जगदलपुर –
शहर में नशीली दवाइयों और गांजे के अलावा अफीम का कारोबार इन दिनों काफी फलफूल रहा है. बस्तर पुलिस जहाँ एक ओर गांजे के तस्करों पर धड़ल्ले से कार्यवाई कर रही है वहीँ दूसरी ओर अफीम का कारोबार भी अपने पैर पसार रहा है, जो कि धीरे-धीरे कई वर्गों को आने वाले भविष्य में बर्बाद कर सकता है.
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, शहर में विगत कुछ समय से अन्य राज्यों से चोरी-छिपे अफीम की तस्करी की जा रही है. इस अफीम को शहर के विभिन्न इलाकों में ऊँचे दामों में खपाया भी जा रहा है. विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि नया बस स्टैंड मार्ग, परपा, धरमपुरा सहित शहर के कई पॉश इलाके हैं जहाँ विभिन्न तबके के लोग इसका शौक रखते हैं और इसे किसी भी कीमत पर खरीदने के लिए तैयार रहते हैं. छोटी-छोटी पुड़ियों में बिकने वाले अफीम की कीमत गुणवत्ता के अनुसार औसतन 8 हज़ार से 1 लाख रुपये तक हो सकती है. आलम यहाँ तक पहुँच चुका है कि नशीली दवाइयों और गांजे के आदि लोग अब अफीम की ओर रुख कर रहे हैं और युवा वर्ग भी इस ओर आकर्षित होते जा रहा है जो की निश्चित ही शहर के भविष्य के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
जानकारी यह भी मिलती है कि अन्य राज्यों से आने वाले अफीम को शहर के कुछ लोग खरीद कर शहर में विक्रय कर रहे हैं. अमूमन राजस्थान और मध्यप्रदेश से इसकी तस्करी की जाती है और देश के विभिन्न राज्यों में इसे पहुँचाया जाता है. बस्तर सहित छत्तीसगढ़ राज्य के कई शहरों में मध्यप्रदेश से इसकी तस्करी करना पाया गया है.
क्या है अफीम?
अफीम में 12% तक मार्फीन पायी जाती है जिसको प्रसंस्कृत (प्रॉसेस) करके हैरोइन नामक मादक द्रब्य (ड्रग) तैयार किया जाता है. अफीम का दूध निकालने के लिये उसके कच्चे, अपक्व ‘फल’ में एक चीरा लगाया जाता है; इसका दूध निकलने लगता है, जो निकल कर सूख जाता है. यही दूध सूख कर गाढ़ा होने पर अफ़ीम कहलाता है. यह उत्तर भारत में पाया जाने वाला 3 से 4 फीट ऊँचा पौधा है. स्थानीय भाषा में इसे आफू या अमल भी कहते है. इसके फुल बड़े एवं सफ़ेद या बैंगनी रंग के होते हैं. इसके फल किसी छोटे अनार के समान होते हैं. फल के छिलके को पोस्त कहते हैं जिसका उपयोग नशे के लिए भी किया जाता है. इसके बीज सफ़ेद या क्रष्ण मधुर स्निग्ध होते हैं. अफीम के फलनिर्यास एव बीजो का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाओं एवं उपचार के लिए किया जाता है. लेकिन, अमूमन लोग इसे नशे के लिए इस्तेमाल में लाते हैं.