अपने पे भरोसा है तो ये दांव लगा ले, क्या आदिवासी एक्सप्रेस चलायेगी भाजपा…

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(अर्जुन झा)

जगदलपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी किसी को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर सामने न कर प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे को सामने रखेगी। कांग्रेस इसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकप्रियता और कांग्रेस सरकार के काम के कारण भाजपा की हताशा का नतीजा बता रही है। भाजपा का अपना नजरिया है और कांग्रेस का अपना दृष्टिकोण। भाजपा की प्रदेश प्रभारी डी. पुरंदेश्वरी पहले ही खुलासा कर चुकी हैं कि चुनाव में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी का चेहरा सामने नहीं होगा। अब सह प्रभारी नितिन नबीन ने बता दिया कि पीएम मोदी के नाम और काम पर चुनाव लड़ेंगे। भाजपा को पूरा हक है कि वह स्थानीय चेहरा सामने रखकर चुनाव लड़े या सामूहिक तौर पर चुनाव लड़ने के लिए मोदी का चेहरा सामने करें। भले ही चुनाव राज्य का होना है लेकिन भाजपा अपने उस चेहरे को आगे लाना चाहती है, जिसकी दम पर वह देश चला रही है तो मोदी से बड़ा चेहरा और कौन हो सकता है।

कांग्रेस के लिए यह गर्व का विषय है कि छत्तीसगढ़ के अगले चुनाव में उसके मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकप्रियता का मुकाबला प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता से होगा। यदि राज्य के चुनाव में मुख्यमंत्री बघेल प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता पर भारी पड़ गए तो फिर लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को वह फायदा मिलने की उम्मीद बढ़ जायेगी, जो उम्मीद 2019 के लोकसभा चुनाव में थी। वैसे भाजपा यहां मोदी के नाम का वैसे ही इस्तेमाल करेगी, जैसा पिछले चुनाव में कांग्रेस ने अपने नेता राहुल गांधी के नाम का किया था। संघर्ष तो भाजपा के कार्यकर्ताओं को ही करना है। अभी चुनाव को डेढ़ साल का समय बाकी है। यह तो तैयारी का दौर है। भाजपा प्रदेश प्रभारी और सह प्रभारी ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं। भाजपा की प्रभारी बस्तर में संगठन के मोर्चे पर लगातार सक्रिय हैं। राजनीति में चुनावी रणनीति के फुलप्रूफ प्लान चुनाव के छह महीने पहले सामने आते हैं तो अभी सिर्फ इतना समझ लीजिए कि छत्तीसगढ़ में भाजपा ठीक उसी प्रकार सामूहिक नेतृत्व में अगला चुनाव लड़ेगी, जिस तरह कांग्रेस ने पिछला चुनाव लड़ा था और भूपेश बघेल के संगठन नेतृत्व में भाजपा की सरकार को उखाड़ फेंका था। भूपेश बघेल जो जुझारूपन तब संगठन के मुखिया के रूप में दिखा रहे थे, वही सरकार के मुखिया के तौर पर दिखा रहे हैं। भले ही उनके मौजूदा भेंट मुलाकात दौरे को चुनाव से जोड़कर न देखें तब भी राज्य की सभी 90 सीटों के इलाके का उनका दौरा चुनाव के पहले सरकार की मैदानी सक्रियता तो है ही। भूपेश बघेल सरकार के स्तर पर सक्रिय हैं और भाजपा संगठन के स्तर पर व्यस्त है। अभी भाजपा ने अपनी चुनावी चौसर की सिर्फ एक गोटी सामने की है कि वह पीएम मोदी का नाम और काम भुनायेगी। कांग्रेस भी तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लोकप्रियता और काम के बूते मैदान में होगी। अभी भाजपा के पास वक्त है तो भूपेश बघेल सरकार के पास भी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय है। मुख्यमंत्री अपने हिस्से की जिम्मेदारी बेहतर से बेहतर तरीके से निभा रहे हैं।

जरूरत यह है कि कांग्रेस का संगठन अपनी सरकार के काम को जन जन तक पहुंचाने में बराबरी से सक्रिय हो तो कांग्रेस संगठन के जोश में कहीं कोई कमी नजर नहीं आ रही। जब सत्ता और संगठन मिलकर मोर्चे पर डटते हैं तो परिणाम अच्छा ही होता है। यह 2008 और 2013 में सामने आ चुका है। 2018 में भाजपा निबट गई तो उसकी वजह भी सबको पता है। अब भाजपा फिर सत्ता में आने के लिए मचल रही है तो इसके लिए उसे कुछ हटकर सोचना होगा। यह ठीक है कि भाजपा किसी नेता विशेष को भावी मुख्यमंत्री के रूप में सामने नहीं करेगी लेकिन वह वर्ग विशेष की राजनीति के क्षेत्र में तो विचार कर सकती है। जिस तरह उसकी प्रदेश प्रभारी बस्तर में सक्रिय हैं तो यह संभावना तलाशी जा सकती है कि भाजपा आदिवासी एक्सप्रेस चला सकती है। नाम और चेहरा बताने की क्या जरूरत है? काम तो समाज के स्तर पर भी चल सकता है। लगे हाथ वह राजनीतिक समीकरण बैठाने के लिए दो उप मुख्यमंत्री का दांव भी चल सकती है। अब सवाल यह है कि आदिवासी बहुल इलाकों में फिर से खड़े होने के लिए भाजपा यह दांव लगाने खुद पर भरोसा करती है कि नहीं?