खैरागढ़। कांग्रेस आलाकमान सोनिया गांधी के उस पत्र के साथ ही यह स्पष्ट हो गया कि रिक्त हुए इस विधानसभा के लिए स्व देवव्रत सिंह के परिवार से प्रत्याशी कांग्रेस से नहीं होंगे। परन्तु अब सवाल यह उठता है, कि गत चुनाव मे भाजपा के सत्ता मे रहते त्रिकोणीय मुकाबले मे अपने नेता को कठिन हालातों से जीताकर लाने वाले वे रणनीतिकार आख़िरकार इस बार किसके साथ है या होगे? इसके साथ ऐसे दर्जन भर सवाल है, जिसकी देखी अनदेखी इस उपचुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकती है।
(वनांचल मे सिर्फ देवव्रत कोई पार्टी नही)
देश में प्रारंभ हुए आम चुनाव के साथ ही साथ इस विधानसभा सहित आने वाले वनांचल को खैरागढ राजपरिवार के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है ।जहां से उनके रणनितिकारों ने विषम हालातों में भी इस बार भी उस इलाके से गारंटी के साथ जिताकर लाए थे ।परन्तु इस बार हालात अब बदल चुके हैं तो ऐसे में जब आज वे कांग्रेस में भी नही है तो अब क्या होगा?
(30हजार के नाव से नैया पार कैसे होगी
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यदि गत चुनाव का अध्यन करें तो पता चलता है कि तब कांग्रेस को मात्र एक्त्तिस हजार मतों से संतोष करना पडा था । जबकि कांग्रेस प्रत्याशी वर्तमान विधायक भी थे । उन सबके बावजूद भी स्व देवव्रत सिंह ने लाए 61 हजार मत प्राप्त कर इस सीट पर कब्जा जमाया था । जबकि दूसरे स्थान पर पहुंची भाजपा लगभग साठ हजार मत प्राप्त करने में सफलता पाई थी ऐसे में अब की बार कांग्रेस को जीत के लिए कम से कम अस्सी से नब्बे हजार मतों की आवश्यकता होगी।
(दो लाख से अधिक मतदाता)
जानकारी के मुताबिक इस विधानसभा क्षेत्र में लगभग दो लाख से अधिक मतदाता है। और यदि अस्सी प्रतिशत मतदान होता है तो, पर भी जीतने के लिए लगभग अस्सी से नब्बे हजार मतों की जरूरत होगी ही। उसे पाने के लिए कांग्रेस को बहुत ज्यादा मेहनत करना पड़ेगा ,जिसके लिए अब समय बहुत ही काम है।
(देवव्रत जी का वोट रणनितिकारों के बिना किसी का नहीं)
यह बात अब आम चर्चा का विषय है कि बिना देवव्रत सिंह के उनके सिपहसलारों का साथ किसको मिलेगा ? क्योंकि उनमें से आज भी अनेकों का कांग्रेस पार्टी में प्रवेश नही हुआ है । यद्यपि कानूनी उलझनों के कारण श्री सिंह व साथियो का कांग्रेस प्रवेश नही हो सका था परन्तु उनका साथ कांग्रेस के साथ ही रहा, विधायक निर्वाचित होने के उपरांत वे सदैव कांग्रेस के साथ ही रहे साथ ही राज्य सरकार को प्रेषित विकासपरक प्रस्ताव पर भी शासन द्वारा मुहर लगते रहा है , जो उनके कार्यप्रणाली को स्पष्ट करता है। देवव्रत सिंह ने लोक सभा में बहु खुलकर भोलाराम साहू के लिए वोट मांगा था। उसके बाद हुए नगरीय निकाय चुनाव में कांग्रेस प्रत्यासियों के घर घर जाकर प्रचार किये ,और तो और उनके ही नेतृत्व में जनपद की नैया कांग्रेस की पार लगाई थी।जिसकी चर्चा जनमानस में आज भी जीवित है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है।
(एकमंच पर लाना कठिन पर जीत की गारंटी)
विष्लेशकों की माने तो स्व राजा देवव्रत सिंह के उन ईमानदार साथियों सहित जमीनी कार्यकर्ताओं एवं जनप्रतिनिधियो को एक मंच पर लाना शायद एक कठिन राह हो सकती है ।परन्तु असंभव नही है। मगर एक बात साफ है कि उनका साथ होना कांग्रेस की नैया पार लगने की उम्मीद जरूर जगाती है।
(वनांचल के 39 मे से 36 बूथ जितने का रिकार्ड)
याद हो कि इस विधानसभा क्षेत्र मे जीत हार के फैसले मे वनांचल स्थित मतदान केन्द्र का महत्वपूर्ण स्थान रहता चला आया है , गत चुनाव में भी यहां के लगभग उनचालीस बूथो में से छत्तीस मे स्व देवव्रत सिंह को भारी भरकम बढत मिली थी । और यंही से उनका विजयरथ रवाना हुआ था । जो कि विजयी तिलक लगाकर ही लौटा जिसके लिए कांग्रेस को आज भी रणनिति की जरूरत होगी। ज्ञात हो कि अकेले वनांचल ने स्व, राजा देवव्रत सिंह को लगभग 4750 वोटों से बढ़त दिलाकर विधान सभा पहुचने का रास्ता साफ कर दिया था। जो स्व, राजा देवव्रत सिंह के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाने के लिए काफी था।
इस प्रकार से स्व देवव्रत सिंह के निधन के बाद रिक्त हुए इस विधानसभा क्षेत्र मे होने वाला उपचुनाव किसी भी के लिए परोसी हुई खीर साबित नही होने वाली है। अपितु अपने भूले बिसरे छिटके साथियो को लेकर एक विजयी रणनिति के साथ चलने से ही दलो को विजयी तिलक प्राप्त हो सकेगा।