(अर्जुन झा)
जगदलपुर। बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों के आदिवासियों के हक में अपनी सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए मुख्य्मंत्री भूपेश बघेल ने जिस तरह धर्मांतरण के मुद्दे पर सीधे तौर पर यह कहा है कि जबरिया और प्रलोभन से धर्मांतरण का एक भी मामला हो तो जानकारी उपलब्ध कराएं, कड़ी कार्रवाई होगी, उससे ऐसा सियासी संकेत मिला है कि भाजपा को इस मामले में राजनीति करने का मौका देने के मूड में भूपेश बघेल कतई नहीं हैं। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि भाजपा के परंपरागत सियासी मुद्दे पर भूपेश बघेल की नज़र है। उन्होंने कहा है कि मध्यप्रदेश के समय से धर्मांतरण कानून लागू है। गौरतलब है कि भाजपा लम्बे समय से धर्मांतरण का विरोध करती रही है। उसके दिवंगत नेता दिलीप सिंह जूदेव तो बाकायदाधर्मावतरण अभियान चलाकर लोगों की धर्म वापसी कराते थे। जब भी राज्य के किसी क्षेत्र में धर्मांतरण की खबर सामने आई, तब तब भाजपा मोर्चा खोलती रही है।आदिवासी अंचलों में धर्मांतरण की घटनाओं पर भाजपा हमेशा मुखर रही है लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि किन्हीं भी कारणों से आदिवासी अंचलों में तेजी से धर्मांतरण हुआ है। अब सरकार इस मामले में संवेदनशील है और खुद मुख्य्मंत्री भूपेश बघेल ने साफ तौर पर यह कहा है कि इस तरह के मामले में कड़ी कार्रवाई की जाएगी। सीएम बघेल कह रहे हैं कि एक भी मामला जानकारी में हो तो बताएं। इसका अर्थ यह हुआ कि छत्तीसगढ़ में मौजूदा समय में जबरिया अथवा प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने का सिलसिला पूरी तरह से रुक गया है।
यह सच है कि धर्मांतरण कानून मध्यप्रदेश के समय से लागू है तो सवाल यह उठता है कि तब से अब तक धर्मांतरण मामलों का हल्ला क्यों मचता रहा और इस दौरान राज्य में कितने लोग किस तरह धर्मांतरित हुए? वैसे आदिवासी समाज में चेतना का लगातार विस्तार होने तथा सरकार द्वारा आदिवासी क्षेत्रों में विकास की रफ्तार तेज होने से धर्मांतरण जैसी घटनाओं पर विराम लगा है। तब भी वंचित इलाके के लोगों को पर्याप्त राहत देना जरूरी है। ताकि वे किसी तरह के प्रलोभन में आकर मजबूरी में कोई समझौता न करें। भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस को आदिवासी अंचलों में जबर्दस्त सफलता मिली है तो जाहिर है कि वे आदिवासियों का भरोसा कायम रखने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे। बस्तर के सुकमा जिले में पहले से ही धर्मांतरण के खिलाफ सख्ती की मुनादी सुनाई पड़ चुकी है। अब सीएम बघेल ने इस बाबत जो कड़ा संकेत दिया है, उसका असर पूरे राज्य में पड़ना स्वाभाविक है। आदिवासियों को अपनी भावनाओं और संस्कृति से बहुत गहरा लगाव है। इस वर्ग के जो भी लोग धर्मांतरण के लिए तैयार हुए, उन्होंने व्यवस्थित जीवन की उम्मीद में ही यह कदम उठाया होगा। जीने की जरूरतों की मजबूरी बहुत बड़ी होती है। जीवन शैली से समझौता बहुत कठिन होता है। ऐसे में कोई समझौता किया जाय तो यह तय है कि यह कदम न उठाए जाते, इसके विकल्प मौजूद नहीं थे। जो हो चुका, वह अतीत की व्यवस्था की देन है। मगर अब ऐसा न हो, कोई विषमता धर्मांतरण का रास्ता न खोले, इस दिशा में भूपेश बघेल सरकार सतर्क है। वह आदिवासियों को वहां भी भू अधिकार पट्टे वितरित कर रही है, जहां नक्सलियों की वजह से ऐसा नहीं हो सका था।
कहा जा रहा है कि जिन अंदरूनी इलाकों में भाजपा की सरकार आदिवासियों को भू अधिकार पट्टे वितरित नहीं कर सकी, वहां भूपेश बघेल की सरकार यह कर रही है। अब इससे उम्मीद है कि आदिवासियों की हालत इतनी सुधर सकती है कि वे किसी प्रलोभन का शिकार होने से बच सकें। अगर सियासी लिहाज से देखा जाए तो भूपेश बघेल का यह सकारात्मक नजरिया आदिवासियों के मन में कांग्रेस के प्रति भरोसा कायम रखने में कारगर हो सकता है।