एस. करीमुद्दीन UNI
छत्तीसगढ़ का सबसे अतिसंवेदनशील इलाका, पहुंचविहिन और सबसे कम साक्षरता का इलाका अबूझमाड़ का है. यहां घनघोर जंगल, नदी-नाले और पहाड़ संवेदनशील होने के कारण सैकड़ों गांव तक प्रशासन की पहुंच नही है. अति संवेदनशील इलाके में बीजापुर जिले के भैरमगढ़ से मेडिकल टीम अबूझमाड़ से लगे दूरस्त गांव में डाॅ. सरिता मनहर के नेर्तत्व में यह टीम नदी पार कर ताकीलोड़ गांव पहुंचा जहां आदिवासियों का कोरोना उपचार टीकाकरण किया जाना था.
जिला टीकाकरण अधिकारी डाॅ. के. बनपुरिया ने बताया कि बस्तर संभाग का अबूझमाड़ इलाका जो बीजापुर, नारायणपुर, महाराष्ट्र सीमा क्षेत्र में आता है वहां के अधिकांश लोग अनपढ़ एवं अशिक्षित है, इसलिए हर तरह की दिक्कत आती है. दूर-दूर गांव पारा टोला में होने से कोरोना टीका के साथ पहुंचना कठीन काम था. इसके बावजूद महिला चिकित्सक सरिता मनहर भैरमगढ़ ब्लाॅक का ताकीलोड़ गांव पहुंचना मेडिकल स्टाॅफ को जोखिम उठाना कम नही है. इस इलाके सारे गांव अतिसंवेदनशील माने जाते है और यह इस गांव में पहुंचे वाली पहली महिला चिकित्सक है.
डाॅ. सरिता मनहर ने बताया कि मोटरसाईकिल, नाव एवं पैदल सफर कर गांव तक पहुंचा गया. उन्होंने बताया कि इन्द्रावती के उसपार के सारे गांव अतिसंवेदन शील माना जाता है सड़के नही होने से नदी नाले खेत पहाड़ पगडंडीयों के रास्ते हमारा दल पहुंचा. यहां के आदिवासियों ने टीका करण का विरोध नही किया न हमसे कुछ पुछताछ की यह इलाका गोड़ी भाषा जानने वाला है इसलिए यह दल गोड़ी बोली जानने वाला स्वास्थ्य कर्मी भी शामिल थे.
उन्होंने बताया कि महिला चिकित्सक होने से गांव में महिला मरीजों का संकोच दूर हुआ इस जोखिम भरे सफर में जहां हर कदम पर नक्सलवाद का खौफ है वहा जाने में किसी प्रकार का संकोच व डर नही लगा.
डाॅ. सरिता ने बताया कि गत 18 जुलाई 2020 को बीजापुर जिले के भैरमगढ़ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में उनकी पदस्थापना हुई बीजापुर के नाम से वैसे ही डरते थे. क्योंकि लगातार आये दिन इस इलाके में नक्सलियों की घटनाए होती थी. पर अब मेरी नजरों में भैरमगढ़ बहुत प्रकृति सुंदरता से भरपूर है यहां के लोग सीदे-सादे व सरल स्वभाग के है इस इलाके में अधिकांश अनिमिया एवं मलेरिया के मरीज अधिक है प्रारंभ में गोड़ी भाषा होने के कारण दू-भाषियों को साथ में रखना पड़ता था अब धीर-धीरे टूटी बोली मैने भी सिख ली है इस इलाके में सबसे ज्यादा बच्चे व गर्भवती महिला कुपोषण की शिकार है.
डाॅ. सरिता ने बताया कि ताकीलोड़ जाने से पहले मुझे ताकीलोड़ का नाम भी ठीक से याद नही हो रहा था. नदी तक हमारी टीम एम्बुलेंस में गयी, फिर रेत में पैदल चलकर नदी में नाव में सवार हुए नाव डगमगा रही थी. नदी के उसपार हम चार बाईक में सवार होकर हमने कुछ लोगों को समान लेके आगे भेज दिया और कुछ दूरी तक पैदल जंगलों मंे गये समान छोड़कर आने के बाद हम बाईक में सवार होकर गांव पहुंच गये. वापसी में बारिश, जंगलों के बीच पगडंडी से गुजर कर घर तक पहुंचे.