आबकारी विभाग के बड़े अफसर कर रहे हैं ब्लंडर फ्राड

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  • ब्लंडर प्राइड, सिग्नेचर की जगह खपवा रहे हैं लोकल
  •  शराब निर्माता कंपनियों से ले रहे हैं जमकर कमीशन
    -अर्जुन झा-
    जगदलपुर बस्तर संभाग ही नहीं बल्कि अमूमन पूरे छत्तीसगढ़ में आबकारी विभाग के बड़े अधिकारी शासन और शराब प्रेमियों के साथ ब्लंडर फ्राड कर रहे हैं। ब्लंडर प्राइड, सिग्नेचर, ओल्ड मंक जैसी ब्रांडेड शराब की जगह हल्के दर्जे की लोकल शराब सरकारी दुकानों के जरिए खपाई जा रही है। लोकल शराब निर्माता कंपनियों से भारी भरकम कमीशन लेकर इन कंपनियों द्वारा निर्मित शराब की बिक्री करवाई जा रही है। ग्राहकों को यह कहकर छला जा रहा है कि ब्रांडेड शराब का उत्पादन बंद हो गया है। वहीं दूसरी ओर लोकल शराब में भी मिलावट का खेल चल रहा है। इस तरह ग्राहकों और शासन को दो तरफा चूना लगाया जा रहा है।
    बस्तर संभाग समेत पूरे छत्तीसगढ़ की ज्यादातर अंग्रेजी शराब दुकानों में ग्राहकों को ब्लंडर प्राइड, सिग्नेचर, ओल्ड मंक, हंड्रेड पाइपर व अन्य ब्रांडेड व्हीस्की में नहीं मिल रही है। इन ब्रांडों वाली शराब की मांग करने पर ग्राहकों से कहा जाता है कि इनका उत्पादन बंद हो गया है और लंबे समय से आपूर्ति भी नहीं हो रही है। इनकी जगह ग्राहकों को 8 पीएम, एसी नीट, इंडिया नंबर 1, फ्रंट लाइन, आईबी, विकर, पार्टी स्पेशल जैसी हल्की क्वालिटी की लोकल शराब की बोतलें थमा दी जाती हैं। ग्राहकों से इनकी कीमत ब्रांडेड शराब की जैसी वसूली जाती है। ग्राहक मन मार कर ऐसी स्तरहीन शराब खरीदने मजबूर हो जाते हैं। शराब दुकानों में कार्यरत सेल्समैन बार बार यही दुहाई देते रहते हैं कि आप जिस ब्रांडेड शराब की डिमांड कर रहे हैं, उसका उत्पादन तो सालों से बंद हो गया है। जबकि सच्चाई यह है कि उल्लेखित ब्रांड की तमाम शराब अभी भी कई राज्यों में आसानी से मिल रही है। मध्यप्रदेश, ओड़िशा, दिल्ली, राजस्थान, आंध्राप्रदेश, महाराष्ट्र समेत अन्य राज्यों की शराब दुकानों में हर ब्रांडेड कंपनी की अंग्रेजी शराब मिल जाती है। सूत्र बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में उक्त ब्रांडेड शराब की बिक्री कमीशनखोरी के चक्कर में नहीं करवाई जा रही है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व गोवा की कुछ शराब निर्माता कंपनियों ने आबकारी विभाग के राज्य स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ही जिलों में पदस्थ जिला आबकारी अधिकारियों को खरीद लिया है। जिस तरह दवा निर्माता कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट की खपत बढ़ाने और हर डॉक्टर तक पहुंच बनाने के लिए मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (एमआर) नियुक्त कर रखे हैं, उसी तरह लोकल शराब निर्माता कंपनियों ने अपनी शराब की बिक्री बढ़ाने के लिए वाइन रिप्रेजेंटेटिव (डब्लूयूआर) नियुक्त कर रखे हैं। शराब कंपनियों के ये प्रतिनिधि सीधे जिला आबकारी अधिकारियों के संपर्क में रहते हैं। वे कंपनी के पैकेज, कमीशन, बेशकीमती गिफ्ट्स आदि का लालच देकर आबकारी अधिकारियों से अपना प्रोडक्ट बिकवाने में सफल हो जाते हैं। मोटी रकम और महंगे गिफ्ट के प्रलोभन में फंसे अधिकारी शराब निर्माता बड़ी कंपनियों को दरकिनार कर लोकल कंपनियों की शराब बिकवाने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। यही वजह है कि अंग्रेजी शराब दुकानों से ब्रांडेड शराब गायब हो गई है और लोकल शराब की बहार आ गई है। सूत्रों के मुताबिक बस्तर संभाग के बस्तर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, कोंडागांव जिलों की शराब दुकानों के जरिए धड़ल्ले से लोकल ब्रांड की अंग्रेजी शराब खपाई जा रही है। लोकल शराब निर्माता कंपनियों से जिला आबकारी अधिकारियों को हर माह लाखों रुपए बतौर कमीशन मिल रहे हैं।

    शराबियों की जान से खिलवाड़
    शराब प्रेमी ग्राहक हल्की शराब पीने तो मजबूर हैं ही, उनके साथ करेला, ऊपर से नीमचढ़ा वाली कहावत भी चरितार्थ हो रही है। उन्हें लोकल शराब भी ढंग की नहीं मिल रही है। पीने वाले बताते हैं कि दुकानों के सेल्समैन और सुपरवाइजर भी शराब की बोतलों में पानी व केमिकल की मिलावट कर कमाई करने में लगे हुए हैं। मिलावट के चलते शराब और भी ज्यादा स्तरहीन हो जाती है। ऐसी घटिया शराब जैसे ही हलक में उतरती है, पीने वाले को उबकाई आने लग जाती है। आबकारी अधिकारी, सुपरवाइजर और सेल्समैन शराब प्रेमियों की जान से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। ऐसे में कभी भी बड़ी अनहोनी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।