- नगरनार प्लांट, नंदराज पहाड़, आरक्षण समेत अन्य मुद्दों को भुनाएगी कांग्रेस
- कांग्रेस की तरकश में नहीं है रामबाण की कोई कमी
-अर्जुन झा-
जगदलपुर वैसे तो पूरे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस धारदार अंदाज में और ठोस मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है, लेकिन बस्तर संभाग के मतदाताओं को साधने के लिए कांग्रेस के पास मुद्दों की भरमार है। नगरनार स्टील प्लांट के निजीकरण के अलावा नंदराज पहाड़, आरक्षण, स्थानीय बेरोजगारों को नौकरियों में प्राथमिकता कांग्रेस के लिए भाजपा के खिलाफ चुनावी युद्ध में रामबाण और ब्रम्हास्त्र सिद्ध हो सकते हैं।
भूपेश बघेल सरकार की जनहितकारी योजनाओं को लेकर तो कांग्रेस राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों में जाएगी, इस बात में कोई शक नहीं है। अपनी पहली पारी में ही कांग्रेस सरकार ने उच्च दर पर धान खरीदी, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, गोबर एवं गोमूत्र खरीदी, गोठान योजना, बेरोजगारी भत्ता, रीपा योजना आदि के माध्यम से समाज के हर वर्ग का दिल जीत लिया है। छत्तीसगढ़ के किसान कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हैं और कांग्रेस के प्रति मेहरबान नजर आ रहे हैं। पुनः सरकार बनने पर कांग्रेस ने धान की खरीदी 2650 रु. प्रति क्विंटल की दर से करने की घोषणा कर और खरीदी लिमिट को 20 क्विंटल प्रति एकड़ करके किसानों को अपने पाले में कर लिया है। छत्तीसगढ़ में कृषक परिवारों की अधिकता है और मजदूर वर्ग भी कृषि आधारित रोजगार पर ही ज्यादा निर्भर हैं। सालाना 7 हजार रु. का मान धन देकर भूमिहीन कृषि मजदूरों के साथ भी भूपेश बघेल सरकार ने न्याय किया है। इस तरह अभी से साफ हो गया है कि एक बहुत बड़ा तबका कांग्रेस के साथ खड़ा हो गया है। ये सारे कारक तो बस्तर में कांग्रेस के पक्ष में प्रभावी हैं ही, इनके अलावा कांग्रेस की तरकश में भाजपा के खिलाफ कई और रामबाण भी हैं। इस ब्रम्हास्त्र और रामबाण के माध्यम से भाजपा को कांग्रेस ‘बारहों खाने’ चित्त कर सकती है। आशय यह कि बस्तर संभाग की सभी बारह विधानसभा सीटों पर कांग्रेस शानदार जीत दर्ज करा सकती है।
क्या है नंदराज पहाड़ का मसला?
नंदराज पहाड़ वो मसला है, जिसे लेकर बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद दीपक बैज लंबे अरसे से संसद से लेकर सड़क तक लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।लौह अयस्क के अकूत भंडार से समृद्ध बैलाडीला पर्वत श्रृंखला के नंदराज पहाड़ का गर्भ भी कच्चे लोहे से भरा हुआ है। इस पहाड़ के बड़े भाग को लौह अयस्क खनन और इस अयस्क के उपयोग के लिए अडानी समूह को लीज पर दे दिया गया है। नंदराज पहाड़ की तलहटी में बसे गांवों के ग्रामीणों के पुरजोर विरोध और ग्रामसभाओं द्वारा पारित विरोध प्रस्ताव के बावजूद डॉ. रमन सिंह के कार्यकाल यह कदम उठाया गया था। सांसद दीपक बैज इस फैसले का विरोध कई बार लोकसभा में कर चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद दीपक बैज इस मुद्दे को संसद के बाद सड़क पर भी ले आए। बताते हैं कि दर्जनों गांवों के ग्रामीण नंदराज पहाड़ को लीज पर दिए जाने से नाखुश हैं और विधानसभा चुनाव में लोगों की यह नाराजगी भाजपा को भारी पड़ने वाली है। कांग्रेस इसे चुनावी मुद्दा जरूर बनाएगी।
नगरनार पर करार : लोग बेकरार
