जैबेल गांव की महिलाओं तक नहीं पहुंचा प्रधानमंत्री मोदी का जल जीवन मिशन

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  • आज भी तीन किमी दूर नदी में झिरिया खोदकर पानी का इंतजाम करती हैं महिलाएं =
    -अर्जुन झा-
    बकावंड केंद्र सरकार के जल जीवन मिशन के तहत आज प्रायः हर गांव में पीने के शुद्ध पानी का इंतजाम किया जा रहा है, मगर बस्तर जिले जैबेल गांव की महिलाओं का नसीब फूटा हुआ है कि उनके गांव तक मोदी का यह मिशन पहुंच नहीं पाया है। या फिर अधिकारी ही उन्हें जल जीवन मिशन के लाभ से वंचित रखना चाहते हैं। गांव की महिलाएं, युवतियां और छोटी छोटी बच्चियां आज भी तीन किलोमीटर दूर नदी से पानी लाकर काम चलाने मजबूर हैं।
    बस्तर जिले के विकासखंड बकावंड के अंतर्गत ग्राम पंचायत जैबेल के ग्रामीणों को आज भी बूंद बूंद पानी के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। बरसात का मौसम खत्म होते ही और गर्मी के शुरूआती दिनों से ही जैबेल के लोगों को पीने के पानी के लिए नदी नालों पर निर्भर होना पड़ता है। जैबेल गांव से तीन किलोमीटर दूर स्थित नदी में गड्ढे खोदकर झिरिया बनाया जाता है, फिर वहां से पानी को छानकर बर्तनों में भरकर महिलाएं घर लाती हैं। उसी पानी को पीने और भोजन बनाने के काम में लिया जाता है। महिलाओं को पूरे दिन के पानी की व्यवस्था के लिए नदी के कम से कम पांच चक्कर लगाने पड़ते हैं। मतलब महिलाओं को एक दिन में तीस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इसके बाद भी उन्हें शुद्ध पानी नसीब नहीं हो पाता। ऐन परीक्षाओं के समय बालिकाओं और युवतियों को अपनी सारी ऊर्जा पानी की व्यवस्था में खपानी पड़ती है। वे परीक्षा की तैयारी नहीं कर पातीं। इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान भी जैबेल गांव में दम तोड़ता नजर आ रहा है। महिलाएं भी सुबह से शाम तक पानी के इंतजाम में ही खटती रहती हैं। चिलचिलाती धूप में मातृशक्ति को परेशान होना पड़ रहा हैं। ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा लाया गया नारी शक्ति वंदन अधिनियम और छत्तीसगढ़ सरकार की महतारी वंदन योजना जैबेल की महिलाओं के लिए बेमानी ही हैं। सरकार जब उन्हें जल संकट से मुक्ति नहीं दिला सकतीं तो बड़ी से बड़ी योजना भी मातृशक्ति का भला नहीं कर सकती।

    ऐसे करना पड़ता हैं पानी का प्रबंध
    जिस नदी से महिलाएं पानी का इंतजाम करती हैं, वह जैबेल गांव से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। महिलाएं पहले नदी की रेत को खोदकर गड्ढा करती हैं। गड्ढे में रिस रिस कर आने वाले पानी को कटोरे की मदद से गुंडी और बाल्टीयों में भरा जाता है। फिर पानी भरी गुंडियों और बाल्टी को सिर पर रखकर महिलाएं, युवतियां और बच्चियां घर लाती हैं।. यह काफी मेहनत वाला काम होता है। महिलाएं जितना पानी नहीं भर पातीं उससे कहीं ज्यादा उन्हें पसीना बहाना पड़ जाता है। पानी का इंतजाम करने के बाद उन्हें घर में झाड़ू पोंछा, बर्तन मांजने, कपड़े धोने, भोजन तैयार करने जैसे तमाम काम भी निपटाने पड़ते हैं। ऐसे में उनके आत्मनिर्भर बनने के सपने भी चूर चूर हो रहे हैं।
    पानी के लिए यह कवायद बीते कई वर्षों से यूं ही चली आ रही है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही नदी नालों में झिरिया खोदकर गड्ढे से पानी निकाल कर रोज ले जाना पड़ता है। इसके अलावा गांव के किसान झिरिया के पानी से अपनी फसलों की सिंचाई भी करते हैं। जल जीवन मिशन के तहत गांव में पेयजल व्यवस्था पर अधिकारी कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। ग्राम पंचायत के सरपंच सचिव भी के पानी के इंतजाम पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।

    विधायक से नाराज हैं महिलाएं
    बकावंड विकासखंड का जैबेल गांव बस्तर विधानसभा क्षेत्र में आता है। विधायक लखेश्वर बघेल की संवेदनहीनता ही कहें कि वे जैबेल की महिलाओं की इस विकराल समस्या के प्रति उदासीन बने हुए हैं। विधायक जब भी क्षेत्र के दौरे पर होते हैं, तो हर बार जैबेल के ग्रामीण उन्हें जल संकट से अवगत कराते हैं, मगर विधायक लखेश्वर बघेल हैं कि एक कान से सुनते हैं और दूसरे कान से निकाल देते हैं। केंद्रीय मद से स्वीकृत कार्यों को अपनी उपलब्धि बताकर अपनी पीठ आप थपथपाने वाले विधायक लखेश्वर बघेल से जैबेल गांव की महिलाएं सख्त नाराज चल रही हैं। विधायक के प्रति यह नाराजगी आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचा सकती है।