(अर्जुन झा)
जगदलपुर। छत्तीसगढ़ की राजनीति में पूर्व मंत्री राजेश मूणत के बिगड़े बोल भाजपा के किस सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ढोल है, यह सवाल कांग्रेस पूछ सकती है। वह कह भी रही है कि भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने बस्तर में भाजपा कार्यकर्ताओं को जो ज्ञान दिया था, उसका असर राजेश मूणत के अपशब्द में दिखाई दे गया।भाजपा प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी ने बस्तर में भाजपा कार्यकर्ताओं को बौद्धिक दिया था कि पीछे मुड़कर थूक देंगे तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनका पूरा मंत्रिमंडल बह जायेगा। तब मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जवाब दिया था कि आसमान की तरफ थूकने पर मुंह पर ही पड़ता है। पुरंदेश्वरी के बिगड़े बोल ने छत्तीसगढ़ में सियासी तूफान खड़ा कर दिया था। तब भाजपा ने बिगड़े बोल पर
सफाई दी थी मगर माफी नहीं मांगी थी। राजेश मूणत की भाषा पर भी भाजपा ने कोई संज्ञान नहीं लिया है। अब राजेश मूणत ने सार्वजनिक तौर पर जिन अपशब्दों का प्रयोग किया है, वह बेहद आपत्तिजनक हैं और कांग्रेस को इस पर घोर आपत्ति है। भाषा की बात करें तो केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा राहुल गांधी के बयान पर व्यक्त की गई प्रतिक्रिया को लेकर बस्तर सांसद दीपक बैज का कहना है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे तो कांग्रेस की भाषा बोलते थे। अब वे भाजपा में हैं तो मोदी को खुश करने के लिए भाजपा की भाषा बोल रहे हैं। सांसद दीपक बैज ने जिस अंदाज में अपनी बात कही, इसे कहते हैं राजनीति में सज्जनता। क्या राजेश मूणत भी इसी तरह शिष्टता के साथ अपनी बात नहीं रख सकते थे। भाजपा में दो तरह की मानसिकता सामने आ रही है। एक तरफ शालीनता से विरोध की राजनीति करने वाले नेता हैं तो दूसरी तरफ आक्रामकता के साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वालों की भी कमी नहीं है। ताज्जुब यह है कि अपशब्दों की राजनीति के कारण हुए विवाद में पूरी भाजपा मूणत के समर्थन में कूद पड़ी। यह ठीक है कि किसी भी कार्यकर्ता के समर्थन में पूरे संगठन को खड़ा होना चाहिए लेकिन जो हुआ, उसे टाला भी जा सकता था। इस विवाद का भाजपा की छवि पर असर पड़ा है। कांग्रेस कह रही है कि भाजपा का चरित्र, चाल और चेहरा उजागर हो गया है। सरकारी कर्मचारियों के साथ पूर्व मंत्री राजेश मुणत ने गाली-गलौज की और अधिकारियों पर हमला किया, जिसके कारण पूरा छत्तीसगढ़ शर्मसार हुआ है। इस कृत्य के बचाव में उतरे भाजपाइयों को छत्तीसगढ़ की जनता से माफी मांगनी चाहिए। जनता भी देख ही रही है कि राजनीति में कितनी गिरावट हो रही है, यह जनता को कैसे पसंद आ सकती है।