फर्जी जाति प्रमाण पत्र मामले में नोटिस की सिर्फ औपचारिकता

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  • आरोपी शिक्षकों पर कार्रवाई न होने से सवाल
  • सत्यापन के लिए पेश होने की हिदायत देकर पल्ला झाड़ रहा है विभाग

अर्जुन झा

जगदलपुर बस्तर संभाग में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी पाने वालों के खिलाफ एक्शन के नाम पर सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी केवल खानापूर्ति कर रहे हैं। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस भेजने की ही औपचारिकता पूरी की जा रही है। ऐसे मामले शिक्षा विभाग एवं आदिम जाति कल्याण विभाग में ज्यादा सामने आए हैं और संभाग के सुकमा जिले में इस तरह के मामलों की बहुतायत है। सुकमा के जिला शिक्षा अधिकारी ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी हथियाने के आरोपों से घिरे आधा दर्जन शिक्षक शिक्षिकाओं को नोटिस जारी कर सक्षम अधिकारी द्वारा सत्यापित जाति प्रमाण पत्र एवं अन्य जरुरी दस्तावेजों के साथ उपस्थित होने का निर्देश दिया है। कार्रवाई अब तक नहीं की जा सकी है।

सुकमा जिले के जिन शिक्षक शिक्षिकाओं को नोटिस जारी किया गया है, उनमें सलवम गिरीश प्रधान पाठक बालक आश्रम इंजरम विकासखंड कोंटा, कु. गीता प्रधान पाठक प्राथमिक शाला पटेलपारा फंदीगुड़ा, विकासखंड कोंटा, के. रामा यशवंत राव व्याख्याता हायर सेकंडरी स्कूल एर्राबोर विकासखंड कोंटा, ओशिक कुमार ठाकुर प्रधान पाठक प्राथमिक शाला एट्टेगटा ब्लॉक कोंटा, सत्यराजू नाग प्रधान पाठक मिडिल स्कूल नुलकातोंग विकासखंड कोंटा और विजिया नाग सहायक शिक्षिका एलबी प्राथमिक शाला पुजारीपारा सोना कुकानार ब्लॉक सुकमा शामिल हैं। इन शिक्षकों से कहा गया है कि सभी सक्षम अधिकारी द्वारा सत्यापित एवं वैध जाति प्रमाण पत्र, मिशल रिकॉर्ड, वंशावली, कोटवार रजिस्टर एवं अन्य दस्तावेजों के साथ 45 दिनों के भीतर पेश हों। ऐसा न करने पर एकपक्षीय कार्रवाई की जाएगी। के. रामा यशवंत राव एवं व्याख्याता कु. के सारिका के जाति प्रमाण पत्रों से जुड़े मामले उच्च स्तरीय छानबीन समिति रायपुर के समक्ष लंबित हैं। वहीं हायर सेकंडरी स्कूल गोलापल्ली की व्याख्याता के सारिका ने विकासखंड शिक्षा अधिकारी कोंटा को प्रेषित जवाब में जानकारी दी है कि वे अनुसूचित जनजाति वर्ग की हैं, लेकिन व्यवसायिक परीक्षा मंडल से उनका चयन अनारक्षित वर्ग से हुआ है। इसलिए वे जाति प्रमाण पत्र या दीगर दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए बाध्य नहीं हैं।

छह माह बाद भी कार्रवाई नहीं

उक्त सभी शिक्षक शिक्षिकाओं को छह माह पहले नोटिस जारी किए गए थे, लेकिन उनमें से कितने शिक्षक शिक्षिकाओं ने नोटिस में चाहे गए दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं, इसका कोई अता पता नहीं है। ये तो तय है कि ज्यादातर शिक्षक शिक्षिकाएं वैध एवं मान्य दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर पाए होंगे। बावजूद उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। सूत्रों का कहना है कि राजनैतिक दबाव और धन बल के प्रभाव में आकर उक्त दागी शिक्षक शिक्षिकाओं को बचाने की कोशिश विभागीय अधिकारी कर रहे हैं। यही वजह है कि छह माह बीत जाने के बाद भी मामले को लटकाए रखा गया है। जिन आरटीआई एक्टिविस्ट ने इस मामले को उजागर किया है, उन्होंने आरोपी शिक्षक शिक्षिकाओं और उन्हें बचाने में लगे अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तर पर मामला पहुंचाने में लग गए हैं।