- आजादी के अमृत महोत्सव की बेला में भी झिरिया पर हैं निर्भर
- बाहर से आने वाले पर्यटकों को भी भटकना पड़ता है पेयजल के लिए
बस्तर जिले के अनेक गांव प्राकृतिक सौंदर्य और मनोहारी जलप्रपातों के लिए प्रख्यात तो हैं, मगर बुनियादी सुविधाओं के लिए मोहताज भी हैं। शुद्ध पेयजल और अच्छी सड़कों का अभाव इन गांवों में आजादी के 75 वर्ष बाद भी बना हुआ है। इन्हीं में से एक गांव है बीजाकसा रतेगा, जो खूबसूरत वाटरफाल के लिए माशहूर है। एक बड़े जल प्रपात को अपने दामन में समेटे इस गांव के लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी नसीब नहीं हो पा रहा है। यहां के ग्रामीण आज भी झिरिया का पानी पीने मजबूर हैं। जलप्रपात का नजारा देखने आने वाले पर्यटकों को भी पानी के लिए तरसना पड़ता है।
बस्तर की वादियों को कुदरत ने बेइंतहा खूबसूरती से नवाजा है। जैव विविधता वाले हरे भरे जंगल, कलकल बहती नदियां, झरझर झरते झरने बस्तर की वादियों की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं, मगर जब चांद खुद दागदार है, तब भला बस्तर की हसीन वादियां बेदाग कैसे रह सकती हैं? बस्तर को यह दाग कुदरती तौर पर नहीं लगा है, बल्कि हमारे रहनुमाओं की बेदर्दी के चलते लगा है। रहनुमा अगर जिम्मेदारी से काम करते, तो गांवों को आजादी के सात दशक बाद भी समस्याओं से जूझना नहीं पड़ रहा होता। कुछ ऐसी ही अनदेखी का शिकार बस्तर विकासखंड की ग्राम पंचायत रतेगा बीजाकसा हुई है। खूबसूरत नजारे समेटे हुए इस गांव में कलकल झरते जलप्रपात की अनुगूंज चौबीसों घंटे सुनाई देती है। यहां की करीब 200 की आबादी जलप्रपात के करीब रहकर भी पीने के पानी के लिए मोहताज है। गांव में न तो नल जल योजना शुरू हो सकी है और न ही पेयजल उपलब्ध कराने के लिए कोई और इंतजाम किया गया है। आज भी यहां के ग्रामीण आदिम युग में जीते प्रतीत हो रहे हैं। पेयजल और अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए रतेगा बीजाकसा के ग्रामीणों को झिरिया के पानी पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
पर्यटक भी होते रहते हैं परेशान
इस गांव में रोजाना सैकड़ों पर्यटक आते हैं। ये पर्यटक बस्तर की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं, लेकिन न तो गांव वालों को पानी की समस्या से छुटकारा मिल पाया है और न ही पर्यटकों को साहूलियतें मिल पा रही हैं। मूलभूत सुविधाओ से वंचित इस गांव के लोग पीने के पानी की व्यवस्था करते अपनी सारी ऊर्जा खपा डालते हैं। ग्राम पंचायत रतेगा को वाटरफॉल पर्यटन क्षेत्र घोषित किया गया है। जो पर्यटक जानते हैं कि रतेगा बीजाकसा में पेयजल की व्यवस्था नहीं है, वे अपने साथ पानी की बोतलें लेकर आते हैं। वहीं जो इस तथ्य से अनजान रहते हैं, उन्हें पीने के पानी के लिए तरसना पड़ता है।