व्यवसायिक शिक्षा का बंठाधार कर रहे हैं शिक्षक

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  • ट्रेड्स की पढ़ाई करने से रोक रहे छात्र – छात्राओं को
  • खेल रहे हैं शासन की मंशा और विद्यार्थियों के भविष्य से

अर्जुन झा

जगदलपुर छत्तीसगढ़ के हायर सेकंडरी स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षा का बंठाधार करने पर इन स्कूलों के शिक्षक ही तुल गए हैं। ये शिक्षक शासन की मंशा पर तो पानी फेर ही रहे हैं, अपने विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ भी कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ शासन ने हायर सेकंडरी स्कूलों के विद्यार्थियों को विभिन्न ट्रेड्स में व्यवसायिक शिक्षा देने की शुरुआत की है। इसके लिए राज्य के 592 स्कूलों का चयन किया गया है। चयनित स्कूलों में बस्तर संभाग के भी दो दर्जन से अधिक हायर सेकंडरी स्कूल शामिल हैं। इन सभी स्कूलों में निर्धारित पाठ्यक्रम के साथ ही टेली कम्युनिकेशन, बैंकिंग एंड फायनेंस, एनिमेशन, मल्टी मीडिया, आईटी, एग्रीकल्चर, ऑटो मोबाइल, रिटेल, ब्यूटी वेलनेस, इलेक्ट्रानिक्स, हार्डवेयर, हेल्थ केयर समेत अन्य ट्रेड्स में विद्यार्थियों को दक्ष करने की योजना सरकार की है। इसके पीछे सरकार की मंशा यह है कि बच्चे स्कूल लाईफ से ही रोजगार और स्वरोजगार के लिए तैयार हो सकें। केंद्र सरकार ने स्कूलों में व्यवसायिक शिक्षा के लिए बजट में 36 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। वहीं राज्य सरकार भी अपनी ओर से तगड़ा बजट रखा है। व्यवसायिक शिक्षा के संचालन में आईसेक्ट भोपाल, सेंटम नई दिल्ली, ग्राम तरंग भुवनेश्वर ओड़िशा, लर्नेट स्किल नई दिल्ली, इंडस एडुट्रेन मुंबई, लक्ष्य जॉब स्किल बेंगलुरु, स्किल ट्री गुरुग्राम, विद्यान्ता स्किल गुरुग्राम जैसी प्रतिष्ठित संस्थाओं को जिम्मेदारी दी गई है। केंद्र और राज्य सरकार इन संस्थाओं को करोड़ों रुपयों का भुगतान कर रही हैं। भारी भरकम बजट रखने और व्यवसायिक शिक्षा के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद अधिकारी और शिक्षक इस योजना को अपने स्कूलों में सफल नहीं होने दे रहे हैं। वे बच्चों के मन में यह गलतफहमी पैदा कर रहे हैं कि ऐसी शिक्षा से कोई लाभ होने वाला नहीं है, निर्धारित पाठ्यक्रम की पढ़ाई में ही भलाई निहित है।

शिक्षकों का स्वार्थ आ रहा है इसमें आड़े

व्यवसायिक शिक्षा को असफल बनाने की कोशिशों के पीछे दरअसल शिक्षकों का स्वार्थ निहित है। शिक्षक मानते हैं कि व्यवसायिक शिक्षा प्राप्त करने के चक्कर में विद्यार्थी मूल विषयों की पढ़ाई ढंग से नहीं कर पाएंगे और उनके परीक्षा परिणामों पर विपरीत असर पड़ेगा। दूसरा यह कि विद्यार्थी शिक्षकों के पास ट्यूशन पढ़ने नहीं आएंगे। शिक्षकों का यह भी मानना है कि पाठ्यक्रम के विषयों का रिजल्ट खराब आने से उनका ( शिक्षकों ) का सीआर खराब हो सकता है। जबकि हकीकत में ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है। व्यवसायिक शिक्षा की पढ़ाई दिनभर नहीं, बल्कि अन्य विषयों के पीरियड जैसी ही होती है और सब कुछ प्रेक्टिकली होता है। रही बात ट्यूशन के नुकसान की, तो वैसे भी सरकारी शिक्षक नियमानुसार ट्यूशन क्लासेस संचालित नहीं कर सकते। कुल मिलाकर शिक्षक अपनी स्वार्थलिप्सा के कारण विद्यार्थियों के सुनहरे भविष्य के निर्माण में बाधक बन रहे हैं।

विद्यार्थियों को दोहरा लाभ

व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण करने से विद्यार्थियों को दोहरा लाभ होता है। पहला सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि नवमी की पढ़ाई करते – करते ही वे वर्तमान मांग के अनुसार विभिन्न व्यवसायिक ट्रेड्स में पारंगत होने लग जाते हैं और बारहवीं कक्षा तक पहुंचते पहुंचते इनमें महारथ हासिल कर लेते हैं। इन ट्रेड्स में अच्छा परफार्मेन्स दिखाने वाले विद्यार्थियों को सर्टिफिकेट दिया जाता है, जो आगे चलकर विभिन्न प्रतिष्ठित कंपनियों में नौकरी प्राप्त करने में मददगार साबित होते हैं। जो विद्यार्थी नौकरी नहीं करना चाहते या जिन्हें नौकरी नहीं मिल पाती वे स्वरोजगार अपनाकर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। दूसरा बड़ा लाभ यह होता है कि व्यवसायिक ट्रेड के मार्क्स विद्यार्थियों के वार्षिक परीक्षा परिणाम में जुड़ते हैं, जिससे उनके प्रप्तांक का प्रतिशत बढ़ जाता है।