(अर्जुन झा)
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की बस्तर लोकसभा सीट का इकलौता सामान्य विधानसभा क्षेत्र जगदलपुर कांग्रेस और भाजपा की आंख का तारा है। लम्बे समय बाद पिछ्ले चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा से यह सीट छीनने के साथ ही पूरे बस्तर में भाजपा का सफाया कर दिया था। उसकी इकलौती सीट दंतेवाड़ा भी उपचुनाव में जीतकर सूपड़ा साफ कर दिया। अब बीते चुनाव को तीन बरस बीतने को आ गए हैं और अगले चुनाव की मैदानी तैयारी शुरु हो चुकी है। जगदलपुर सीट से भाजपा के सामान्य वर्ग से जुड़े कई लोगों की उम्मीदें जवान हैं। संतोष बाफना पिछ्ले चुनाव में रेखचंद जैन से मात खाने के बाद अब दौड़ से बाहर हो सकते हैं। अगले चुनाव में भाजपा बड़े पैमाने पर उम्मीदवार बदलेगी, इसका अंदाज लोकसभा चुनाव में लग चुका है। जब सिटिंग एमपी बेटिकट कर दिए गए तो इसी मापदंड के तहत पराजित योद्धाओं की भला क्या अहमियत हो सकती है? जहां तक जगदलपुर सीट की बात है तो बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव सबसे प्रबल दावेदार हो सकते हैं। वैसे कमलचंद भंजदेव के साथ ही किरण देव, श्रीनिवास राव मद्दी, संजय पांडे सहित कई नाम चर्चा में हैं लेकिन अगर बस्तर महाराजा ने चुनाव लडने की इच्छा जाहिर कर दी तो भाजपा उन्हें अवसर दे सकती है। भाजपा ने बस्तर महाराजा को जिस तरह पूरे बस्तर में सक्रिय कर दिया है, उसे देखते हुए कहा जा रहा है कि बस्तर में भाजपा के उजड़े सरोवर में कमल खिलाने का जिम्मा कमलचंद भंजदेव सम्हालेंगे। कहा जा रहा है कि स्थानीय बोली के जानकार बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव जिस प्रकार गांव-गांव में धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, मांझी चालकियों को जोड़ रहे हैं।बस्तर दशहरा का ऐतिहासिक उल्लेख कर रहे हैं, उसके मद्देनजर वे कांग्रेस के लिए एक चुनौती बन सकते हैं।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बीते चुनाव में पहली बार जगदलपुर सीट कांग्रेस के हाथ लगी है। राज्य गठन के बाद तीन साल तक कांग्रेस के स्व.झितरु बघेल विधायक थे। उनके बाद भाजपा से सुभाऊ राम कश्यप पांच साल तथा संतोष बाफना दस साल तक विधायक रहें। पिछ्ले चुनाव में संतोष बाफना को कांग्रेस के रेखचंद जैन ने जबर्दस्त तरीके से हराया। अब यह तय समझा जा रहा है कि भाजपा अगले चुनाव में जगदलपुर में नया लेकिन चिर परिचित चेहरा सामने ला सकती है। अब अगले चुनाव की तैयारियों के दौर में भाजपा का फोकस वनांचल पर है। बस्तर ने जब तक भाजपा का साथ दिया तब तक वह सत्ता पर काबिज रहित। किंतु जब बस्तर ने भाजपा से किनारा कर लिया तो पूरे राज्य में वह श्रीहीन हो गई। भाजपा अब फिर यहां पनपने की कोशिश कर रही है तो बस्तर महाराजा कमलचंद भंजदेव उसकी उम्मीदों के रथ के सारथी बने हैं। भाजपा ने बस्तर में फिर आबाद होने के लिए भगवा कार्ड खेलने की तैयारी की है और राजा साहब राजधर्म की पुरानी बातों से आगे निकल कर धर्म की राजनीति के ध्वजवाहक बन गए हैं।