आदिवासी मुख्यमंत्री देकर कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया भाजपा ने

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  • आखिरकार वैसा ही हुआ, जैसा श्रमबिंदु ने बताया था
  • अपनों को हराने के खेल ने कांग्रेस का ही बिगाड़ा खेल

अर्जुन झा

जगदलपुर आखिरकार वैसे ही हुआ, जैसा कि श्रमबिंदु ने पहले ही बता दिया था। भाजपा ने छत्तीसगढ़ को विष्णुदेव साय के रूप में पहला आदिवासी मुख्यमंत्री देकर कांग्रेस को चारों खाने चित्त कर दिया है। बस्तर के वरिष्ठ आदिवासी नेता दीपक बैज और मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार टीएस सिंहदेव बाबा को हरवाकर कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने छत्तीसगढ़ में अपनी ही पार्टी की बड़ी फजीहत करा दी है, कांग्रेस को कहीं का नहीं छोड़ा है। अब तो बस्तर ही नहीं, बल्कि समूचे छत्तीसगढ़ के आदिवासी भी भाजपा की जय जयकार करने लगे हैं। आने वाले लोकसभा चुनाव में और संभवतः भविष्य में होने वाले तमाम चुनावों में भी कांग्रेस की भद्द पिट सकती है। कांग्रेस के पास वक्त अभी भी है भाजपा से सबक लेकर आत्मघाती कदम उठाने से बचने के लिए। वरना कांग्रेस को इतिहास की पार्टी बनने से कोई नहीं बचा सकता।

श्रमबिंदु ने अपने पिछले अंक में ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बंसी के फेर में बजा कांग्रेस का बैंड’ शीर्षक से एक विस्तृत खबर प्रकाशित की थी। इसके अलावा एक अन्य खबर में श्रमबिंदु ने ही राज्य को आदिवासी मुख्यमंत्री मिलने की संभावना भी जताई थी। ये दोनों खबरें शत प्रतिशत सही साबित हुईं। पहली खबर में बताया गया था कि मुख्यमंत्री की रेस से हटाने के लिए दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज की राजनीतिक हत्या करा दी गई। न रहेगा बांस, न बजेगी बंसी के चक्कर में कांग्रेस का ही बैंड बजवा दिया गया। टीएस सिंहदेव पहले से ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार रहे हैं। वहीं आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठने पर दीपक बैज सबसे बड़ा चेहरा होते। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए कांग्रेस के ही चंद नेताओं को अपने राजनैतिक अस्तित्व की चिंता सताने लगी थी। यही वजह है कि इन नेताओं टीएस सिंहदेव और दीपक बैज को हर हाल में विधानसभा का चुनाव न जीतने देने के लिए पूरी ताकत झोंक रखी थी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष, कांग्रेस के आदिवासी विभाग के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, बस्तर लोकसभा क्षेत्र के सांसद एवं बस्तर के तेजतर्रार आदिवासी नेता दीपक बैज कांग्रेसी क्षितिज पर दैदीप्यमान सितारे बनकर चमकने लगे थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और ज्यादातर पदाधिकारी तथा बड़े नेता भी दीपक बैज को पसंद करने लगे थे। यही बात छत्तीसगढ़ के उन कांग्रेस नेताओं को खटकने लगी थी, जो सत्ता के शिखर पर बने रहने के लिए आकुल व्याकुल रहते हैं। दीपक बैज का राजनैतिक अस्तित्व खत्म करने के लिए साजिशें रची जाने लगीं। इसके तहत दीपक बैज को चंद दिनों पहले हुए विधानसभा चुनाव में उनकी पुरानी सीट बस्तर के चित्रकोट से मैदान पर उतरवा दिया गया। दो बार इस विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके दीपक बैज मतदान के कुछ दिनों पहले तक आंधी की तरह छाए हुए थे। साजिशबाज नेताओं को जब लगने लगा कि दीपक बैज यह चुनाव भी जीत जाएंगे, तो उन्होंने साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना ली। बस्तर संभाग के ही एक बड़े नेता तथा निगम, प्राधिकरण में काबिज कुछ स्थानीय नेताओं को दीपक बैज का विजय रथ रोकने के काम में लगा दिया। अपने आका के फरमान पर अमल करते हुए इन पांच नेताओं ने रातों रात ऐसा चक्रव्यूह रच डाला कि दीपक बैज उसे भेद ही नहीं पाए। चित्रकोट क्षेत्र के गांव – गांव में जाकर इन कांग्रेस घाती नेताओं और उनके आदमियों ने कांग्रेस समर्थक मतदाताओं को बरगलाना शुरू कर दिया। मतदाताओं के बीच यह बात प्रचारित की गई कि एक व्यक्ति चार पांच पद सम्हाल नहीं पाएगा, क्षेत्र का वह विकास नहीं करा पाएगा, जनता को समय नहीं दे पाएगा। लोग बहकावे में आ गए और रातों रात बाजी पलट गई। दीपक बैज को हार का सामना करना पड़ा।

