यूपी में कौन होगा भारी कमल या छत्तीसगढ़ का गोबर

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रायपुर। गाय बैल के द्वारा विसर्जित करने वाला एक प्रकार का मल है। दुनियां में यही पशु ऐसा है जिसके मल का उपयोग भी पवित्र कार्यो में किया जाता है। पवित्र कार्यो के अलावा गोबर का उपयोग अनेक है। खाद के रूप में उपयोग आता है।कंडा बनता है जिससे खाना पकता है। हिन्दू धर्म के अनुसार दाह संस्कार में भी गोबर से बने कंडे का उपयोग होता है। गोबर का समय के साथ उपयोग बढ़ते जा रहा है। आजकल दिया बन रहा है, पेंट भी बनने जा रहा है। आगे कोई बड़ा स्टार्टअप आकर कोई क्रांति कर दे तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। इनसे परे गोबर राजनीति का विषय है।छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को यूपी चुनाव का कांग्रेस के लिए सीनियर आब्जर्वर बनाए जाने के बाद वहां के चुनावी रण और कांग्रेस की रणनीति में छत्तीसगढ़ मॉडल का असर दिखाई दे रहा है। पार्टी ने यूपी चुनाव के लिए घोषणा पत्र जारी किया है। उसमें छत्तीसगढ़ मॉडल की झलक साफ दिखाई दे रही है। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक गोधन न्याय योजना वहां लागू किया जा रहा है और राज्य में रोका छेका की तरह पशुओं के द्वारा खेत चरने से रोकने की भी बात हो रही है। राज्य में गोबर बह रहा हैं। इसकी कई जगहों पर दुर्गति है। योजना की हालत देखकर हाईकमान को निर्णय लेना चाहिए।

गोठानों मे गाय दिखती नहीं, जो बने हैं वहां पर कुछ एक गोठान महिला समितियों के नाम से स्वावलंबन होने का दंभ भरती हैं। ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को गोबर की राशि मिल तो रही है, पर सरकार को वर्मी कम्पोस्ट और अन्य उत्पादों पर आय समुचित मात्रा में नहीं मिलने से यह व्यय अनुचित हो रहा है। सरकार के इन प्रयासों से गोबर के उपले और अन्य चीजो की कमी बाजार में होने से कीमतों में जानबूझ कर बढो़त्तरी हो रही है। बड़े किसानों को फायदा और छोटे किसानों को इससे घाटा है। देखने और सुनने में यह अच्छा लगता है, पर शहरी क्षेत्रों में यह डेयरी चलाने वालों के लिए बल्लेबल्ले है।