स्नैक्स के साथ जहर खा रहे है लोग

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खाद्य विभाग के अधिकारी अपनी आंखों में पट्टी बांधे बैठे हैं
-अख़बार के पन्नों में छुपा है आपकी मौत का सामान
ठेले, खोमचों और होटलों में ख़तरनाक रसायन वाले कागजों में परोसा जाता है खाद्य पदार्थ

अर्जुन झा
जगदलपुर. अगर आप स्ट्रीट फूड के शौक़ीन हैं और प्रिंटेड कागजों में आपको खाद्य पदार्थ परोसा जाता है, तो सावधान हो जाइये. क्योंकि स्वाद की चाह में आप स्नैक्स के साथ ऐसा जहर भी खा रहे हैं, जो धीरे – धीरे आपको यमलोक के द्वार की ओर ले जा रहा है. खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता नियंत्रण प्राधिकरण ने प्रिटेड कागजों को खाने की चीजें परोसने के लिए इस्तेमाल करने पर प्रतिबन्ध लगा रखा हैं, लेकिन बस्तर संभाग समेत समूचे छत्तीसगढ़ में इस प्रतिबंध का कोई असर नहीं दिख रहा हैं. बस्तर के फूड कंट्रोलर और फूड इंस्पेक्टर तो अपनी आंखों पे पट्टी बांधे बैठे हैं. लगता है, उन्हें आम लोगों की जिंदगी से कोई वास्ता नहीं हैं वो दिन लद गए जब दादी नानी के मार्गदर्शन में हर घर में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते थे और परिवार के सभी सदस्य मिलजुलकर उन पकवानों का लुत्फ़ उठाया करते थे. अब तो हर किसी को होटलों, रेस्टोरेंट, ठेले खोमचों में नमकीन और मीठे का आनंद उठाते देखा जा सकता हैं. होटलों और ठेले खोमचों में समोसे, बड़े, आलूगुंडे, भजिया. बड़ा पाव तथा मिठाइयाँ आदि खाद्य पदार्थ अख़बार के टुकड़ों तथा अन्य प्रिटेड कागजों में खाने को दिए जते हैं. ऐसे कागजों में दरअसल एक प्रकार का जहर छुपा रहता हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद ख़तरनाक होता है. रसायन शास्त्र के जानकर बताते हैं कि अख़बारों तथा अन्य कागजों पर प्रिंटिंग के लिए जो स्याही इस्तेमाल की जाती हैं, वह घातक रसायनों से बनाई जाती हैं. यही घातक रासायनों वाली स्याही कागजों पर परोसे जाने वाले खाद्य पदार्थो में घुल जाती हैं और खाद्य पदार्थों के साथ इंसान के पेट में चली जाती है. स्याही में मिले रसायन शरीर के अंदरूनी अंगों को प्रभावित करते हैं. इसकी वजह से फेफड़े, लिवर, दिल किडनी आदि को नुकसान पहुंचता है. मसलन यह कि स्वाद के चक्कर में इंसान स्वयं अपनी जान से खिलवाड़ कर बैठता है. पैसे बचाने जान से खिलवाड़ दरअसल होटल और ठेले खोमचे वाले पैसे बचाने के फेर में लोगों की जान से अनजाने में ही खिलवाड़ कर रहे होते हैं. उन्हें प्रिटेड कागजों के नुकसानदेह होने की कोई जानकारी ही नहीं रहती. वास्तव में सारा दोष तो सिस्टम का है. पहले चीनी मिट्टी या स्टील की प्लेटों में खाद्य पदार्थ होटलों और ठेले खोमचों के संचालक परोसा करते थे. ऐसी प्लेट्स महँगी होती हैं तथा उन्हें बार -बार धोने का लफड़ा अलग. इससे बचने के लिए अब कागजों का उपयोग धड़ल्ले से किया जाने लगा है. सो रहा है खाद्य महकमा ? मौत के इस खेल के लिए सिस्टम को दोषी इसलिए भी माना जा सकता है क्योंकि प्रशासनिक व्यवस्था की बागडोर सम्हाल रहे अफसर प्रिटेड कागजों के खाद्य पदार्थ परोसने के लिए हो रहे इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं. इसकी जिम्मेदारी खाद्य विभाग पर है, लेकिन लगता है कि इस विभाग के अफसरों को इस दिशा में ध्यान देने के लिए समय ही नहीं मिल रहा है. एफएसएसए ने लगा रखी है रोक फूड सेफ्टी एंड स्टैंण्डर्ड अथारिटी (एफएसएसए ) ने ख़तरनाक रासायनों से निर्मित स्याही से छपे कागजों और अखबारों के पन्नों पर खाद्य पदार्थ परोसे जाने पर रोक लगा रखी है. अथारिटी कि पहल पर भोपाल में इस रोक का कड़ाई से पालन किया जा रहा है. वहां नियम तोड़ने वाले दुकानदारों पर दो लाख रूपये तक का जुर्माना लगाया जा रहा है. जुर्माने कि रकम दुकान की स्थिति के अनुसार वसूली जाती है. डाइज का उपयोग पहले अख़बार की छपाई के लिए लेड आकसाइड युक्त स्याही का इस्तेमाल होता था, जो स्वास्थ्य के लिए घातक है. अब इसकी जगह विभिन्न डाइज का उपयोग किया जाने लगा है, जो थोड़ा महंगा तो है, लेकिन मानव स्वास्थ्य के लिए कम घातक है. |