दीपक बैज से था अस्तित्व को खतरा

अगर दीपक बैज यह चुनाव जीत गए होते और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग उठती या फिर कांग्रेस आला कमान किसी आदिवासी विधायक को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला कर लेता, तो निसंदेह दीपक बैज ही एकमात्र विकल्प होते। इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सत्ता लोभी चंद कांग्रेस नेताओं ने दीपक बैज को निपटवा दिया। दीपक बैज उच्च शिक्षित राजनेता हैं। उनमें काम करने का वो जज्बा है, जो बहुत कम नेताओं में देखने को मिलता है। उनमें सामर्थ्य, सोचने समझने की क्षमता, बिना लाग लपेट के अपनी बात रखने की कला और विरोधी दलों के भी लोगों का दिल जीत लेने की अनूठी प्रतिभा है। अगर वे एक बार मुख्यमंत्री बन जाते, तो कम से कम दो दशक तक उनके मुकाबले कांग्रेस में कोई दूसरा नेता खड़ा नहीं हो पाता। कांग्रेस के जयचंदों को बांसुरी की यह धुन रास नहीं आई और उन्होंने बांस को ही जड़ से खत्म कर दिया। ऐसा करके वे यह समझ बैठे हैं कि बांस ही नहीं रहेगा, तो बांसुरी कैसे बनेगी और बजेगी। मगर यह उनकी बड़ी भूल है। शायद वे यह नहीं जानते कि दीपक बैज उस हस्ती का नाम है जो खाक से उठकर फलक तक पहुंचा है। बस्तर का यह दीपक एक दिन छत्तीसगढ़ की राजनीति में सितारा बनकर चमकेगा।

निपटा दिए गए सबके सब

कांग्रेस पार्टी के नेता अपनी सारी ऊर्जा एक दूसरे को निपटाने में ही जाया कर देते हैं। इस तुच्छ राजनीति के शिकार एक अकेले दीपक बैज ही नहीं हुए हैं, बल्कि उन तमाम नेता भी बने हैं, जो कांग्रेस के स्वार्थी नेताओं के लिए चुनौती साबित होते। क्षुद्र राजनीति के शिकार नेताओं में सरगुजा राज परिवार के टीएस सिंहदेव, साजा के अपराजेय योद्धा रविंद्र चौबे, दुर्ग ग्रामीण के सहज सरल नेता ताम्रध्वज साहू, कवर्धा सीट के अल्पसंख्यक नेता मोहम्मद अकबर समेत कुछ अन्य शामिल हैं। 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद को लेकर जो घमासान चला था, उसकी अनुगूंज कांग्रेस के दिल्ली दरबार तक पहुंची थी।उस समय टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाकर टीएस सिंहदेव को यह कहकर तसल्ली दी थी कि ढाई साल तक भूपेश बघेल फिर अगले ढाई साल तक आप मुख्यमंत्री रहोगे। आखिर तक टीएस सिंहदेव बाबा को मुख्यमंत्री की कुर्सी नसीब नहीं हो पाई।

विधानसभा चुनाव के चंद माह पहले बाबा को उप मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस बार अगर कांग्रेस की सरकार बनती, तो टीएस बाबा मुख्यमंत्री पद के सबसे प्रबल दावेदार होते। सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाना कांग्रेस हाईकमान के लिए मजबूरी बन जाती। बाबा को भी हराने के लिए साजिश वाला खेल खेला गया। यही नहीं बाबा की दुर्गति का नमूना कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष पेश करने के लिए सरगुजा जिले के अन्य कांग्रेस प्रत्याशियों को भी हरवा दिया गया। वहीं सामान्य सीट जगदलपुर से कांग्रेस उम्मीदवार जतिन जायसवाल को महज इसलिए हरवाया गया कि वे टीएस सिंहदेव की पसंद के प्रत्याशी थे। इसी तरह सामान्य वर्ग के ब्राह्मण नेता रविंद्र चौबे, मुस्लिम समुदाय के वरिष्ठ नेता मोहम्मद अकबर, साहू समाज के वरिष्ठ विधायक ताम्रध्वज साहू को भी हराने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखी गई।

कांग्रेस के गाल पर तमाचा

छत्तीसगढ़ की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ वापसी कर चुकी भाजपा ने राज्य को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री देकर कांग्रेस के गाल पर ऐसा तमाचा जड़ दिया है कि उसकी झन्नाहट से उबरने के लिए कांग्रेस छत्तीसगढ़ में अच्छी खासी सर्जरी करनी -करानी पड़ेगी। आदिवासी समुदाय के नेता विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने आदिवासियों के नाम पर राजनैतिक रोटी सेंकती आ रही कांग्रेस के आदिवासी वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा दी है। कांग्रेस भले ही भाजपा पर दलित, आदिवासी, पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक विरोधी होने का आरोप लगाती रही है, मगर सच्चाई कुछ और है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं पिछड़ा वर्ग से आते हैं। उनके मंत्रिमंडल और भाजपा संगठन में दलित, अजा अजजा, ओबीसी, अल्पसंख्यक सभी वर्गों को महत्व दिया गया है। राज्य को प्रथम आदिवासी मुख्यमंत्री मिलने से प्रदेश का पूरा आदिवासी समुदाय आल्हादित हो उठा है। कांग्रेस से जुड़े आदिवासी नेता और मतदाता भी भाजपा के इस कदम की प्रशंसा करते नहीं थक रहे हैं। इस वर्ग को अब भाजपा में उम्मीद की किरण नजर आने लगी है। कहीं ऐसा न हो कि छत्तीसगढ़ का आदिवासी समुदाय कांग्रेस से पूरी तरह छिटक जाएं। तब 2024 के लोकसभा चुनाव और 2028 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जो दुर्गति होगी, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। आदिवासी, दलित, ओबीसी, अनुसूचित जाति व अल्पसंख्यक कार्ड खेलती आ रही कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। वहीं भाजपा छत्तीसगढ़ में इस कदर मजबूत हो जाएगी कि उसे चुनौती दे पाना भी कांग्रेस के लिए मुश्किल हो जाएगा।