अपनी किस्मत ही कुछ ऐसी थी कि दिल टूट गया

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  • खुद में कब परिवर्तन लायेगी भाजपा

अर्जुन झा

जगदलपुर बस्तर में सफाये के बावजूद भाजपा ने अपने भीतर बदलाव किए बिना परिवर्तन यात्रा शुरू कर दी। इससे सिर मुंड़ाते ही ओले पड़े वाली कहावत चरितार्थ हो गई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद अरुण साव अपनी जिम्मेदारी पर खरे उतरने के साथ भरपूर मेहनत कर रहे हैं लेकिन भाजपा के ही बड़े नेता उनकी कोशिशों पर पानी फेर रहे हैं। भाजपा की आंतरिक स्थिति को देखकर कुदरत भी हैरान है। भाजपा ने बस्तर संभाग प्रभारी सांसद संतोष पांडेय के निर्देशन में बस्तर के दंतेवाड़ा से परिवर्तन यात्रा की शानदार शुरुआत करने काफी श्रम किया। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के आने की खबर से इस आयोजन का महत्व बढ़ने की उम्मीद की जा रही थी। वे नहीं आये। मौसम की बेरुखी को ढाल बनाया गया। कांग्रेस कह रही है कि अपेक्षित भीड़ न जुट पाने की खबर से शाह नहीं आये। वैसे बस्तर के मौसम ने भाजपा का साथ नहीं दिया, मगर जब केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बस्तर मुख्यालय जगदलपुर पहुंच गई थीं तो क्या पार्टी की खातिर वे जगदलपुर से दंतेवाड़ा तक सड़क मार्ग से यात्रा कर दो मिनट के लिए ही सही, परिवर्तन यात्रा के रथ में सवार नहीं हो सकती थीं? यह सवाल भाजपा के उन कार्यकर्ताओं को परेशान कर रहा है जो जोखिम मोल लेकर परिवर्तन की अलख जगाने साव के साथ निकले हैं। यह भी तो हो सकता था कि स्मृति ईरानी एक दिन बस्तर में बैठने जगह तलाश रही भाजपा को दे देतीं। कम से कम यह संदेश तो जाता कि भाजपा के बड़े नेता सुविधाभोगी ही नहीं, मैदानी कार्यकर्ता भी हैं। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने का अवसर भाजपा ने खो दिया। एक वक्त था, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते हुए मुरली मनोहर जोशी ने तिरंगा यात्रा निकालकर कश्मीर के लाल चौक पर तिरंगा फहराया था। आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके सह यात्री थे। उस समय वहां जितना खतरा था, उसके मुकाबले बस्तर में कुछ खास खतरा अब नहीं है। जो थोड़ी बहुत आशंका है भी तो सुरक्षा व्यवस्था देश के गृहमंत्री के प्रस्तावित दौरे के हिसाब से मौजूद ही रहना स्वाभाविक था। फिर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पहले ही कह चुके थे कि भाजपा ने परिवर्तन यात्रा को सुरक्षा नहीं दी थी लेकिन हम सुरक्षा देंगे। भूपेश बघेल पर भरोसा करके भाजपा देख सकती थी। कांग्रेस की ओर से कहा यह भी जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बस्तर सांसद दीपक बैज ने शाह से बस्तर को लेकर जो संवेदनशील सवाल पूछे थे, उनका जवाब शाह के पास नहीं है इसलिए उन्होंने दौरे से किनारा कर लिया। अब बात यह भी है कि मौसम के नाम पर जब शाह का दौरा रद्द कर दिया गया था तो स्मृति को भेजने की जरूरत क्या थी? वे बस्तर मुख्यालय पहुंच गई थीं तो ऐसी क्या इमरजेंसी आ गई थी कि उल्टे पांव लौट गईं। जब शाह का आना सम्भव नहीं दिखा तो भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने साव को रथ पर सवार करा दिया। स्मृति को आखिर जगदलपुर भेजने का क्या तुक था? ओम माथुर भाजपा के दिग्गज नेता हैं और भाजपा को छत्तीसगढ़ में मजबूती देने वे लगातार सक्रिय हैं। आज बस्तर में स्मृति ईरानी के मुकाबले भाजपा का कार्यकर्ता माथुर पर ज्यादा भरोसा करता है। स्मृति का आना और जगदलपुर से लौट जाना भाजपा के बस्तरिया कार्यकर्ताओं ही नहीं भाजपा प्रदेश प्रभारी माथुर की शान में भी गुस्ताखी के समान माना जा रहा है। कहा जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को मुंबई से जगदलपुर बुला लिया गया।जगदलपुर पहुंचने के बाद वे हेलीकॉप्टर में बैठ कर दंतेवाड़ा रवाना हो गई लेकिन मौसम खराब होने के बाद वापस जगदलपुर एयरपोर्ट पहुंची और वहां से कोलकाता के लिए रवाना हो गईं। वे नाराज थी, किसी से चर्चा तक नहीं की। साव से जब मोबाइल पर चर्चा हुई तो उन्होंने अनुरोध किया कि आप रात्रि में जगदलपुर रुक जाइए और जगदलपुर की आम सभा को संबोधित करके आप कोलकाता रवाना हो जाना, लेकिन उनकी नाराजगी इतनी गंभीर थी कि उन्होंने उनकी बात को महत्व नहीं दिया और जगदलपुर से कोलकाता के लिए रवाना हो गई। अब सवाल यह है कि स्मृति आखिर किस बात से नाराज थीं? भाजपा जिस मकसद से बस्तर में मेहनत कर रही है, उस मकसद की कामयाबी के लिए यह बेहद जरूरी है कि रुतबेदारी को दरकिनार किया जाए और संघर्ष के मैदान में सिपाही की तरह उतरा जाए।