पहलू को गीता से जोड़कर व्याख्या की जा सकती है, छत्तीसगढ़ के महान तीर्थ पाटेश्वर धाम, के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके द्वारा संचालित ऑनलाइन सत्संग में प्रतिदिन एक गीता श्लोक का अर्थ वर्णन किया जा रहा है, जिस के ज्ञान से सभी अभिभूत हो रहे हैं |

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बाबा जी ने बताया कि वस्तुतः किसी भी ग्रंथ के पाठन पूर्व में उसके महत्व का ज्ञान बहुत आवश्यक है उसके पाठन पूर्व हाथ जोड़कर अपने अंदर झांकते हुए प्रार्थना करना,वह प्रार्थना जो हमारे हृदय से अंतःकरण से होती है वही प्रार्थना हमें इस योग्य बनाती है कि हम एक जाति संप्रदाय की ही नहीं बल्कि संपूर्ण सृष्टि की सेवा कर सके जिसके लिए ईश्वर ने हमें इस दुनिया में भेजा है और यही विचार हमें प्रार्थना की सर्वोपरिता को सिद्ध कर आता है प्रार्थना और प्रणाम में वह शक्ति है जिससे जीव परमात्मा से संवाद स्थापित कर सकता है दो घड़ी को आंख बंद करके भगवान के समक्ष खड़े होते हैं और जब संपर्क स्थापित होता है तब हम वहां से आंख

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खोल कर चले जाते हैं थोड़ी देर आत्म विभूत होना आवश्यक है अंतर्मन में डुबकी लगाना सीखे प्रार्थना को लंबा करिए उसे स्थाई बनाइए प्रार्थना प्रणाम को समाधि की ओर ले जाना चाहिए, समूचे ब्रह्मांड का निर्माण एवं उस निर्माण का निर्माता ईश्वर ही है अतः वह जीव मात्र का पालक व पिता परमात्मा भी है जब वह अपनी संतति को दुखी देखता है जो उसे हृदय से याद करता है तो प्रभु सहायता करने के लिए स्वयं आ जाते हैं, इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु भगवत गीता की रचना हुई हम ऐसी भगवत गीता को हाथ जोड़कर आंख मूंदकर कुछ घड़ी प्रणाम करते हैं ताकि हम उसको मनन करके अपने हृदय में समाहित कर पाए |

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आज के गीता पाठ में श्लोक वाचन के साथ बाबा जी ने विदित कराया कि श्री कृष्ण जी अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन मेरी शरण में हो जाओ मुझ पर आश्रित हो जाओ मुझ पर अटूट आस्था करने वाला हो जाओ मुझसे अतिरिक्त और किसी से तुम्हारी आस्था ना हो केवल मेरी शरण में आने पर मैं तुम्हें अभय कर दूंगा किसी प्रकार के योग जप तप की तुम्हे आवश्यकता ही नहीं बस एक बार मैं आपका हूं ऐसा कह,मेरी शरण में आ जाओ तुम्हारे सारे पाप नाश कर मै तुम्हें हृदय से लगा लूंगा |
श्रीमद भगवत गीता के 12 अध्याय के श्लोक 19 में “तुल्य निंदा……..” स्वयं भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन निंदा स्तुति को बराबर समझकर जो मिला उसमें संतुष्ट रहकर जो मेरी भक्ति करता है मुझे से प्रीत करता है प्रेम करता है मुझे अपना मानता है ऐसा भक्त मुझे अपने प्राणों से भी प्रिय है |

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भगवत गीता के इस तरह के ज्ञान को प्राप्त कर के सभी भक्त के सत्य ज्ञान में वृद्धि हो रही है.एवं बाबा जी की अमृतवाणी मे श्रीमद्भगवद्गीता का दिव्य रस पान करने का सौभाग्य सभी भक्तगणों को प्राप्त हो रहा है
प्रतिदिन की भांति ही रिचा बहन ने अद्भुत *आज का मीठा मोती प्रेषित किया _ मन बच्चा है उसे केवल प्रेम की भावना अच्छी लगती है, इसलिए उसे प्रेम दो, घृणा नफरत नहीं।
इस पर ज्ञान के मोती बरसाते हुये बाबा जी ने कहा कि प्रभु रामानंदाचार्य जी यह कहते हैं कि व्यक्ति जब सोता है तो उसे यह सोचना चाहिए कि वह मौत के आगोश में जा रहा है यह मेरे जीवन का अंतिम दिन है इसी भाव से क्षमा प्रार्थना करके सोना चाहिए परंतु प्रातः जब उठे तो बालक की तरह उठना चाहिए बिल्कुल थकान से रहित प्रसन्न चित्त होकर चंचल स्पूर्ति के साथ सुस्ती को त्याग कर आलस्य को त्याग कर अपने कार्यों का संचालन करना चाहिए, भगवत चिंतन करना चाहिए, जिस तरह एक नन्हे बालक के समक्ष हम यह कहते हैं कि हमारे गलत कर्म का प्रभाव उस पर पड़ेगा इसलिए वह कर्म हम उसके सामने कभी नहीं करते उसी तरह जब हमारे मन में भी कोई बुरे विचार आते हैं तो उसे तुरंत ही हमें दूर कर देना चाहिए
इस प्रकार आज का ज्ञान पूर्ण सत्संग पूर्ण हुआ आप भी पाटेश्वर धाम के वाट्सएप नम्बर 9425510729 पर मैसेज करके इस ऑनलाइन सत्संग से जुड़ सकते है
जय गो माता जय गोपाल जय सियाराम