एनएमडीसी द्वारा जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र के ग्राम नगरनार में स्थापित इस्पात संयंत्र को कथित तौर पर बेचने के लिए केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा निजी क्षेत्र से किए जा रहे करार के खिलाफ भी बस्तर संभाग के ग्रामीण बेकरार नजर आ रहे हैं। जन चर्चा है कि मोदी सरकार इस स्टील प्लांट को एक बड़े औद्योगिक घराने के हवाले करने का फैसला कर चुकी है। केंद्र सरकार का यह कदम भी भाजपा पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। नगरनार समेत एक दर्जन से भी अधिक गांवों के ग्रामीणों की कृषि और पड़त भूमि अधिग्रहित की गई है। अधिग्रहण के दौरान कहा गया था कि नगरनार इस्पात संयंत्र में हर प्रभावित परिवार के सदस्यों को नौकरी दी जाएगी। सामुदायिक विकास योजना के तहत संयंत्र के परिधीय गांवों के विकास के कार्य कराए जाएंगे, अच्छी सड़कें बनाई जाएंगी, नगरनार में उत्कृष्ट स्कूल और सर्व सुविधा युक्त अस्पताल की स्थापना की जाएगी। मगर दुख की बात है कि अधिकांश दावे थोथे ही साबित हुए हैं। कई प्रभावित परिवारों को संयंत्र में नौकरी मिली और कई अभी भी नौकरी मिलने की आस लगाए बैठे हैं, आयु सीमा को पार करते जा रहे हैं। कुछ दिन पहले तक एक प्रभावित परिवार की दो बेटियां नौकरी की मांग करते हुए संयंत्र के बाहर धरने पर बैठ गईं थीं। संयंत्र में ट्रांसपोर्टिंग का काम भी बाहरी लोगों को दे दिया गया है। स्थानीय ग्रामीण ट्रांसपोर्टर और बस्तर परिवहन संघ के सदस्य ट्रांसपोर्टिंग का काम स्थानीय प्रांसपोर्टरों को देने की मांग को लेकर लंबे समय तक धरना दे चुके हैं। वहीं सर्व आदिवासी समाज और पिछड़ा वर्ग समाज भी नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण के विरोध में तथा संयंत्र में स्थानीय बेरोजगारों और मजदूरों को नौकरी देने की मांग को लेकर मोर्चा खोल चुका है।
जायज है सांसद बैज की चिंता
सांसद दीपक बैज और जगदलपुर के विधायक रेखचंद जैन नगरनार इस्पात संयंत्र के निजीकरण के खिलाफ शुरू से मुखर रहे हैं। सांसद दीपक बैज जहां संसद में निजीकरण के विरोध में लगातार आवाज उठाते आए हैं, वहीं विधायक एवं संसदीय सचिव इस मुद्दे को लेकर सड़क पर उतर चुके हैं। बस्तर के ये दोनों ही जागरूक जनप्रतिनिधि अपने अपने स्तर पर केंद्र सरकार के फैसले के विरुद्ध मोर्चा सम्हाले हुए हैं। सांसद दीपक बैज की चिंता यह रही है कि निजीकरण के बाद नगरनार इस्पात संयंत्र में आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग और गरीब तबके के योग्य युवाओं को आरक्षण के आधार पर नौकरियों में भागीदारी नहीं मिल पाएगी। श्री बैज अपनी यह चिंता लोकसभा में भी व्यक्त कर चुके हैं। एक दफे उन्होंने संसद में कहा था कि निजी क्षेत्र में आरक्षण की बाध्यता नहीं है, ऐसे में अगर नगरनार इस्पात संयंत्र का निजीकरण हो जाने पर आरक्षित वर्गों को पर्याप्त नौकरियां नहीं मिल पाएंगी। श्री बैज की यह चिंता बिल्कुल जायज है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, सांसद दीपक बैज और बस्तर जिले के प्रभारी एवं छ्ग शासन के उद्योग मंत्री कवासी लखमा की पहल पर छत्तीसगढ़ सरकार नगरनार इस्पात संयंत्र को खुद चलाने के लिए केंद्र को प्रस्ताव भेज चुकी है। भूपेश बघेल की मंशा है की संयंत्र को स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल) के अधीन कर दिया जाए या फिर छ्ग सरकार के हवाले कर दिया जाए।
आरक्षण का लंबित प्रकरण
भूपेश बघेल सरकार अनुसूचित जाति जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और गरीबों को सरकारी नौकरियों में पर्याप्त आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध रही है। भूपेश बघेल केबिनेट ने इन सभी वर्गों के लिए आरक्षण का प्रतिशत निर्धारित करते हुए प्रस्ताव स्वीकृति के लिए राजयपाल के पास भेज दिया है। कई माह बीत जाने के बाद भी इस प्रस्ताव को राजभवन से मंजूरी नहीं मिल पाई है। कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र सरकार के दबाव में इस मसले को लटकाकर रखा गया है। कांग्रेस इसे पहले ही बड़ा मुद्दा बना चुकी है। यह मुद्दा बस्तर जैसे अनुसूचित जनजाति बहुल संभाग में भाजपा का गणित बिगाड़ सकता है। इस तरह देखा जाए तो बस्तर संभाग के लिए कांग्रेस के पास एक सेबढ़कर एक ब्रम्हास्त्र, रामबाण और मिसाइलें हैं, जो भाजपा की चुलें हिलाने में सक्षम हैं।