गुंडरदेही नगर पंचायत में पार्षदों द्वारा अध्यक्ष के खिलाफ लाए गए अविश्वास पर अट्ठारह अप्रैल को वोटिंग होनी है। जिसमें अध्यक्ष की कुर्सी बचेगी या नगर पंचायत को नया अध्यक्ष मिलने का रास्ता साफ होगा ।यह तो 18 अप्रैल को ही पता चलेगा ,परंतु भारतीय जनता पार्टी जो अपने आप को कार्यकर्ता आधारित और अनुशासित पार्टी कहती है। उसके पार्षदों द्वारा अपने ही पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ क्यों ऐसा कदम उठाया गया?? बागी पार्षदों का नेतृत्व करने वाले पार्षद ने बताया कि नगर पंचायत के अंदर और बाहर जो भी अव्यवस्था हो रही थी, उस के संदर्भ में हम पार्टी को प्रदेश, जिला और मंडल स्तर पर लगातार लगभग 1 सालों से अवगत करा रहे थे ,परंतु पार्टी के द्वारा सिर्फ टालने का रवैया अपनाया गया और इधर नगर पंचायत में पार्षद उपेक्षा व अपने आत्म स्वाभिमान में चोट महसूस कर रहे थे।
कोविड-19 के समय जहां पूरी दुनिया मिलजुल कर कार्य कर रही थी वही गुंडरदेही नगर पंचायत में मुख्य नगरपालिका अधिकारी द्वारा पक्षपात और नगर पंचायत अध्यक्ष के द्वारा अपने ही पार्टी के पार्षदों की अनदेखी की जा रही थी ।कोविड-19 के रोकथाम के लिए सामग्री तो खरीदे गए लेकिन कहां गए?अविश्वास प्रस्ताव के इस पूरे प्रकरण में कहीं ना कहीं आने वाले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को ही नुकसान का सामना करना पड़ेगा ।इतने लंबे समय तक पार्षदों द्वारा आपत्ति दर्ज करने के बाद भी भाजपा द्वारा हल न किया जाना कई सवालों को जन्म देता है। यह भाजपा का अपना अंदरूनी मामला है परंतु पार्टी को शर्मसार कर देने वाले प्रकरणों पर भी फैसला करने में काफी वक्त लिया जाता है जिसके चलते कार्यकर्ताओ में आक्रोश और बढ़ता है ।कुछ ऐसी ही घटना विगत कुछ माह पहले वायरल ऑडियो क्लिपिंग के माध्यम से हुआ था, उस पर भी काफी देर से आधी अधूरी कार्रवाई कर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया परंतु पिछड़ा वर्ग में उक्त घटना को लेकर रोष आज भी व्याप्त है। नगर पंचायत के बागी पार्षद कितने सही हैं और पार्टी द्वारा क्या कार्रवाई की जाती है यह तो वक्त ही बताएगा।
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